आखिर राहुल गांधी के मित्र माने जाने वाले युवाओं का कांग्रेस से मोह भंग क्यों हो रहा है

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और झारखंड के प्रभारी आरपीएन सिंह ने 25 जनवरी को कांग्रेस की प्राथमिकता सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन कर ली। सिंह ने कांग्रेस तब छोड़ी, जब उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होना है। सिंह उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता है और माना जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य से मुकाबला करने के लिए सिंह को भाजपा में लाया गया है।

यह फोटो कांग्रेस के किसी अधिवेशन का है और तब चे चारों युवा नेता कांग्रेस में रह कर राहुल गांधी के मित्र माने जाते थे। इनमें से तीन नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं। अकेले सचिन पायलट हैं जो अभी भी कांग्रेस में बने हुए हैं, इसलिए आरपीएन सिंह के भाजपा में जाने पर सचिन पायलट की चर्चा ज्यादा हो रही है। हालांकि पायलट भी जुलाई 2020 में कांग्रेस के 18 विधायकों को लेकर जयपुर से दिल्ली चले गए थे,

लेकिन पायलट ने अभी तक भी कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा है। यह बात अलग है कि दिल्ली जाने पर पायलट से डिप्टी सीएम और प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद छीन लिया गया था। सचिन पायलट किसी पद पर न रहते हुए भी कांग्रेस में बने हुए हैं, जबकि आरपीएन सिंह राष्ट्रीय महासचिव के पद पर रहते हुए भाजपा में शामिल हो गए। सचिन पायलट मौजूदा समय में कांग्रेस में रह कर जिन विपरीत परिस्थितियों से गुजर रहे हैं, उससे राजस्थान में पायलट के समर्थक खुश नहीं है। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार होने के बाद पायलट को अपेक्षित सम्मान नहीं मिल रहा है।

डिप्टी सीएम और प्रदेशाध्यक्ष का पद छीन लिए जाने के बाद भी पायलट कांग्रेस के समर्थन में प्रचार प्रसार कर रहे हैं। 24 जनवरी को कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में स्टार प्रचारकों की जो सूची जारी की है उसमें पायलट का नाम भी शामिल है। यानी पायलट अपनी ओर से कांग्रेस के साथ खड़े होने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में पायलट कितने दिनों तक कांग्रेस के साथ खड़े रहेंगे? यह सवाल कांग्रेस में ही चर्चा का विषय बना हुआ है।

जहां तक सचिन पायलट का अपने गृह प्रदेश राजस्थान में लोकप्रियता का सवाल है तो 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने पायलट के चेहरे पर ही लड़ा था और तब कांग्रेस को सरकार बनाने लायक बहुमत मिला, लेकिन एनमौके पर पायलट को पीछे धकेल कर अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया। गुर्जर बाहुल्य विधानसभा क्षेत्रों में तो पायलट का दबदबा है ही साथ ही प्रदेशभर में पायलट की लोकप्रियता आज भी बनी हुई है। पायलट जब भी सड़क मार्ग से दौरे पर निकले हैं तो रास्ते में समर्थकों की जबरदस्त भीड़ होती है।

जानकारों का कहना है कि कांग्रेस का केंद्र में सत्ता से बाहर होने के बाद राहुल गांधी ने पार्टी के नेताओं से दूरी बना ली है। इससे संवाद में कमी हो गई है। राहुल गांधी साल में तीन चार बार एक-एक माह के विदेश भी चले जाते हैं। जबकि पार्टी के सारे महत्त्वपूर्ण निर्णय गांधी परिवार ही करता है। आरपीएन सिंह और जतिन प्रसाद ने कांग्रेस तब छोड़ी, जब उत्तर प्रदेश का प्रभार खुद राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के पास है।

प्रियंका गांधी लगातार भाग दौड़ भी कर रही हैं। प्रियंका गांधी की इतनी सक्रियता के बाद भी आरपीएन सिंह का भाजपा में चले जाना कांग्रेस के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। लोकतंत्र में विपक्ष का अपना महत्व होता है और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ही प्रमुख विपक्षी दल है। लेकिन कांग्रेस को अपने कुनबे को संभाल कर रखने की जरूरत है।

26 जनवरी को मीडिया से संवाद करते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि जो नेता कांग्रेस में रहकर नुकसान पहुंचा रहे हैं अच्छा हो कि वे कांग्रेस छोड़कर चले जाए। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव आरपीएन सिंह के कांग्रेस छोडऩे पर गहलोत ने कहा कि कांग्रेस एक समंदर है किसी नेता के छोड़ कर चले जाने से कांग्रेस की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पहले भी कई नेता जा चुके हैं, लेकिन अनेक नेताओं को वापस कांग्रेस में आना पड़ा है। गहलोत ने कहा कि कांग्रेस पार्टी अपने सिद्धांतों पर चलने वाली पार्टी है।

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