नई दिल्ली। तीन तलाक को गैर-कानूनी करार देने से जुड़े नए विधेयक पर गुरुवार को लोकसभा में चर्चा हुई। लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बिल को ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग की।
वहीं, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस की दो सांसद सुष्मिता देव और रंजीत रंजन ने तीन तलाक देने के दोषी को जेल भेजे जाने के प्रावधान का विरोध किया।
चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जब पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत 22 इस्लामिक देशों ने तीन तलाक को गैर-कानूनी करार दिया है तो
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में तीन तलाक को अपराध मानने में क्या परेशानी है? महिला सशक्तिकरण के लिए यह बिल जरूरी है।
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मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “तीन तलाक से जुड़ा बिल महत्वपूर्ण है, इसका गहन अध्ययन करने की जरूरत है। यह संवैधानिक मसला है। मैं अनुरोध करता हूं कि इस बिल को ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया जाए।”
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ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी (संयुक्त प्रवर समिति) में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं। यदि कोई सदस्य किसी बिल में संशोधन का प्रस्ताव पेश करता है तो उसे ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाता है। इस कमेटी के सदस्यों में कौन शामिल किया जाएगा, इसका फैसला सदन करता है।
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कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने कहा कि यह बिल महिला सशक्तिकरण के लिए नहीं, बल्कि मुस्लिम पुरुषों को दोषी करार देने के लिए है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 300 पेज के जजमेंट में ये कहीं नहीं लिखा कि तीन तलाक पर कानून बनना चाहिए और इसमें सजा का प्रावधान होना चाहिए। सरकार गलत तरीके से यह विधेयक लाई है और इसके बहाने वोट बैंक की राजनीति की जा रही है।
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भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा- फोन पर मैसेज भेजकर, फोन करके या अन्य तरीके से तीन बार तलाक कहकर किसी महिला के जीवन को बर्बाद करने की छूट को समाप्त किया जाना चाहिए। कांग्रेस अगर चाहती तो यह बिल 30 साल पहले पास करा सकती थी। लेकिन, उसने बंटवारे की राजनीति को प्राथमिकता दी।
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केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा- कुछ लोगों ने फतवा जारी करने की दुकानें खोल ली हैं। यह देश संविधान से चलता है, शरीयत से नहीं। तीन तलाक सामाजिक कुरीति है। इसी तरह से सती प्रथा और बाल विवाह को भी खत्म किया गया था।
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सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने 3 साल की सजा के प्रावधान का विरोध किया।
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कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन ने कहा कि तीन तलाक के मामलों में पति को जेल भेजने पर मुस्लिम महिलाओं को क्या मुआवजा मिलेगा? हिंदू महिलाओं से जुड़े मसलों पर चर्चा क्यों नहीं होती? क्या सरकार हिंदू महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून लाएगी?
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केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद 400 से ज्यादा महिलाएं तीन तलाक से प्रभावित हुई हैं। यह बड़ा आंकड़ा है। अगर एक महिला भी प्रभावित हो रही है तो इस सदन में बैठे हर व्यक्ति को इससे विचलित होना चाहिए।
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असदउद्दीन ओवैसी ने कहा- मैं इस बिल की मुखालफत करता हूं। जब तीन तलाक के मामलों में पति जेल चला जाएगा तो महिला को छत, खाना कौन देगा? सरकार देगी?
सरकार ने कहा- बिल में हमने हर मांग का ध्यान रखा
चर्चा का जवाब देते हुए विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि एफआईआर का दुरुपयोग न हो, समझाैते का माध्यम हो और जमानत का प्रावधान हो, विपक्ष की मांग पर ये सभी बदलाव बिल में किए जा चुके हैं। यह बिल किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं है।
जब यह संसद बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों के लिए फांसी की सजा पर मुहर लगा चुकी है तो यही संसद तीन तलाक को खत्म करने की आवाज क्यों नहीं उठा सकती? दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा जैसे कानूनों में भी सजा का प्रावधान है।
उस पर इस सदन ने भी विरोध नहीं किया। फिर तीन तलाक के मामले में विरोध क्यों हो रहा है? पीड़ित महिला को सम्मान देने के लिए ही हमने मजिस्ट्रेट की सुनवाई के बाद जमानत का प्रावधान दिया है।
यह भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने कानून बनाने को नहीं कहा था। जबकि हकीकत यह है कि जजमेंट में पांच जज थे। तीन जज कह चुके हैं कि तीन तलाक असंवैधानिक है। जस्टिस खेहर ने कहा था कि कानून बनना चाहिए।
विधेयक पास नहीं हुआ तो सरकार को फिर अध्यादेश लाना पड़ेगा
सरकार ने तीन तलाक को अपराध करार देने के लिए सितंबर में विधेयक पारित किया था। इसकी अवधि 6 महीने की होती है। लेकिन अगर इस दरमियान संसद सत्र आ जाए तो सत्र शुरू होने से 42 दिन के भीतर अध्यादेश को बिल से रिप्लेस करना होता है।
मौजूदा संसद सत्र 8 जनवरी तक चलेगा। जनवरी 2017 से सितंबर 2018 तक तीन तलाक के 430 मामले सामने आए थे। इनमें 229 मामले सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले और 201 केस उसके बाद के हैं।
16 महीने पहले आया था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
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अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की 1400 साल पुरानी प्रथा को असंवैधानिक करार दिया था और सरकार से कानून बनाने को कहा था।
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सरकार ने दिसंबर 2017 में लोकसभा से मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक पारित कराया लेकिन राज्यसभा में यह बिल अटक गया, जहां सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है।
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विपक्ष ने मांग की थी कि तीन तलाक के आरोपी के लिए जमानत का प्रावधान भी हो।
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इसी साल अगस्त में विधेयक में संशोधन किए गए, लेकिन यह फिर राज्यसभा में अटक गया।
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इसके बाद सरकार सितंबर में अध्यादेश लेकर आई। इसमें विपक्ष की मांग काे ध्यान में रखते हुए जमानत का प्रावधान जोड़ा गया। अध्यादेश में कहा गया कि तीन तलाक देने पर तीन साल की जेल होगी।
बिल में ये बदलाव हुए
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अध्यादेश के आधार पर तैयार किए गए नए बिल के मुताबिक, आरोपी को पुलिस जमानत नहीं दे सकेगी। मजिस्ट्रेट पीड़ित पत्नी का पक्ष सुनने के बाद वाजिब वजहों के आधार पर जमानत दे सकते हैं। उन्हें पति-पत्नी के बीच सुलह कराकर शादी बरकरार रखने का भी अधिकार होगा।
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बिल के मुताबिक, मुकदमे का फैसला होने तक बच्चा मां के संरक्षण में ही रहेगा। आरोपी को उसका भी गुजारा देना होगा। तीन तलाक का अपराध सिर्फ तभी संज्ञेय होगा जब पीड़ित पत्नी या उसके परिवार (मायके या ससुराल) के सदस्य एफआईआर दर्ज कराएं।