बीजेपी किसी संकोच में नहीं पड़ना चाहती

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नई दिल्‍ली। सेना के राजनीतिकरण का आरोप मायने नहीं रखता. भारतीय जनता पार्टी एयर स्ट्राइक को भुनाने पर अब अमादा है. कांग्रेस की अगुआई में विपक्ष को इससे परहेज है, पर  बीजेपी के लिए नमो अगेन सबसे ऊपर है।
भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गुरुवार को खुलेआम संदेश दे दिया था। जयपुर में वो पार्टी नेताओं के साथ चुनावी रणनीति पर मंत्रणा कर रहे थे। इसमें उन्होंने खुल कर कहा – जाओ सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता की बात जन-जन तक पहुंचाओ।
फिर क्या था अगले ही से दिन पोस्टर टांगे जा रहे हैं। शुरुआत जयपुर के ही सांसद रामचरण बोहरा ने कर दी. शहरों में सड़क किनारे सर्जिकल स्ट्राइक के पोस्टर टंगे मिले। इस पर लिखा है – आतंकवादियों को पाकिस्तान में घुस कर मारा। एक आर्मी मैन और जंगी विमान की तस्वीर केंद्र में है। किसी भी तस्वीर का फोकल प्वाइंट अहम होता है. इसलिए करीने से तस्वीर के बाएं किनारे नरेंद्र मोदी की तस्वीर है और नीचे दाईं ओर बोहरा जी खुद विराजमान हैं।
विपक्षी दल इस पर आपत्ति जता चुके हैं। राहुल सैन्य शौर्य के राजनीतिक इस्तेमाल पर मोदी को घेर चुके हैं। इसका जवाब मोदी ने हालिया रैली में दिया. उन्होंने 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक की बात कही। तब उड़ी आतंकी हमले के बाद सीमा पार सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी। मोदी की दलील है कि उस समय तो कहीं चुनाव नहीं था। मतलब बालाकोट स्ट्राइक पुलवामा की जवाबी कार्रवाई है इसका चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है।
अब थोड़ा पीछे की बात करें तो 2016 का सर्जिकल स्ट्राइक 29 सितंबर को हुआ। तस्वीरें और डिटेल अलग-अलग सूत्रों से अगले कई महीनों तक आती रहीं। तब तक 2017 आ चुका था। फरवरी-मार्च में पांच राज्यों में चुनाव थे। यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल, गोवा और पंजाब. उस समय भी सर्जिकल स्ट्राइक को बीजेपी ने भुनाया था।
साफ है बीजेपी किसी संकोच में नहीं पड़ना चाहती.  इसमें कोई गुरेज नहीं कि एयर स्ट्राइक के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए। इसके लिए मोदी की सराहना होनी चाहिए। पर क्या वाकई आतंकवादियों को पाकिस्तान में घुस कर मोदी ने मारा? नहीं न। ये काम तो हमारे जांबाज सैनिकों ने किया।
विपक्ष की दलील में भी दम है. सैनिकों की जांबाजी का मोदी काल से लेना-देना नहीं है। पर मोदी के पीएम रहते ऐसा हुआ, ये भी सही है. इस लिहाज से 1999 की करगिल की लडा़ई याद कीजिए। इस लड़ाई के कुछ महीने बाद ही अटल बिहारी फिर से चुनाव जीते और पीएम बने।
उससे पीछे जाएं तो 1971 की लड़ाई इंदिरा के दोबारा पीएम चुने जाने के कुछ महीनों बाद हुई तो चुनाव से कोई लेना-देना था ही नहीं। और पीछे जाएं तो 1961 से 1966 के दौरान दो जंग हुईं. चीन के साथ 1962 की लड़ाई नेहरू के सत्ता में आने के ठीक बाद हुई।
लिहाजा राजनीतिक नफा -नुकसान का कोई सवाल ही नहीं था। पाकिस्तान के साथ 1965 की लड़ाई चुनाव से दो साल पहले हुई। संयोग का साथ तो बीजेपी को ही मिलता दिखाई देता है।

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