‘पानी की खातिर पानी की तरह बहा पैसा’, बुंदेलखंड की प्यास कैसे बुझे जब करोड़ों का हो गया बंदरबांट

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज़ मध्यप्रदेश 

संवाददाता 

छतरपुर। गर्मी की शुरुआत हो और बुंदेलखंड के जल संकट की चर्चा न हो, ऐसा हो नहीं सकता. ऐसा इसलिए, क्योंकि यह मौका कुछ लोगों के लिए उत्सव से कम नहीं होता. उन्हें लूट का भरपूर मौका जो मिलता है. इस बार भी ऐसा ही कुछ होगा, यह आशंका तो जताई ही जा सकती है. क्योंकि बीते दशकों में इस इलाके के जल संकट को खत्म करने के लिए करोड़ों का बजट पानी की तरह बहा दिया गया, मगर हिसाब लेने वाला कोई सामने नहीं आया.

कई जगह  में पानी की समस्या 
बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश के सात जिलों और मध्य प्रदेश के सात जिलों को मिलाकर बनता है, मगर हम यहां बात मध्य प्रदेश के सात जिलों सागर, दमोह, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, निवाड़ी और दतिया की करने जा रहे हैं. यह ऐसा इलाका है, जो कभी पानीदार हुआ करता था. क्योंकि चंदेलकालीन और बुंदेला राजाओं के दौर में जल संरचनाओं पर खासा जोर था. वर्तमान में तस्वीर एकदम उलट है और यहां के बड़े हिस्से में पानी के संकट की कहानियां खूब सामने आती हैं

पानी के लिए पैसे का हुआ बंदरबाट
गर्मी का मौसम आते ही यहां के अधिकांश ग्रामीण इलाकों में पहुंचते ही आपको जल संकट की तस्वीरें नजर आने लगती है. हर तरफ जल स्रोतों पर लोगों का जमावड़ा होता है, पानी के लिए तो खून तक बहाने को लोग तैयार हो जाते हैं. इस इलाके के जल संकट को खत्म करने के लिए प्रयास न हुए हो, ऐसा भी नहीं है. वर्ष 2007-08 में मध्य प्रदेश के हिस्से में साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए बुंदेलखंड पैकेज के तहत आए, मगर स्थितियां नहीं बदली. क्योंकि बड़ी रकम की बंदरबांट हुई.

जांच में हुआ खुलासा 
बुंदेलखंड में कई रोचक मामले सामने आए, यहां निर्माण कार्य की सामग्री का परिवहन जिस ट्रक और डंपर के अलावा ट्रैक्टर के जरिए दिखाया गया, जब वाहनों नंबरों की तहकीकात की गई तो पता चला कि वह नंबर दो पहिया वाहनों के थे. वहीं जो तालाब और जल संरचनाएं बनी भी, वे दूसरी और तीसरी बारिश में ही धराशाई हो गई. पैकेज में हुई गड़बड़ी को लेकर लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता पवन घुवारा का कहना है, इस इलाके में बुंदेलखंड पैकेज में 1296 संरचनाओं का निर्माण हुआ था, जब परीक्षण किया गया तो उसमें से 1098 संरचनाएं अनुपयोगी पाई गई थी.

भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों पर कब चलेगा बुलडोजर ?
इस गड़बड़ी में लिप्त अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इन भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई हुई होती, तो और लोग सबक लेते मगर ऐसा हुआ नहीं. कुल मिलाकर सरकार जिस तरह अपराधियों पर बुलडोजर चला रही है, उसे इस तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों पर भी बुलडोजर चलाना चाहिए. नहीं तो अभियान कुछ लोगों के लिए लूट के अलावा कुछ नहीं होंगे.

मुख्यमंत्री का जल अभिषेक अभियान क्या है असरदार ?
जानकारों की मानें तो बीते चार दशकों में इस इलाके में सिर्फ पानी के नाम पर कई हजार करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए, मगर ऐसा गांव खोजना मुश्किल है जो पूरे साल पानीदार रहता हो या वहां जल संकट न होता हो. यहां तालाब, नदी बचाने की मुहिम चली और नए तालाबों के निर्माण भी कागजों से आगे नहीं गया. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर जल अभिषेक अभियान चलाने का ऐलान किया है, जिसके तहत जल संरचनाएं दुरुस्त की जाएंगी और पुनर्जीवित किया जाएगा. सरकार बजट मंजूर करेगी और इस पर गिद्ध की तरह नजर गड़ाए लोग झपटने में नहीं चूकेंगे, इस बात की हर किसी के मन में है आशंका .

होना चाहिए था सोशल ऑडिट 
सामाजिक कार्यकर्ता मनोज चौबे का कहना है कि बुंदेलखंड कभी पानीदार हुआ करता था, मगर अब यहां जल संकट सबसे बड़ी समस्या बन गया है. सरकार के अभियान कुछ लोगों के लिए उत्सव जैसे होते हैं, क्योंकि यह अभियान उनको मौज का मौका देते है. जल संरचनाएं और तालाब ऐसे स्थान पर बना दिए जाते हैं, जिनकी कोई उपयोगिता नहीं होती और इसका स्वतंत्र तौर पर सोशल ऑडिट भी नहीं होता. यही कारण है कि हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जाने के बावजूद इस इलाके का जल संकट खत्म नहीं हुआ है. इसका बड़ा कारण लोगों को जानकारी न होना और उनकी भागीदारी न होना भी है.

काम का मूल्यांकन और आकलन जरुरी ?
कुल मिलाकर सरकार एक बार फिर पानी के संकट से निपटने के लिए जल अभिषेक अभियान चलाने जा रही है. यह अभियान अप्रैल में शुरू होगा और बारिश का दौर मध्य जून से रफ्तार पकड़ जाएगा. बड़ा सवाल है कि ऐसे में कितना काम हुआ है, इसका मूल्यांकन और आकलन कैसे होगा. क्योंकि बनाई गई संरचनाएं पानी से भर चुकी होंगी, खोदे गए गडढ़ों को तालाब बताना भी निर्माण एजेंसी के लिए आसान हो जाएगा. हर बार यही होता है और इसी का लाभ तमाम जल संरक्षण के पैरोकार और निर्माण एजेंसियां उठाती है.

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