शराबबंदी को सफल बनाने के लिए बिहार में 37 नए स्पेशल कोर्ट का हुआ गठन

पटना (बिहार) : बिहार में शराबबंदी कानून को सफल बनाने और शराब के मामलों में स्पीडी ट्रायल को बढ़ावा देने के लिए, फिर से एक बड़ी पहल की गई है। शराबबन्दी के मामलों को त्वरित गति से निपटारे के लिए राज्य में एक साथ 37 नए स्पेशल कोर्ट का गठन किया गया है। यहाँ सहायक लोक अभियोजकों को प्रभार दे दिया गया है। आपको बताना लाजिमी है कि बिहार में पहले से ही, शराबबन्दी के मामलों के निपटारे के लिए 37 स्पेशल कोर्ट काम कर रहे थे और अब इतनी ही संख्या में नए स्पेशल कोर्ट का गठन किए जाने के बाद इनकी कुल संख्या बढ़ कर 74 हो गई है।
दीगर बात है कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बावजूद उन लोगों के ऊपर ट्रायल पूरा नहीं कराया जा सका है जिनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं। अब सरकार ने शराबबन्दी कानून के तहत, लंबित मामलों के निपटारे के लिए सख्ती बढ़ाई है, तो स्पेशल कोर्ट की संख्या भी बढ़ाई गयी है। साथ ही साथ, स्पेशल पीपी जो सुस्त रवैया अपनाए हुए हैं, उनके खिलाफ सेक्शन भी लिए जा रहे हैं। राज्य सरकार ने समस्तीपुर और लखीसराय के स्पेशल पीपी को शराबबंदी कानून की जिम्मेदारी से हटा दिया है।
मद्य निषेध विभाग के अपर मुख्य सचिव के.के.पाठक ने अलग-अलग न्यायालयों में चल रहे शराबबंदी से जुड़े मामलों की समीक्षा की है और लापरवाही बरतने के कारण मुजफ्फरपुर के विशेष लोक अभियोजक बजरंग सिंह और शिवहर के विशेष लोक अभियोजक ब्रजेश सिंह को भी हटाने की अनुशंसा की है। इसके अलावा समस्तीपुर के विशेष लोक अभियोजक रामलखन राय और लखीसराय के विशेष लोक अभियोजक कृष्ण चौधरी को मद्य निषेध विभाग से जुड़े मुकदमों की पैरवी से हटा दिया गया है। गौरतलब है कि बिहार में शराबबंदी कानून को लेकर सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस ने भी कड़ी टिप्पणी की थी। उन्होंने शराब बंदी कानून को न्यायपालिका के ऊपर अतिरिक्त भार बढ़ाने वाला कानून बताया था।
चीफ जस्टिस ने बिहार में शराबबन्दी कानून को सरकार का अदूरदर्शी फैसला करारते हुए, बिहार सरकार को जम कर लताड़ा था। उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा था कि हाईकोर्ट के 15 जज सिर्फ शराबबन्दी में मामलों में उलझे हुए हैं और शराबबन्दी से जुड़े मामले सुप्रीमकोर्ट भी आ रहे हैं। जाहिर तौर पर पटना हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में शराबबंदी से जुड़े कई केसों में नीतीश सरकार की जम कर फजीहत हो चुकी है। इस फजीहत के बाद, अब नए सिरे से कोर्ट का सिस्टम डेवलप किया जा रहा है और शराबबन्दी से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए अधिक से अधिक स्पेशल कोर्ट का गठन किया जा रहा है। नीतीश सरकार का यह कदम, साफ बता रहा है कि बिहार के सीएम शराबबन्दी कानून को किसी भी सूरत में वापिस लेने के लिए तैयार नहीं हैं। सीएम नीतीश कुमार की यह जिद और रार, बिहार की राजनीतिक तस्वीर को बदल सकती है, इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता है।
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार सिंह

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