प्रातः सूर्य नमस्कार करें एवं सूर्यदेव को तांबे के लोटे से जल का अर्घ्य दें। ।
पूर्णिमा को चांदी के लोटे से दूध का अर्घ्य चंद्र देव को दें, व्रत भी करें।
बुजुर्गों या वरिष्ठों के चरण छू कर आशीर्वाद लें।
‘पितृ दोष शांति’ यंत्र को अपने पूजन स्थल पर प्राण प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर, प्रतिदिन इसके स्तोत्र एवं मंत्र का जप करें।
पितृ गायत्री मंत्र द्वारा सवा लाख मंत्रों का अनुष्ठान अर्थात् जप, हवन, तर्पण आदि संकल्प लेकर विधि विधान सहित करायें।
अमावस्या का व्रत करें तथा ब्राह्मण भोज, दान आदि कराने से पितृ शांति मिलती है।
अपने घर में पितरों के लिये एक स्थान अवश्य बनायें तथा प्रत्येक शुभ कार्य के समय अपने पित्तरों को स्मरण करें। उनके स्थान पर दीपक जलाकर, भोग लगावें। ऐसा प्रत्येक त्योहार (उत्सव/पर्व) तथा पूर्वजों की मृत्यु तिथि के दिन करें। उपरोक्त पूजा स्थल घर की दक्षिण दिशा की तरफ करें तथा वहां पूर्वजों की फोटो-तस्वीर लगायें।
दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके कभी न सोयें।
अमावस्या को विभिन्न वस्तुओं जैसे – सफेद वस्त्र, मूली, रेवड़ी, दही व दक्षिणा आदि का दान करें।
प्रत्येक अमावस्या को श्री सत्यनारायण भगवान की कथा करायें और श्रवण करें।
विष्णु मंत्रों का जाप करें तथा श्रीमद् भागवत गीता का पाठ करें। विशेषकर ये श्राद्ध पक्ष में करायें।
एकादशी व्रत तथा उद्यापन करें।
पितरों के नाम से मंदिर, धर्मस्थल, विद्यालय, धर्मशाला, चिकित्सालय तथा निःशुल्क सेवा संस्थान आदि बनायें।
श्राद्ध-पक्ष में गंगाजी के किनारे पितरों की शांति एवं हवन-यज्ञ करायें।
पिंडदान करायें। ‘गया’ में जाकर पिंडदान करवाने से पितरों को तुरंत शांति मिलती हैं। अर्थात जो पुत्र ‘गया’ में जाकर पिंडदान करता हैं, उसी पुत्र से पिता अपने को पुत्रवान समझता हैं और गया में पिंड देकर पुत्र पितृण से मुक्त हो जाता है।
सर्वश्राप व पितृ दोष मुक्ति के लिये नारायण बली का पाठ, यज्ञ तथा नागबली करायें। पवित्र तीर्थ स्थानों में पिंडदान करें।
कनागत (श्राद्ध पक्ष) में पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन योग्य विद्वान ब्राह्मण से पितृदोष शांति करायें। इस दिन व्रत/उपवास करें तथा ब्राह्मण भोज करायें।
घर में हवन, यज्ञ आदि भी करायें। इसके अलावा, पितरों के लिए जल तर्पण करें।
श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की पुण्यतिथि अनुसार ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, फल, वस्तु आदि दक्षिणा सहित दान करें। परिवार में होने वाले प्रत्येक शुभ एवं धार्मिक, मांगलिक आयोजनों में पूर्वजों को याद करें तथा क्षमतानुसार भोजन, वस्त्र आदि का दान करें।
सरसों के तेल का दीपक जलाकर, प्रतिदिन सर्पसूक्त एवं नवनाग स्तोत्र का पाठ करें।
सूर्य एवं चंद्र ग्रहण के समय/ दिन सात प्रकार के अनाज से तुला दान करें।
