कुंभ मेले के इतिहास में पहली बार किन्नर समाज ने बनाया अपना अखाड़ा

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प्रयागराज कुंभ मेले के इतिहास में पहली बार किन्नर समाज ने अपना अलग अखाड़ा बनाया। जिसकी आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी मुख्य पीठाधीश्वर बनीं। उन्हीं के नेतृत्व में किन्नर अखाड़े की भव्य पेशवाई को देखने के लिए जनसैलाब उमड़ा। बता दें कि किन्रर अखाड़े की देवत्व यात्रा पूरी शानोशौकत के साथ शहर के राम भवन चौराहे से शुरू हुई।
आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की अगुवाई में राम भवन चौराहे स्थित भगवान शंकर के मंदिर से पूजा पाठ के बाद यात्रा शुरू की गई। ये पेशवाई अलोपी बाग स्थित शंकराचार्य आश्रम में पूजन के बाद आगे बढ़ी। जिसमें सबसे आगे हाथों में तलवार लिए महामंडलेश्वर ऊंट पर सवार होकर निकलीं।
वहीं उनके पीछे देश-विदेश से आए किन्नर, पीठाधीश्वर, महंत आदि रथ पर सवार नजर आए। इस यात्रा के दौरान एक अनूठा नजारा देखेने को मिला। यहां वाराणसी की महाकाल डमरू टीम विशाल डमरू बजाते लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रही और शहरवासी डमरू की धुन पर झूमते दिखाई दिए। बता दें कि विशाल यात्रा के स्वागत के लिए सड़क के दोनों किनारों से पुष्पवर्षा की गई।
बता दें कि प्रयागराज के कुंभ में पहली बार ऐसा हो रहा है जब 13 अखाड़ों के अलावा किसी और अखाड़े ने पेशवाई निकाली हो। अब तक परंपरा के मुताबिक अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता प्राप्त 13 अखाड़े ही पेशवाई निकालते थे।
लेकिन लंबी लड़ाई के बाद किन्नर अखाड़े को कुंभ में पेशवाई की इजाजत मिली है। गौरतलब है कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने किन्र अखाड़े के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। हालांकि मेला प्रशासन को लैंगिकता के आधार पर किन्नरों को हक देना पड़ा।
मेला प्रशासन की ओर से किन्नर अखाड़े को वीआईपी सुविधाएं दी जा रही है। जिसमें शिविर के लिए 25 बीघा जमीन, 200 स्विस कॉटेज, 200 फैमिली कॉटेज टेंट, 250 अपर फ्लाई टेंट, सुरक्षा के लिए दो कंपनी पीएसी प्रदान किया गया है। इसके साथ ही मैटिंग के साथ 500*500 पाइप टिन, 500 वीवीआईपी कुर्सी, 200 सोफा, 250 तख्त, 500 ट्यूबलाइट, 500 शौचालय जैसे कई सुविधाओं की मांग अधिकांश पूरी हो चुकी हैं।
बता दें कि मकर संक्रांति के दिन (15 जनवरी) से कुंभ मेले की शुरुआत होगी। इसके साथ ही 4 मार्च को महाशिवरात्रि के साथ ही इस मेले का आखिरी स्नान आयोजन होगा। यानि करीब 50 दिनों तक कुंभ में स्नान का अवसर रहेगा। गौरतलब है कि
हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज में ही कुंभ और अर्धकुंभ का आयोजन होता है। जिसमें नासिक में गोदावरी नदी के तट पर, उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर, हरिद्वार और प्रयाग में गंगा नदी के तट पर आयोजन होता है। वहीं सबसे बड़ा मेला कुंभ 12 सालों के अंतर में तो वहीं 6 वर्षों के अंतर में अर्ध कुंभ के नाम से मेले का आयोजन होता है।
कुंभ 15 जनवरी से 4 मार्च तक चलेगा। इस दौरान हर दिन स्नान होगा। लेकिन कुंभ में शाही स्नान की काफी अहमियत होती है। ऐसे में बता दें कि 15 जनवरी को पहला शाही स्नान, 04 फरवरी को दूसरा शाही स्नान और 10 मार्च को तीसरी शाही स्नान होगा।

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