क्‍या मनमोहन सरकार की र‍िपोर्ट को आधार बना मोदी सरकार ने चलाया आरक्षण का हथ‍ियार?

0
केंद्र की मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है। इसके लिए सरकार संविधान में संशोधन भी करने जा रही है। लेकिन, कमजोर वर्ग को आरक्षण देने की असल कवायद मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई।
कमजोर सवर्णों को आरक्षण के लिए तब एक कमेटी ने तत्कालीन सरकार को अपनी रिपोर्ट भी दी थी। जानकारों का मानना है कि बीजेपी उसी रिपोर्ट का इस्तेमाल लोकसभा चुनाव से पहले सियासी हथियार के तौर पर करने जा रही है।
जुलाई, 2006 में यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में सवर्णों में आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा एक कमेटी का गठन किया गया था। 22 जुलाई, 2010 को सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री मुकुल वासनिक को कमेटी ने अपना रिपोर्ट सौंप दिया। हालांकि, तब इसमें शामिल तथ्यों को उजागर नहीं किया गया।
इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक मुकुल वासनिक को कमेटी द्वारा सौंपे गए रिपोर्ट में 14 सुझाव दिए गए थे। उनमें से एक में इनकम टैक्स जमा नहीं करने वाली जातियों को ‘आर्थिक रूप से पिछड़ा’ घोषित करने की सिफारिश शामिल थी।
अगड़ी जातियों के आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों की संख्या का आंकलन एक करोड़ के करीब किया गया था और प्रति परिवार 6 लोगों के हिसाब से इस श्रेणी में लोगों की संख्या 6 करोड़ बतायी गई। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस तबके को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की बात कही थी।
इसके बाद कई राज्यों में गरीब सवर्णों के निर्धारण को लेकर कमेटियां बनीं। 2011 में बिहार ने भी सवर्ण आयोग बनाया था। जिसमें गरीब सवर्ण लोगों का आंकलन शामिल था। इसमें वो परिवार जिनकी वार्षिक आय 1.5 लाख रुपये है उन्हें गरीब माना गया। इसके बाद केरला में 2012 और गुजरात में भी सवर्ण जातियों में गरीबों को लेकर कमेटी का गठन किया गया।
जानकारों का मानना है कि केंद्र की मोदी सरकार का कमजोर तबके को आरक्षण देने का फैसला राजनीतिक रूप से फलदायी हो सकता है। लेकिन, इसके अलावा चुनौतियां भी काफी होंगी। अगर, अतिरिक्त 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान हो जाता है तो
सरकार के सामने शैक्षणिक संस्थानों में सीट बढ़ाने और उनका दायरा फैलाने का चैलेंज बना रहेगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अतिरिक्त कोटा लागू होने के बाद शैक्षणिक संस्थानों में लगभग 10 लाख सीटें बढ़ानी होंगी। केंद्र सरकार के मुताबिक आईआईटी, आईआईएम, सेंट्रल यूनिवर्सिटीज, राज्य सरकारों के विभिन्न संस्थानों में सीटों की संख्या बढ़ानी होगी।
जातिगत समीकरण के लिहाज से बीजेपी को सबसे ज्यादा फजीहत उत्तर प्रदेश में दिखाई दे रही है। उत्तर प्रदेश की 71 लोकसभा सीटों पर काबिज बीजेपी को अखिलेश और मायावती के गठबंधन से बड़ा ख़तरा दिखाई देने लगा है। इसके अलावा अपना दल का भी तेवर बीजेपी को परेशान कर रहा है।
ऐसे में बीजेपी के पास दो ऐसे दांव हैं जिनसे वह इन चुनौतियों से निपटने की तैयारी कर रही है। इनमें एक है ओबीसी कोटे में बंटवारा और दूसरा, प्रदेश भर में मोदी की ताबड़तोड़ रैलियां। ओबीसी कोटे के भीतर कोटा निर्धारित करने का खाका अभी ठोस रूप में उभर कर सामने नहीं आया है। लेकिन, पीएम मोदी की रैलियों की तारीख निर्धारित हो चुकी है।
 मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 9 जनवरी से पीएम मोदी आगरा की रैली से अपना चुनावी शंखनाद करेंगे। इसके बाद अलीगढ़, वाराणसी, लखनऊ और प्रयागराज में लोगों को संबोधित करेंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री अखिलेश और मायावती पर लगे भ्रष्टाचार के मुद्दों को भुनाने की कोशिश करेंगे।

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More