फर्जी नाम से ट्रेनों का ऑनलाइन टिकट बनाकर महंगे दाम पर बेचने वाली ट्रैवल्स एजेंसी में पुलिस ने मारा छापा

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पटना। आईआरसीटीसी की वेबसाइट से निजी आईडी पर मिलते-जुलते नाम से फर्जी टिकट बनाने वाले एक बड़े गिरोह का रेल पुलिस ने भंडाफोड़ किया है। दिल्ली से आई आईआरसीटीसी और
पटना जंक्शन आरपीएफ पोस्ट की टीम ने पटना जंक्शन के पास स्थित पूजा ट्रैवल्स में छापेमारी कर 4 लाख 36 हजार 352 रुपए के 98 ई-टिकट, 52 हजार कैश, एक कंप्यूटर, एक प्रिंटर व तीन मोबाइल जब्त किया। वर्ष 2017 से 2018 के बीच  इस एजेंसी ने 85 लाख 90 हजार 960 रुपए मूल्य का 3085 टिकट बेचा है।
धंधेबाजों ने होली और समर वैकेशन के लिए टिकट काट कर अपने पास रख लिया था। पुलिस ने ट्रैवल्स के दो स्टाफ पंकज कुमार गुप्ता और चंदन कुमार को गिरफ्तार कर लिया, जबकि संचालक मनोज कुमार फरार हो गया। पुलिस ने इस ट्रैवल्स को सील कर दिया।
पुलिस बरामद कंप्यूटर से आगे की छानबीन करने में जुटी है।  हाल के महीनों  में रेलवे की यह बड़ी कार्रवाई है। छापेमारी में आईसीआरटीसी के मैनेजर राकेश कुमार मिश्रा के अलावा पटना जंक्शन आरपीएफ पोस्ट के प्रभारी  विश्वनाथ कुमार, एसआई संजीव कुमार, कुंदन कुमार, आरक्षी दिनेश कुमार, हितेंद्र कुमार और अमित राज शामिल थे।
ऐसे होता था खेल  : गिरफ्तार शातिरों ने बताया कि  मिलते-जुलते नाम से टिकट काट कर रख लेते हैं। जैसे एस. कुमार के नाम से काटे गए टिकट को श्याम कुमार, सोहन कुमार, शैलेंद्र कुमार को बेच दे देते हैं। टिकट में उम्र 30 से 45 के बीच देते हैं। एक टिकट में 1000 रुपए कमाते हैं। पीक सीजन में दो हजार की कमाई भी कर लेते हैं।
पंकज और चंदन ने बताया कि जो टिकट बरामद कर पुलिस लाई है उसे होली और समर वैकेशन के लिए कटाकर रखा गया था। टिकट का धंधा करने वाले सूद पर पैसे लेकर भी काम चलाते हैं। जिनसे सूद लिया जाता है, उससे यह तय रहता है कि उन्हें पैसा कब वापस किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार 5 से 10 फीसदी प्रति माह की दर से रकम सूद पर ली जाती है और धंधेबाज टिकट काट कर रख लेता है।
150 आईडी को किया निष्क्रिय : छापेमारी के दौरान पुलिस ने पीसी को जब्त किया था। उसे जब खंगाला तो बिके हुए टिकट को देखा। साथ ही पुलिस को पता चला कि इन लोगों ने 150 आईडी से टिकट बनाए थे। पुलिस ने इन सभी आईडी को डिएक्टिवेट कर दिया।
फर्जी आधार कार्ड व वोटर कार्ड भी बना देते हैं   : अगर किसी को इमरजेंसी में जाना है और उसके नाम से मिलता-जुलता टिकट नहीं रहता है तो ये शातिर उसका फौरन फर्जी मतदाता फोटो पहचान पत्र या आधार कार्ड भी बना देते हैं। इसके लिए अलग से रकम का भुगतान करना पड़ता है। इन दलालों का तार फर्जी आईकार्ड और आधार कार्ड बनाने वालों से भी जुड़ा है। ऐसे गिरोह एडवांस में 80 फीसदी टिकट दिल्ली का कटाकर रख लेते हैं। दिल्ली के टिकट की मांग सबसे अधिक होती है। स्लीपर, एसी थ्री से एसी वन तक टिकट कटा कर रखते हैं। इनमें सबसे अधिक टिकट संपूर्ण क्रांति, पटना-दिल्ली राजधानी, श्रमजीवी, नॉर्थ इस्ट, बिक्रमशिला जैसी अहम ट्रेनों की होती है।
इस धंधे से रेलवे को कोई आर्थिक नुकसान नहीं है। फायदा ही है कि दो-तीन माह के बाद का टिकट कट जाता है जिससे रेलवे को एडवांस उन्हीं टिकट पर आमदनी हो जाती है। लेकिन इससे नुकसान आम यात्रियों को होता है, जिन्हें टिकट नहीं मिल पाता है। मजबूरी में दलाल का सहारा लेना पड़ता है। इसके लिए अधिक रकम देनी पड़ती है।
ट्रेन में आधार कार्ड-आईडी जांचने की व्यवस्था नहीं  : रेल प्रशासन अगर चाहे तो टिकट धंधेबाजों के इस काले कारोबार पर रोक लग सकती है। इसके लिए रेलवे को टीटीई को आधार कार्ड या फोटो पहचान पत्र जांचने के लिए वैसा मोबाइल देना होगा जिससे भारतीय निर्वाचन आयोग या आधार कार्ड की साइट खोलकर यह चेक कर लिया जाए कि जो यात्री पहचान के रूप में दस्तावेज दे रहा है वह सही है या फर्जी।

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