मोदी सरकार ने हजारों करोड़ के रक्षा सौदे में PMO की भूमिका के बारे में SC को भी नहीं दी जानकारी

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राफेल विमान सौदे को लेकर विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। ‘द हिंदू’ में वरिष्ठ पत्रकार एन राम द्वारा लिखे लेख और उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हमलावर रुख ने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। इस बीच एक बार फिर ‘द हिंदू’ ने एक रिपोर्ट छापी है जिसमें बताया गया है कि राफेल विवाद पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा ‘समानंतर बातचीत’ की जानकारी साझा नहीं की।
गौरतलब है कि एन राम ने अपने आर्टिकल में रक्षा मंत्रालय के उस नोट का हवाला दिया था जिसमें पीएमओ और फ्रांस के रक्षा मंत्री के कूटनीतिक सलाहकार के बीच 36 राफेल विमानों की खरीद पर बातचीत हुई थी। जबकि, इस दौरान सौदे के लिए गठित भारतीय टीम (INT) विमान के मोल-भाव को लेकर बातचीत कर रही थी।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार रक्षा मंत्रालय द्वारा समानांतर उठाए गए सवालों पर पूरी तरह खामोश रही। यही नहीं सरकार डील में गड़बड़ी होने की सूरत में संप्रभुता की गारंटी पर भी खामोश रही। दरअसल, भारत सरकार ने राफेल करार को लेकर सारी जिम्मेदारी INT पर छोड़ रखी थी। नोट में इस बात को बाखूबी रेखांकित किया गया है कि सौदे में बातचीत करने वाली टीम (INT) ने दसॉ के साथ डील में मोल-भाव अच्छा किया था। विमानों की कीमतों से लेकर उनकी डिलिवरी और रखरखाव को लेकर भी बातचीत बेहतर स्तर पर रही।
हालांकि, नोट में INT द्वारा डील के संदर्भ में वस्तृत जानाकारी नहीं दी गई। इसमें बताया गया कि फ्रांस के साथ INT ने मई 2015 में वर्ता शुरू की और अप्रैल 2016 में इसे पूरा किया। सौदे को लेकर टीम ने कुल 74 बैठकें की थीं। ऐसे में जब रक्षा सौदे में INT बात कर रही थी तब PMO का दखल कई सवाल खड़े करते हैं। क्योंकि, बातचीत रक्षा सौदे की सबसे बड़ी अथॉरिटी DAC (Defence Acquisition Council) के द्वारा की जा रही थी और इसका प्रमुख रक्षा मंत्री होता है ना कि प्रधानमंत्री कार्यालय।
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डीएसी के दिशानिर्देशों के मुताबिक INT ने डील के संदर्भ में बातचीत को आगे बढ़ाया। मोलभाव के दौरान सौदा तय करने वाली भारतीय टीम ने हर पहलू का ध्यान रखा। INT ने 36 राफेल विमानों के रखरखाव को लेकर डीएसी के सामने तीन बार प्रपोजल पेश किए। इन प्रपोजल्स में सौदे के तमाम शर्तों और बिंदुओं को शामिल किया गया था। INT ने डीएसी को पहला प्रपोजल 1 सितंबर, 2015 और इसके बाद 11 जनवरी, 2016 तथा 14 जुलाई 2016 में भेजा। आखिर में 4 अगस्त, 2016 को INT की रिपोर्ट को आखिरकार रक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी ने हरी झंडी दे दी

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