लखनऊ: डालीगंज में नारंगी कुर्ते पहने चार-छह लोगों ने कश्मीरियों को पीटा

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लखनऊ की सड़क पर नारंगी कुर्ते पहन गुंडई पर उतरे चार-छह लोग कश्मीरियों को पीट रहे हैं. इनकी ज़ुबान पर गालियां हैं, हाथ में डंडा है और आंखों में रातों रात ‘राष्ट्रवादी नायक’ बन जाने का जुनून है.
वीडियो देखिए और उस डर को महसूस कीजिए जो भीड़ से घिर जाने के बाद आपको सताता है. आपकी ज़िंदगी की सलामती वहशी और हिंसक भीड़ के रहमोकरम की मोहताज़ बन जाती है. अगले पल आप सुरक्षित बच निकलेंगे या फिर अपनी काया पर हाथ-पांवों की आज़माइश के बाद कराहते हुए अधमरे पड़े होंगे कोई नहीं जानता. कानून का कोई पता तब आसपास नहीं मिलता. भीड़ से अलग जो भी है वो भी तमाशबीन में तब्दील हो चुका होता है.

 

बुधवार को राजधानी लखनऊ में ‘देश के अभिन्न अंग कश्मीर’ के निवासियों के साथ जो कुछ हुआ वो शर्मसार करनेवाला है, सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि बेकसूर कश्मीरियों को पीटा गया, इसलिए भी नहीं कि वो जिन काजू-किशमिश-बादाम को बेच रहे थे वो उलट दिए गए, इसलिए भी नहीं क्योंकि उन्हें मां-बहन की गालियां दी गईं, इसलिए भी नहीं कि जब बेकसूर कश्मीरियों से पुलवामा में हुई आतंकी घटना का हिसाब मांगा जा रहा था तब सिर्फ दो लोगों ने आपत्ति जताई, बल्कि इसलिए कि देश की सबसे बड़ी अदालत के सामने कश्मीरियों की सुरक्षा का आश्वासन देकर भी ‘मज़बूत सरकार’ ऐसा करने में फेल हो गई.
खुद को देश और हिंदुओं का ठेकेदार बतानेवालों ने सरकारों को घुटनों पर ला दिया है. उसे शर्मिंदा किया है. उसकी कोशिशों को धत्ता बता दिया है. उसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कर पाने में नाकाम साबित कर दिया है.
कितने शर्म की बात है कि योगी आदित्यनाथ की नाक के नीचे डालीगंज पुल पर देश के तानेबाने को एक हिस्ट्रीशीटर ने अपने साथियों संग उसी रंग का कुर्ता पहनकर तार-तार किया जिस रंग के नाम योगी ने ज़िंदगी कर दी है. ऐसा भी नहीं कि ये पहली बार हो. डालीगंज पर ही ये सब पहले हो चुका है.

इस बीच सोशल मीडिया पर वीडियो डालकर हीरो बनने की फिराक आरोपियों पर भारी पड़ गई. लोगों ने इसे जमकर फैलाया. देर रात टीवी 9 भारतवर्ष ने भी घटना का वीडियो ट्वीट किया. डीजीपी ओपी सिंह को भी खबर दी गई. खैर, डीजीपी के आदेश और हायतौबा मचने के बाद लखनऊ पुलिस ने मामूली धाराओं में मुकदमे दर्ज किए. मुकदमा अज्ञात के खिलाफ लिखा गया. ऊपर से पीड़ितों को ही थाने में घंटों तक बैठाए रखा गया.
जानकारी निकली कि मार-पीट करनेवाला मड़ियांव का गुंडा बृजेश उर्फ बजरंग सोनकर है. अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर ये खुद को विश्व हिंदू दल का महानगर अध्यक्ष बता रहा है. पुलिस ने उसे रात को खोजकर सलाखों के पीछे डाला. अब हैरान होइए कि पुलिस से घिरकर भी वो फेसबुक पर पोस्ट अपडेट करना नहीं भूला. वहीं से लिख रहा है कि, ‘हम हिंदुओं और सेना के लिए लड़ रहे हैं कितने लोग हमारा साथ देंगे.’ ये शख्स लखनऊ के हसनगंज थाने में हिस्ट्रीशीटर के तौर पर दर्ज है.

