किसके हिस्से में आई है कौन सी सीट:सपा-बसपा गठबंधन

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लखनऊ:बंटवारा हो चुका है, बीएसपी और समाजवादी पार्टी में सीटों का. दोनों ही पार्टियाँ ३८-३८ सीटों पैर लड़ेंगी मसला बराबरी पर हुआ . लेकिन किसके हिस्से में कौन सी सीट आई? इसका एलान अब तक नहीं हो पाया है. न ही उम्मीदवारों के नाम की लिस्ट ही जारी हो पाई है. जबकि मायावती और अखिलेश यादव ने गठबंधन का एलान 12 जनवरी को ही कर दिया था.
ये मान भी लिया जाए कि प्रत्याशियों के नाम सार्वजनिक करने में कौन सी जल्दबाज़ी है, तो भी लोकसभा सीटों के नाम का एलान तो हो जाना चाहिए था. जबकि बीएसपी चीफ़ मायावती ने कहा था कि हमने ये भी तय कर लिया है और जल्द बता भी दिया जाएगा. वैसे इस बात के 15 दिन बीत चुके हैं. ये माना जा रहा था कि बहिन जी अपने बर्थ डे पर 15 जनवरी को ये लिस्ट जारी करेंगी लेकिन वो तारीख़ भी निकल गई. दोनों ही पार्टियों के नेता और उनके समर्थक इस बात को जानने को बेक़रार हैं.
बीएसपी और समाजवादी पार्टी में गठबंधन होने के बाद टिकट के लिए मारामारी मची है. बड़े बड़े नेता चुनाव लड़ने के लिए लाइन में लगे हैं. अभी नहीं तो फिर कभी नहीं के मूड में हैं दोनों ही पार्टी के नेता क्योंकि इस बार टिकट मिलने को जीत की गारंटी माना जा रहा है. लोकसभा की एक एक सीट के लिए कई दर्जन दावेदार हैं लेकिन सबसे बड़ी परेशानी ये है कि उन्हें ये पता नहीं कौन सी सीट किस पार्टी के खाते में गई है. ये पता चल जाये तो काम आसान हो जाये.
बीएसपी में तो ये पता करना बड़ा कठिन काम है. सारे फ़ैसले मायावती ख़ुद करती हैं. बाक़ी किसी को कुछ पता नहीं रहता है लेकिन इस बार तो ये हाल समाजवादी पार्टी का भी हो गया है. अखिलेश यादव पूरी गोपनीयता बरत रहे हैं. उधर नेताओं की धड़कनें लगातार बढ़ती जा रही हैं. अखिलेश के क़रीबी लोगों से पता करने की कोशिशें की जा रही हैं. किसी को ये भी नहीं पता कि बीएसपी और एसपी के बीच सीटों के बँटवारे का क्या फ़ार्मूला है?
एक अनुमान ये है कि जो पार्टी जिस जगह पर दूसरे नंबर पर पिछली बार थी, वो सीट उसे मिल जायेगी. फिर ये भी ख़बर आई कि कुछ सीटों पर अदला बदली भी हो सकती है. अब मुसीबत ये है कि एक ही सीट से समाजवादी पार्टी के नेता भी चुनाव लड़ने के दावे ठोंक रहे हैं. वहीं बीएसपी के नेता भी मन ही मन ऐसी ही तैयारी में हैं. क्योंकि दोनों को ही नहीं पता कि वो सीट किसके हिस्से में आई है. ये बात अलग है कि मायावती ने कुछ लोकसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार पर फ़ैसला कर लिया है. यही काम अखिलेश यादव भी कर चुके हैं.
उदाहरण के तौर पर मिर्ज़ापुर को ले लीजिए. समाजवादी पार्टी के कई नेता यहाँ से चुनाव लड़ने को बेताब हैं. अखिलेश यादव से लेकर दिल्ली में बाक़ी नेताओं की परिक्रमा कर चुके हैं. पर ये सवाल उनके मन में सबसे पहले रहता है कि मिर्ज़ापुर सीट एसपी को मिलेगी या नहीं. अगर नहीं तो फिर मेहनत करने की क्या ज़रूरत? यही माहौल बीएसपी कैंप में भी है.

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मायावती के बारे में तो ये भी कहा जाता है कि एक ही सीट से वे कई बार उम्मीदवार बदल देती हैं. आज जो चुनाव प्रचार कर रहा है, क्या पता कल उसका टिकट ही कट जाए. पूर्वांचल में ऐसी ही एक जगह पर बहिन जी अब तक तीन बार टिकट बदल चुकी हैं. गठबंधन में आने के बाद अखिलेश यादव हर क़दम फूँक फूँक कर रख रहे हैं ताकि मायावती को कोई बात अखर न जाए. इसीलिए वे चाहेंगे कि दोनों पार्टियां साथ ही बाँटे हुए लोकसभा सीटों का एलान करें.

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