मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने, सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को हटाया
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार चयन समिति ने सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को हटा दिया। रिश्वतखोरी और कर्तव्य निवर्हन में लापरवाही के आरोपों के आधार पर उन्हें हटाने का फैसला हुआ।
सीबीआई के 55 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है। समिति ने 2:1 से यह निर्णय लिया। मोदी और समिति के दूसरे सदस्य सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सीकरी वर्मा को हटाए जाने के पक्ष में थे।
वहीं, समिति के तीसरे सदस्य और लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे सीबीआई चीफ को हटाए जाने के खिलाफ थे। खड़गे ने समिति को अपना विरोध पत्र भी सौंपा। वर्मा का सीबीआई में कार्यकाल 31 जनवरी को खत्म हो रहा था।
1979 की बैच के आईपीएस अफसर वर्मा को अब सिविल डिफेंस, फायर सर्विसेस और होम गार्ड विभाग का महानिदेशक बनाया गया है। वहीं, नागेश्वर राव दोबारा सीबीआई चीफ बन गए हैं।
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प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की इस रिपोर्ट पर गौर किया कि मीट कारोबारी माेइन कुरैशी के खिलाफ सीबीआई के नंबर-2 अफसर राकेश अस्थाना जांच कर रहे थे। सीबीआई इस मामले में हैदराबाद के कारोबारी सतीश बाबू सना को आरोपी बनाना चाहती थी, लेकिन आलोक वर्मा ने कभी इसकी मंजूरी नहीं दी।
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सीबीआई को यह भी सबूत मिले कि मोइन कुरैशी के खिलाफ जांच को प्रभावित करने की कोशिश की गई थी। दो करोड़ रुपए की रिश्वत लिए जाने के भी सबूत थे। इस मामले में वर्मा की भूमिका संदेहास्पद थी। प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ मामला बन रहा था।
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दिलचस्प रूप से सना ने एक अस्थाना के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई थी और आरोप लगाया था कि कैसे उसने बिचौलियों के जरिए अस्थाना को रिश्वत दी।
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सीवीसी की रिपोर्ट में रिसर्च और एनालिसिस विंग (रॉ) द्वारा पकड़े गए फोन कॉल के इंटरसेप्ट्स का भी जिक्र था। इस बातचीत में ‘सीबीआई के नंबर वन अफसर को पैसे सौंपे जाने’ की चर्चा हुई थी।
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सीवीसी के मताबिक, गुड़गांव में एक जमीन खरीदने के मामले में भी वर्मा का नाम सामने आया था। इस डील में 36 करोड़ रुपए का लेनदेन होने का आरोप है।
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लालू प्रसाद से जुड़े आईआरसीटीसी से जुड़े एक केस में भी सीवीसी ने पाया कि आलोक वर्मा ने एक अफसर को बचाने के लिए एफआईआर में जानबूझकर उसका नाम शामिल नहीं किया।
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सीवीसी के मुताबिक, आलोक वर्मा दागी अफसरों को सीबीआई लाने की कोशिश कर रहे थे।
वर्मा और जांच एजेंसी में नंबर-2 अफसर राकेश अस्थाना के बीच विवाद के बाद केंद्र सरकार ने दोनों को छुट्टी पर भेज दिया था। इस फैसले के खिलाफ वर्मा की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 76 दिन बाद बहाल तो कर दिया था, लेकिन
उन्हें नीतिगत फैसले लेने से रोक दिया था। साथ ही कहा था कि उच्चाधिकार चयन समिति ही वर्मा पर लगे आरोपों के बारे में फैसला करेगी।