शिवलिंग पर प्रतिदिन दूध चढ़ायें। बिल्वपत्र सहित पंचोपचार पूजा करे।
”ऊँ नमः शिवाय” या महामृत्युंजय मंत्र का रुद्राक्ष माला से जप करें।
भगवान शिव की अधिक से अधिक पूजा करें। वर्ष में एक बार श्रावण माह व इसके सोमवार, महाशिवरात्रि पर रूद्राभिषेक करायें।
शत्रु नाश के लिये सोमवारी अमावस्या को सरसों के तेल से रूद्राभिषेक करायें। यदि यह सोमवारी अमावस्या श्रावण माह में आये तो ”सोने पर सुहागा” होगा।
नागपंचमी का व्रत करें तथा इस दिन सर्पपूजा करायें। नाग प्रतिमा की अंगूठी धारण करें।
प्रत्येक माह पंचमी तिथि (शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की) को चांदी के नाग-नागिन के जोड़े को बांधकर शिवलिंग पर चढ़ायें।
कालसर्प योग की शांति यंत्र को प्राण-प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर प्रतिदिन सरसों के तेल के दीपक के साथ मंत्र – ”ऊँ नवकुल नागाय विद्महे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात् – ”की एक रुद्राक्ष माला जप प्रतिदिन करें।
घर एवं कार्यालय, दुकान पर मोर पंख लगावें।
घर में पूजा स्थल पर पारद शिवलिंग को चांदी या तांबे के पंचमुखी नाग पर प्राण प्रतिष्ठा द्वारा स्थापित कर प्रतिदिन पूजा करें।
ताजी मूली का दान करें। कोयले, बहते जल में प्रवाहित करें। महामृत्युंजय मंत्र का संकल्प लेकर सवा लाख मंत्रों का अनुष्ठान करायें। प्रातः पक्षियों को जौ के दाने खिलायें। जल पिलायें। इसके अलावा उड़द एवं बाजरा भी खिला सकते हैं।
पानी वाला नारियल हर शनिवार प्रातः या सायं बहते जल में प्रवाहित करें।
शिव उपासना एवं रुद्र सूक्त से अभिमंत्रित जल से स्नान करें। यदि संभव हो तो राहु एवं केतु के मंत्रों का क्रमशः 72000 एवं 68000 जप संकल्प लेकर करायें।
सरस्वती माता एवं गणेश भगवान की पूजा करें।
प्रत्येक सोमवार को शिव जी का अभिषेक दही से मंत्र – ”ऊँ हर-हर महादेव” जप के साथ करें।
प्रत्येक पुष्य नक्षत्र को शिवजी एवं गणेशजी पर दूध एवं जल चढ़ावें। रुद्र का जप एवं अभिषेक करें। भांग व बिल्वपत्र चढ़ायें।
गणेशजी को लड्डू का प्रसाद, दूर्वा का लाल पुष्प चढ़ायें।
सरस्वती माता को नीले पुष्प चढ़ायें। गोमेद एवं लहसुनिया लग्नानुसार, यदि सूट करे तो धारण करे।
कुलदेवता/देवी की प्रतिदिन पूजा करे। नाग योनि में पड़े पितरो के उद्धार तथा अपने हित के लिये नागपंचमी के दिन चांदी के नाग की पूजा करे।
हिजड़ों को साल में कम से कम एक बार नये वस्त्र, फल, मिठाई, सुगन्धित सौंदर्य प्रसाधन सामग्री एवं दक्षिणा आदि का सामर्थ्यानुसार दान करें।
यदि दांपत्य जीवन में बाधा आ रही है तो अपने जीवन साथी के साथ नियमित रूप से अर्थात् लगातार 7 शुक्रवार किसी भी देवी के मंदिर में 7 परिक्रमा लगाकर पान के पत्ते पर मिश्री एवं मक्खन का प्रसाद रखें। तथा साथ ही पति एवं पत्नी दोनों ही अलग-अलग सफेद फूलों की माला चढ़ायें तथा सफेद पुष्प चरणों में चढ़ायें।
अष्ट मुखी रुद्राक्ष धारण करें।