अगर केंद्र ने कश्मीरी यात्रियों की तरह सीआरपीएफ की भी सुन ली होती तो आज सारे जवान होते जिंदा

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जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग भूस्खलन और बर्फबारी के कारण लगभग हफ्ते भर से बंद था। कश्मीर के 2155 लोग जम्मू में फंसे थे। हंगामा करने के बाद इन्हें एयरफोर्स के C-17 प्लेन से एयरलिफ्ट कर सुरक्षित घाटी तक पहुंचा दिया गया।
वहीं सुरक्षाबलों का यह हाल था कि जो सीआरपीएफ जवान पुलवामा हमले का शिकार बने उन्हें खराब मौसम में खस्ताहाल और पहाड़ों से गिर रहे पत्थरों के बीच जम्मू से बसों के काफिले में रवाना किया गया।
अफसोस कि बात यह है कि जिन कश्मीरी यात्रियों को जम्मू से एयरलिफ्ट कर कश्मीर पहुचाया गया, उन्होंने 12 फरवरी को जम्मू में पाकिस्तान जिंदाबाद और भारत मुर्दाबाद के नारे लगाकर सरकार पर दबाव बनाया था।

CRPF के जवानों को एयरलिफ्ट किया जा सकता था, जबकि सीआरपीएफ के अधिकारियों ने केंद्र से विमान मुहैया कराने का निवेदन किया था और एक हफ्ते से विशेष विमान की मांग सरकार से कर रहे थे। वरिष्ठ अधिकारी लगातार केंद्र सरकार के संपर्क में थे।
एक तरफ मौसम और दूसरी तरफ केंद्र सरकार की बेरुखी कहीं न कहीं आड़े आयी और इतनी बड़ी त्रासदी घट गयी। पूरे हाइवे पर एक हफ्ते से पहाड़ों से पत्थर गिर रहे थे। इसके बावजूद जवानों को बृहस्पतिवार को तड़के सुबह जर्जर हाइवे से भेज दिया गया था। अगर केंद्र सरकार ने सीआरपीएफ अधिकारियों की सुनी होती तो आज पुलवामा हमले के शहीद ड्यूटी पर होते।
जम्मू सेक्टर के सीआरपीएफ आईजी अभयवीर सिंह चौहान का कहना है कि 8 से 11 फरवरी तक जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाइवे के बंद होने के कारण छुट्टी काटकर लौटे सैकड़ों सीआरपीएफ के जवान जम्मू के छन्नी रामा सहित कई अन्य कैम्पों में फंसे रह गए थे।
जवानों को एयरलिफ्ट करवाने के प्रयासों को नजरअंदाज कर दिया गया। दूसरी ओर, जम्मू में फंसे कश्मीर के लोगों की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के सामने केंद्र और राज्य प्रशासन नतमस्तक हो गया।
कुछ घंटों में राज्य प्रशासन को केंद्र सरकार और वायु सेना से हरी झंडी भी मिल गयी। 8 से 12 फरवरी के बीच एयरफोर्स ने 2155 कश्मीरियों को घाटी पहुंचाया।
यह इसलिए संभव हो पाया क्योकि, जम्मू में फंसे कश्मीर के लोगों ने साजिश के तहत राष्ट्र विरोधी नारे लगाए।

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