आम आदमी के हाल बेहाल – अरे सुनती हो 100 हैं क्या, गाड़ी में पेट्रोल नहीं है शाम को आकर लौटाता हूं!

- हां मैं पत्रकार हूं

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज़ 

संवाददाता राजकुमार पंत

पत्रकार की कलम से
क्या करते रहते हो दिन रात,बगल से बाबूजी की आवाज आई कलेक्टर कमिश्नर से नीचे बात नहीं करते और सौ दो सौ रुपए ‌बीबी‌ से मांग रहे हो। अरे बाबूजी एक बिल लगा है,सब एक ही बार में लौटा दूंगा। ये कहानी मेरी ही नहीं हर पत्रकार की है जो सच के लिए लड़ता है

घर में लड़ाई बाहर लड़ाई हर आदमी यही सोचता है की ‌कुछ जुगाड होगा इसलिए खड़ा है लेकिन वहां खड़े हर उस पत्रकार का दिल ही जानता है कि वह वहां क्यूं खड़ा है, चिलचिलाती धूप,सहन न होने वाली ठंड, बारिश हर बात को पीछे हम बस इतना चाहते हैं कि ये खबर पहले हम दिखायें। मैं यह दावा नहीं करुंगा कि मैं ईमानदार हूं पर बहुत से लोग ऐसे हैं जो ईमानदारी से अपना काम करना चाहते हैं, घर परिवार सब पीछे छोड़ कर बस समाज के लिए लगें हैं। जब उनके साथ कोई नेता, प्रशासन कुछ ग़लत करता है तो पता नहीं क्यूं अपने इस पेशे पर पछतावा होता है और यह एहसास होता है शायद घर वाले सही कहते थे और अब सीधी जिले के नेताओं और पुलिस प्रशासन ने हमारे घरवालों को सही सिद्ध कर दिया है, हो सकता है कि अगला कनिष्क हमारे बीच में ही हो वो मैं आप या हमारा कोई परिचित मित्र पत्रकार भी हों सकता है

हो सकता है मेरे कुछ पत्रकार भाइयों से मेरे कुछ वैचारिक मतभेद हो पर इस समय हमें एक होने की जरूरत है क्योंकि कनिष्क के साथ जो हुआ वो हमारे साथ भी हो सकता है

* राजकुमार पंत दैनिक राष्ट्रीय जजमेंट ब्यूरो गुना*?

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