नियमानुसार, सीबीआई निदेशक का चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति करती है। चीफ जस्टिस और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता) इसके सदस्य होते हैं। अगर इनमें से कोई सदस्य बैठक में शामिल नहीं होता है तो
फैसला अगली बैठक तक टाल दिया जाता है। समिति की पहली बैठक बुधवार को हुई थी। लेकिन सीवीसी की तरफ से कागजात नहीं मिलने पर फैसला टाल दिया गया था। गुरुवार को इस समिति की दूसरी बैठक हुई जो दो घंटे चली।
फैसला हैरान करने वाला, मोदी क्यों घबरा रहे हैं: कांग्रेस
कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा, ”सीवीसी की सिफारिश पर सरकार ने अनाधिकृत फैसला लिया। सीवीसी की कार्यशैली पर सीधा सवाल उठ रहा है। क्या वे पीएमओ के निर्देश पर काम कर रहे हैं।
आज की बैठक से साफ है कि न्याय की बात करने में समिति नाकाम रही है। इसमें तीन ही लोग थे। मल्लिकार्जुन खड़गे ने मांग की थी कि 23 अक्टूबर की रात जो कुछ हुआ, एक स्वतंत्र कमेटी इसकी जांच करे।
क्या कारण है कि मोदी सीबीआई निदेशक को हटाकर अपना आदमी बैठाना चाहते हैं। क्या मोदीजी किसी जांच पर पर्दा डालना चाहते हैं? वो नहीं चाहते हैं कि सीबीआई कुछ लोगों की जांच करे।”
बहाली के दूसरे दिन वर्मा ने पांच अफसरों का तबादला किया था
सीबीआई निदेशक पद पर बहाली के दूसरे दिन आलोक वर्मा ने जांच एजेंसी के पांच आला अफसरों का तबादला कर दिया। इनमें दो ज्वाइंट डायरेक्टर, दो डीआईजी और एक असिस्टेंट डायरेक्टर शामिल हैं।
इससे पहले उन्होंने अंतरिम निदेशक एल नागेश्वर राव के ज्यादातर ट्रांसफर आदेशों को रद्द कर दिया था। वर्मा को छुट्टी पर भेजने के केंद्र के फैसले के बाद राव को अंतरिम निदेशक बनाया गया था। राव ने वर्मा की टीम के 10 सीबीआई अफसरों के ट्रांसफर किए थे।
वर्मा ने अस्थाना के मामले में जांच अधिकारी नियुक्त किया था
आलोक वर्मा ने बहाली के दूसरे ही दिन सीबीआई में एसपी मोहित गुप्ता काे राकेश अस्थाना के खिलाफ लगे आरोपों की जांच का जिम्मा सौंपा था।
उनके द्वारा ट्रांसफर किए गए अन्य अधिकारियों में ज्वाइंट डायरेक्टर अजय भटनागर, ज्वाइंट डायरेक्टर मुरुगेसन, डीआईजी एमके सिन्हा, डीआईजी तरुण गौबा और असिस्टेंट डायरेक्टर एके शर्मा शामिल हैं।
इसके अलावा अनीश प्रसाद को मुख्यालय में डिप्टी डायरेक्टर (एडमिनिस्ट्रेशन) बनाए रखने और केआर चौरसिया को स्पेशल यूनिट-1 (सर्विलांस) की जिम्मेदारी सौंपी गई।
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2016 में सीबीआई में नंबर दो अफसर रहे आरके दत्ता का तबादला गृह मंत्रालय में कर अस्थाना को लाया गया था।
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दत्ता भावी निदेशक माने जा रहे थे। लेकिन गुजरात कैडर के आईपीएस अफसर राकेश अस्थाना सीबीआई के अंतरिम चीफ बना दिए गए।
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अस्थाना की नियुक्ति को वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। इसके बाद फरवरी 2017 में आलोक वर्मा को सीबीआई चीफ बनाया गया।
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सीबीआई चीफ बनने के बाद आलोक वर्मा ने अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर बनाने का विरोध कर दिया। उन्होंने कहा था कि अस्थाना पर कई आरोप हैं, वे सीबीआई में रहने लायक नहीं हैं।
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अस्थाना स्पेशल डायरेक्टर बनाए गए। लेकिन मीट कारोबारी मोइन कुरैशी से जुड़े एक मामले की जांच के बाद अस्थाना और वर्मा ने एकदूसरे पर रिश्वतखोरी के आरोप लगाए।