नई दिल्ली। मोदी सरकार राफेल डील पर आगे बढ़ गई है। विवादों और डील में घोटाला होने के विपक्ष के आरोपों के बीच सरकार ने 36 लड़ाकू विमानों के ऐवज में 25% रकम फ्रांस को चुका दी है। यह डील 59 हजार करोड़ रुपए की मानी जा रही है।
न्यूज एजेंसी एएनआई ने वायुसेना के सूत्रों के हवाले से बताया कि सितंबर 2016 की डील के मुताबिक वायुसेना को भारत की जरूरतों के मुताबिक 36 तैयार राफेल विमान मिलने हैं।
डील के नियम-शर्तों के मुताबिक एक चौथाई रकम फ्रांस सरकार को चुकाई जा चुकी है। सरकार चाहती है कि तय शेड्यूल के मुताबिक सितंबर 2019 में पहले राफेल लड़ाकू विमान की भारत को डिलीवरी मिल जाए।
उम्मीद है कि इसके बाद 2020 के मध्य तक भारत को चार राफेल विमानों का पहला जत्था भी मिल जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अदालत की निगरानी में राफेल डील की जांच की मांग से जुड़ी सभी याचिकाएं 14 दिसंबर को खारिज कर दी थीं।
कोर्ट ने कहा था कि राफेल विमान खरीद की प्रक्रिया में शक की कोई गुंजाइश नहीं है। इसमें कारोबारी पक्षपात होने जैसी कोई बात सामने नहीं आई है।
सरकार ने कोर्ट को बताया था कि राफेल विमान खरीदने का फैसला सालभर में 74 बैठकों के बाद किया गया। 126 राफेल खरीदने के लिए जनवरी 2012 में ही फ्रांस की दैसो एविएशन को चुन लिया गया था।
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लेकिन, दैसो और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के बीच आपसी सहमति नहीं बन पाने से ये सौदा आगे नहीं बढ़ पाया। एचएएल को राफेल बनाने के लिए दैसो से 2.7 गुना ज्यादा वक्त चाहिए था।
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राफेल का फ्रेंच में मतलब तूफान होता है। दैसो कंपनी इसी नाम से लड़ाकू विमान बनाती है।
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राफेल विमान एक मिनट में 60 हजार फीट की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। इसकी रेंज 3700 किमी है।
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यह विमान 2200 से 2500 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकता है।
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वायुसेना के पास विमानों की 32 स्क्वॉड्रन हैं, जबकि जरूरत 42 स्क्वॉड्रन की है। राफेल से नई स्क्वॉड्रन बनाई जा सकेगी।