असम: नागरिकता बिल पर, सहयोगी पार्टी ने बीजेपी सरकार से वापस लिया समर्थन

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असम में सिटिजनशिप बिल को लेकर हुए मतभेद के बाद असम गण परिषद ने बीजेपी की अगुआई वाली सरकार से समर्थन वापस ले ले लिया है। पार्टी अध्यक्ष अतुल वोरा ने इस बारे में जानकारी दी है। असम के पूर्व सीएम प्रफुल्ल महंत ने भी सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान किया। असम गण परिषद ने सिटिजनशिप बिल पर यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि
यह असम समझौते को ‘अर्थहीन’ बना देगा। महंत के मुताबिक, नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 ने बीजेपी और एजीपी के बीच आपसी सहमति का उल्लंघन किया है। इससे पहले, एजीपी अध्यक्ष वोरा ने भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को चिट्ठी लिखकर इस बिल पर आपत्ति जताई थी।
बता दें कि 126 सदस्यों वाली असम विधानसभा में बीजेपी का असम गण परिषद और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट के साथ गठबंधन है। इसमें 60 सदस्य बीजेपी के, 14 एजीपी जबकि 12 बीजीएफ के हैं। समर्थन वापसी से सरकार को कोई खतरा नहीं है। हालांकि, जल्द होने वाले लोकसभा चुनावों पर इसका असर पड़ सकता है।
दरअसल, नागरिकता असम में बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है। इस बिल के जरिए सिटिजनशिप एक्ट 1955 में बदलाव की तैयारी है ताकि बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान आदि के हिंदुओं, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाइयों आदि को नागरिकता देने का रास्ता साफ हो सके।
इसके लिए इन लोगों का भारत में कम से कम 6 साल रहना जरूरी होगा। वर्तमान कानून के मुताबिक, सामान्य परिस्थितियों में और अवैध प्रवासी न होने की दशा में यह समयावधि फिलहाल 12 साल है।
असम गण परिषद ने यह फैसला ऐसे वक्त में लिया है, जब हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी ने सिलचर में ऐलान किया कि उनकी सरकार इस कानून को संसद में पास कराने की दिशा में काम कर रही है। शुक्रवार को आयोजित रैली में पीएम ने दावा किया था कि
इस बिल के जरिए उन सभी का ख्याल रखने की तैयारी है, जो ‘विभाजन के पीड़ित’ रहे हैं। वहीं, एजीपी ने शनिवार को दोहराया था कि अगर बिल लोकसभा में पास हुआ तो वे गठबंधन से समर्थन वापस ले लेंगे। महंत ने कहा था कि यह बिल बीजेपी की अगुआई वाली केंद्र सरकार की दोहरी नीतियों को दर्शाता है।
महंत के मुताबिक, एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट की अगुआई में नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस 1951 का अपडेशन जारी है, वहीं सरकार विदेशियों को कानूनी मान्यता देने की तैयारी कर रही है।

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