यूपी में सरकार बदलने के बाद इसने साथियों के साथ मिलकर विश्व हिंदू दल नाम का संगठन बना लिया. धर्म के नाम पर गुंडागर्दी करके वीडियो शेयर करना-कराना इसका शौक है. आरोप है कि इसी संगठन की आड़ में ये आदमी अपने भाई के साथ मिलकर सट्टे और जुए का धंधा कर रहा है.
इससे कोई पूछनेवाला होना चाहिए कि हिंदुओं को खतरा आखिर है किससे और क्या हजारों साल के इतिहास का वारिस हिंदू समाज इतना कमज़ोर है कि चवन्नी छाप गुंडों की रक्षा के बिना बिखर जाएगा? सेना के लिए लड़ने का दम भरनेवाला ना जाने किस गफलत में जी रहा है. इसे इल्म ही नहीं कि जिन कश्मीरियों को पीटकर वो सेना की हिफाज़त में जुटा है उन कश्मीरियों की बड़ी तादाद हर साल सेना की भर्ती के लिए जुटती है.
इन्हीं का एक साथी हिमांशु अवस्थी जो खुद के विश्व हिंदू दल का प्रदेश अध्यक्ष होने का दावा करता है पोस्ट लिखकर अपने चेले-चमचों से वाहवाही लूटने की कोशिश कर रहा है. ये खुद ही जानकारी दे रहा है कि गुंडागर्दी करनेवालों के नाम बजरंग और अमर मिश्रा हैं.
इतना भर नहीं है, बल्कि हिमांशु अवस्थी नाम का बड़बोला खुद को बीजेपी का पूर्व कार्यकर्ता भी बताता है. अब मुमकिन है कि ये वैसा ही कार्यकर्ता रहा हो जैसे मेघालय के राज्यपाल तथागत रॉय रहे जिन्होंने कश्मीरियों के बहिष्कार का आह्वान कर देश के संविधान को अपमानित किया.
पुलवामा के आतंकी हमले के तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीरियों के खिलाफ हो रही हिंसा पर गंभीर रुख अख्तियार कर लिया था. मुख्य सचिवों और 11 राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को कश्मीरी लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा था. केंद्र सरकार ने भी खासा समय लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट को जवाब दिया कि अब पूरे देश में कश्मीरियों पर हमले रुक चुके हैं. वो रुका हुए हमले लखनऊ से फिर जारी हो गए.
यवतमाल, देहरादून, पटना में भी ऐसी ही वारदातों की खबर मिली थी.
इन तमाम जगहों पर कश्मीरियों को निशाना बनानावाले कॉमन सेंस से चूक गए हैं. उन्हें ये समझ पाना मुश्किल हो रहा है कि किसी एक आतंकी के कश्मीरी मूल का होने का मतलब ये नहीं कि पूरा सूबा ही हिंदुस्तानी सेना पर हल्ला बोल की मुद्रा में है. क्या महात्मा गांधी के हत्या का ब्राह्मण होना पूरे ब्राह्मण समाज पर इसी तरह भारी पड़ा था? या फिर गोड़से का महाराष्ट्र से होना मराठियों के खिलाफ गया था?
हर समाज से हर तरह के लोग निकलते हैं. इसका समाज से क्या लेना-देना है? कम से कम उन कश्मीरियों का तो आतंक से लेनादेना नहीं है जो खुलेआम सड़क पर बैठकर अपना सामान बेच रहा है. वो इस उम्मीद में है कि आप उससे कुछ खरीदेंगे तो वो घर चला लेगा. अपने गांव-कस्बे से दूर वो बस इसलिए चला आया क्योंकि उसे देश के कानून में भरोसा है और आप में निष्ठा कि आप उसका चेहरा देखकर पागलों की तरह मारने नहीं दौड़ पड़ेंगे.
अब एक बात और समझिए. महाराष्ट्र में गैर-मराठियों को पीट कर वापस भेजने की जो गुंडई शिवसेना ने शुरू की थी वो देश को तोड़ देनेवाली थी, लेकिन इसके बावजूद बाकी देश ने कैसी प्रतिक्रिया दी ये याद करनेवाली बात है. अगर वो याद नहीं तो राज ठाकरे को ही याद कीजिए.
याद नहीं आता कि प्रतिक्रियावश किसी ने भी पूरे भारत में किसी मराठी को परेशान किया हो. इसका नतीजा यही निकला कि महाराष्ट्र में राज ठाकरे जैसों को समर्थन नहीं मिला. खुद मराठियों ने राज ठाकरे को सियासी कूड़ेदान में फेंक दिया. इसके उलट अगर देश में महाराष्ट्र के निवासियों के साथ वैसा सलूक होता जैसा आज कश्मीरियों के साथ हो रहा है तो बहुत मुमिकन है कि राज ठाकरे के मन की हो जाती. तब वो मनसे के मंचों से ऐसी वारदातों को भुना लेते.
कम से कम देश के भीतर हो रहे ऐसे विवादों में गांधीजी की सीख याद रखनी चाहिए. आंख के बदले आंख के सिद्धांत से पूरा जगत अंधा हो जाएगा.
अगर कश्मीर में किसी बीस साल के लड़के ने पाकिस्तान में बैठे नफरत के सौदागरों का एजेंट होना स्वीकारा है तो इसका मतलब ये नहीं हो सकता कि हर कश्मीरी पोटेंशियल आतंकी है, मगर हां यदि उनके साथ देश में यही सलूक होगा तो वो वापस लौटकर अपने लोगों को अनुभव बताएंगे. इन अनुभवों से उपजा आक्रोश किसी को ज़रूर हिंसक बना सकता है, जैसे आज आप बन बैठे हैं जबकि आप पर तो प्रत्यक्ष रूप से कुछ गुज़रा ही नहीं. अगर सेना पर हुए हमले से मन में गुस्सा पैदा हुआ है तो जाकर सेना के भर्ती कैंप में नाम लिखवाइए. इसके अलावा भी ऐसा बहुत कुछ है जो सेना की सेवा में किया जा सकता है मगर ये क्या बात हुई कि अपनी गुंडागर्दी को देश और धर्म का नाम देकर सड़कों पर यूं बदनाम किया जाए.
किसी के साथ प्रांत, धर्म या जाति पर भेद करनेवाला संविधान का दुश्मन है.वो इस मुल्क का दुश्मन है. वो इस समाज का दुश्मन है. इन लोगों की जगह सिर्फ जेल है. ये अगर ना सुधरें तो बंद करके रखे जाने लायक हैं. इनके समर्थकों पर भी सख्ती बरतनी चाहिए. सोशल मीडिया पर इनकी करतूतों को पसंद करनेवालों को चिह्नित किया जाए. भारत का कानून या उसके लोकतंत्र के आधार को नापसंद करनेवालों को सुधारना भी सरकार का काम है, मगर हां उसमे ज़रूरी शर्त ये भी है कि खुद सरकार मे बैठे लोग भी ऐसा करना चाहते हों.
इस बीच असल देशभक्त वो दो लोग हैं जो डालीगंज के पुल पर भारतीयता की रक्षा कर रहे थे. गुंडों की करतूत पर बिना डर सवाल उठा रहे थे. कश्मीरियों को पिटने से बचा रहे थे.

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