पति, पत्नी दोनों की मौत पर परिवार को नहीं मिलेगा पेंशन फंड का पैसा

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असगंठित क्षेत्र के कामगारों के लिए जारी नई पेंशन स्कीम के एक प्रावधान को लेकर सरकार कटघरे में है। सरकार ने न्यू पेंशन स्कीम के तहत एक नोटिफिकेशन जारी की है। इस नोटिफिकेशन में बताया गया है कि अगर स्कीम से जुड़े पति-पत्नी दोनों की मौत हो जाती है, तो पेंशन फंड का पैसा परिवार के अन्य सदस्यों को नहीं मिलेगा, बल्कि सरकार के खाते में वापस चला जाएगा।
गौरतलब है कि अभी तक पति-पत्नी के देहांत के बाद उनके अविवाहित बच्चों को पेंशन फंड की राशि दे दी जाती रही है। द टेलिग्राफ की एक खबर के मुताबिक ‘प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना’ के लिए यह नोटिफिकेशन इसी माह की शुरुआत में अंतरिम बजट के दौरान जारी किया गया।
सरकार के इस कदम को आर्थिक क्षेत्र से जुड़े लोग सही नहीं बता रहे हैं। टेलिग्राफ से बातचीत में एक अर्थशास्त्री ने कहा कि न्यू पेंशन स्कीम में पति-पत्नी की मौत के बाद भी पेंशन फंड उनके बच्चों को दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “पेंशन योजना के लिए गरीब आदमी अपने खर्च में कटौती करके पैसे जमा करता है। सरकार को उनकी मृत्यु के बाद उनके हिस्से का पैसा नहीं खा लेना चाहिए।”
गौरतलब है कि इस योजना के तहत इसके हकदारों को 60 साल की उम्र पार करते ही 3000 रुपये प्रति माह पेंशन दिया जाएगा। लेकिन, सरकार ने अपने अंतरिम बजट में कहा है कि इसके पात्र वही शख्स होगा, जिसकी उम्र 18 से 29 वर्ष के बीच होगी और वह प्रति माह 15 हजार से कम रुपये कमा रहा हो। हालांकि, नोटिफिकेशन के जरिए सरकार ने इसमें आखिरी उम्र सीमा 40 साल कर दी है। लेकिन, इसके लिए ग्राहक को प्रीमियम ज्यादा भरना होगा।
जैसे-जैसे उम्र बढ़ेगी पेंशन स्कीम के ग्राहक का प्रीमियम भी बढ़ता जाएगा। उदाहरण के तौर पर 18 साल के व्यक्ति को जहां प्रति माह 55 रुपये देने होंगे, वहीं 29 साल के शख्स को 100 रुपये प्रति माह प्रीमियम भरना पड़ेगा। लेकिन, अगर ग्राहक 40 की उम्र सीमा में है तो उसे 200 रुपये प्रति माह प्रीमियम जमा करने होंगे। ग्राहक यह प्रीमियम तब तक भरता रहेगा, जब तक कि उसकी उम्र 60 की नहीं हो जाती।
इस योजना का उद्देश्य खास तौर पर घरेलू काम करने वाले कामगार, रेहड़ी-पटरी वाले दुकानदार, मध्यान भोजन वाले मजदूर, मोची, रिक्शा चालक और निर्माण कार्यों में जुटे तमाम मजदूरों को बुढ़ापे में आर्थिक सहारा देना है। हालांकि, पेंशन स्कीम में जारी विवादित नोटिफिकेशन को लेकर लोगों ने नाराजगी जाहिर करनी शुरू कर दी है। द टेलिग्राफ के मुताबिक ट्रेड यूनियनें सरकार की इस पहल के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि सरकार मजदूरों के गाढ़ी कमाई को हड़पने को कोशिश में है। जबकि, इसके वाजिब हकदार उनके परिवार वाले हैं।

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