उद्धव ठाकरे ने अमित शाह के सामने 1995 में विधानसभा चुनाव के दौरान हुए फॉर्मूले के तहत सीट बंटवारे की रखी शर्त

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लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अपने साथी दलों की नाराजगी दूर कर सीटों के बंटवारे का काम पूरा कर लेना चाहती है। लेकिन, एनडीए के सहयोगी दल भी वर्तमान स्थिति को भांपते हुए अपनी डिमांड बढ़चढ़कर रख रहे हैं। सोमवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे फोन लगाया और लोकसभा सीटों के बंटवारे पर बात की। सूत्रों का कहना है कि इस दौरान शिवसेना प्रमुख ने अमित शाह के सामने 1995 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान हुए फॉर्मूले के तहत सीट बंटवारे की शर्त रख दी।
शिवसेना एक पैकेज के रूप में लोकसभा के अलावा महाराष्ट्र विधानसभा की सीटों पर भी बात स्पष्ट करना चाहती है। गौरतलब है कि 1995 में 288 विधानसभा सीट में से शिवसेना 169 और बीजेपी 116 सीटों पर चुनाव लड़ी थीं। तब दोनों पार्टियों ने मिलकर 138 सीटें प्रदेश में जीत पाई थीं। इसमें शिवसेना के खाते में 73 और बीजेपी के खाते में 65 सीटें आई थीं।
गौरतलब है कि शिवसेना कई मौकों पर कह चुकी है कि महाराष्ट्र में वह बीजेपी की ‘बिग ब्रदर’ है। अक्सर मोदी सरकार की नीतियों में शिवसेना का कटाक्ष भी सुर्खियों में रहता है। लेकिन, बीजेपी अध्यक्ष लोकसभा चुनाव को देखते हुए संबंधों को दुरूस्त करने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। हालांकि, शिवसेना एक बाद एक कड़ा मैसेज बीजेपी को दिए जा रही है। शाह के उद्धव को फोन करने के पहले शिवसेना नेता संजय राउत दिल्ली स्थित आंध्र भवन में टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के सरकार विरोधी धरना में हिस्सा लेने पहुंच गए। इस कदम के जरिए शिवसेना ने बीजेपी को साफ संकेत दिया कि उसके पास और भी विकल्प हैं।
अमित शाह और उद्धव की बातचीत के पहले जेडीयू नेता और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर शिवसेना प्रमुख के घर पर पहुंचे और सीट बंटवारे का विकल्प पेश किया। प्रशांत किशोर ने महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीट में से 28 सीट शिवसेना को देने की पेशकश की। साथ ही उन्होंने इनमें से 21 पर जीत सुनिश्चित कराने का भी आश्वासन दिया। लेकिन, शिवसेना ने उनके इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
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उसका कहना है कि उसे महाराष्ट्र में बिग-ब्रदर की भूमिका में रहना है। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आंध्र से टीडीपी, बिहार से आरएलएसपी, जम्मू-कश्मीर से पीडीपी और असम से एजीपी ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया। ऐसे में बीजेपी को एनडीए के सहयोगी दिलों को अपने साथ बनाए रखने की मजबूरी है।

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