नैनोकण: वरदान या अभिशाप

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विशिष्ट विशेषताओं के कारण (आकर १०० nm), भौतिक, रासायनिक गुण, उच्च सतह-आयतन अनुपात, नैनोकणों का अनुप्रयोग अत्यधिक बढ़ा है, उदाहरण के लिए, उपभोक्ता उत्पाद, कृषि, चिकित्सा संबंधी उपकरण एवं दवाएं, सौंदर्य प्रसाधन, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स और प्रकाशिकी, पर्यावरण, भोजन तथा पैकिंग, ईंधन, ऊर्जा, कपड़ा और पेंट, अगली पीढ़ी की दवा, प्लास्टिक आदि में तेजी से बढ़ा है!
नैनो-युग नब्बे के दशक के अंत में शुरू हुआ और दो हजार चौदाह तक नैनोमैटेरियल्स का प्रयोग पर्यावरण छेत्र के लिए तेईस बिलियन डॉलर तक पहुंच गया और अनुमान है कि दो हजार बीस तक ये आकंड़ा बयालीस बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।
एक ऑनलाइन डेटाबेस (www.nanodb.dk) जिनमें तीन हजार से अधिक नैनोपार्टिकल्स या नैनोमैटेरियल्स से युक्त उत्पाद शामिल हैं, जिसमे से दो हजार से ज्यादा मानव के लिए खतरनाक श्रेणी में रखे गये उत्पादों की सूची में है! नैनोपार्टिकल्स के वैश्विक उत्पादन एवं पर्यावरण  में छोड़े जाने का वास्तविक आंकड़ा अभी भी अनुपलब्ध है।
हाल के आकलन से पता चला है कि नैनो-साइज़ कॉपर और कॉपर-ऑक्साइड के दो सौ से अधिक मीट्रिक टन का उत्पादन दो-हजार-दस में किया गया था! कॉपर पौधों के विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक तत्व हैं! कॉपर-ऑक्साइड नैनो-पार्टिकल्स व्यापक रूप से रोगाणु प्रतिरोधक के रूप में चिकित्सा क्षेत्र में अत्यधिक उपयोग किया जाता है! अगले कुछ वर्षों में, दुनिया में कॉपर-ऑक्साइड नैनोकणों का उत्पादन प्रति वर्ष दो मिलियन टन तक बढ़ जाएगा। इसलिए, यह जानना आवश्यक है कि वे पौधों और मानव स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करते हैं।  
डेटा और मॉडलिंग विश्लेषण के अनुसार, प्रत्येक वर्ष हजारों टन नैनो-पार्टिकल्स पर्यावरण में छोड़ा जाता है, जिनमें से अधिकांश भाग मृदा में जा कर एकत्र होता हैं। इस गतिशील विकास, अत्यधिक उत्पादन और जबरदस्त प्रयोग ने वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया और नैनो-पार्टिकल्स की विषाक्तता प्राथमिक अनुसंधान बनता जा रहा है। अतः ये जनना  जरुरी हो गया की ऐसे नैनोकणों का मिट्टी और पानी के साथ मिल कर कृषि महत्वपूर्ण फसलों पर क्या प्रभाव डालते हैं! क्या ये नैनोकणों इन मत्वपूर्ण फसलों के खाने वाले भाग में इक्कठा होते है और फसलों की वर्द्धि पर क्या प्रभाव डालते!
पिछले कुछ सालो से इस बात के पर्याप्त सबूत जमा किए जा रहे हैं कि नैनोकण मिट्टी या पानी के दूषित होने से गेहूं और मक्का के विकास पर बुरा असर पड़ रहा है, हल ही में डॉ. विष्णु राजपूत द्वारा दक्षिणी संघीय विश्वविद्यालय में प्रयोगशाला स्थितियों में, पहली बार, एक कृषि फसल, वसंत जौ पर नैनो-पार्टिकल्स के प्रभाव का परीक्षण किया गया। उन्होंने  जौ के बीजो को पेट्री डिश में 30-50 नैनोमीटर के आकार के कॉपर-ऑक्साइड नैनोकण के साथ अंकुरित किया। नैनोकणों की सघनता को इस तरह चुना गया कि यह कुछ रूसी शहरों के विकसित उद्योग के आसपास की मिट्टी और जल प्रदूषण के स्तर के साथ मेल खाता है।
प्रदूषित पानी में उगाए गए जौ के जड़ों में कॉपर की मात्रा 5.7 गुना और पत्तियों में 6.4 गुना शुद्ध पानी में उगाये गए पौधों की तुलना में अधिक थी। नैनोपार्टिकल्स मिश्रित पानी में उगी जौ की जड़ें और पत्तियां शुद्ध पानी की तुलना में आकार में छोटी थीं। जड़ की लंबाई शुद्ध पानी में उगाये गए पौधों की तुलना में एक तिहाई (35%) और तना और पत्तियाँ लंबाई (10%) भी कम हो गई!
इसके अलावा, नैनोकणों ने कोशिकीय घटकों की संरचना को प्रभावित किया जैसे की -प्लास्टिड्स और माइटोकॉन्ड्रिया का आकार, संवहनी बंडल की प्रणाली, जाइलम वाहिकाएँ का आकार आदि! हालांकि अभी भी ये स्पष्ट नहीं है कि पौधों के अंदर क्या प्रक्रियाएं होती है और कैसे नैनोपार्टिकल्स एक कोशिका से दूसरे भाग तक पहुंचते है।  
खाद्य फसलों  में नैनोपार्टिकल्स का संचय अत्यधिक चिंता का विषय है क्योकि खाद्य फैसले सीधे तौर पर मानव स्वस्थ से जुड़ा है. अतः नैनोपार्टिकल्स का असीमित प्रयोग सोच समझ कर करना होगा!

[Vishnu Rajput, (PhD) Senior Researcher, Southern Federal University, Russia]


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