शहीद किशनसिंह ने अंतिम सांस लेने से पहले, तीन आतंकियों को मार गिराया

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रतनगढ़/चुरू। गांव के पवनसिंह राठौड़ ने बताया कि किशनसिंह साहसी थे। दीपावली पर गांव आए थे और करीब 10-12 रोज पहले ही ड्यूटी पर गए थे।
शहीद के मित्र और पड़ौसी रमेश बाटड़ ने बताया कि शनिवार सुबह किशनसिंह ने वीडियो कॉल कर पत्नी संतोष से बात की।
चूरू जिले की रतनगढ़ तहसील के गांव भींचरी के 31 वर्षीय सपूत किशनसिंह जम्मू कश्मीर के पुलवामा में शनिवार को आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हो गए। अंतिम सांस लेने से पहले उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया।
इनमें माेस्ट वांटेड जहूर ठोकर भी शामिल था। लाडले की शहादत की खबर मिलते ही पूरा गांव गमगीन हो गया। शहीद की वीरांगना संतोष कंवर बेसुध हो गई।
इसके बाद आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ के दौरान किशनसिंह ने तीन आतंकियों को मार गिराया। किशनसिंह नौकरी करते हुए हाल ही में बीए की थी। किशनसिंह हमेशा से निडर थे और ड्यूटी के दौरान ऑपरेशन को लीड करते थे।
किशनसिंह के दो बेटे हैं, पांच वर्षीय धर्मवीर व दो वर्षीय मोहित। ये दोनों पिता की शहादत से बेखबर हैं। करीब सात वर्ष पूर्व किशनसिंह के पिता का निधन हो गया था।
बड़ा भाई जीवराजसिंह दिव्यांग है, जिसके कारण परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी किशनसिंह के कंधों पर ही थी। लांस नायक के पद पर तैनात किशनसिंह की पूरी बटालियन बीकानेर आ गई,
लेकिन बड़े अधिकारियों ने उसे पुलवामा में ही रोक लिया था तथा एक-दो रोज बाद उन्हें बीकानेर भेजने की बात कही थी। वर्तमान में शहीद की पत्नी व बच्चे रतनगढ़ में निवास करते हैं।
शहीद किशनसिंह के मित्र रमेश बाटड़ के अनुसार 2009 के अंतिम महीने में किशनसिंह की फौज में भर्ती हुए थे। 2011 में पिता का निधन हो गया था। इसके बाद 2012 में किशनसिंह की शादी हुई थी।
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बाटड़ ने बताया कि दीपावली पर जब वे छुट्टी आए थे, तो उसने चर्चा की कि अब तो डेढ़-दो महीने की बात है, हमारी बटालियन बीकानेर आ जाएगी। किशनसिंह के बड़े भाई जीवराजसिंह व दो बहिने सरिता कंवर व सुमन कंवर है।

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