2007 समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले में आया नया मोड़, 14 मार्च तक टली सुनवाई

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पंचकुला। सोमवार को हरियाणा के पंचकूला की स्पेशल एनआईए कोर्ट समझौता ब्लास्ट केस मामले में फैसला सुनाना था लेकिन इसे 14 मार्च तक के लिए टाल दिया गया है। इस केस में फाइनल बहस पूरी हो चुकी है और कोर्ट ने अपना फैसला 11 मार्च, सोमवार के लिए सुरक्षित रख लिया था. उम्मीद थी कि अदालत 11 मार्च को इस बहुचर्चित केस का फैसला सुना देगी लेकिन फैसला 14 मार्च तक के लिए टाल दिया गया है।
मोमिन मालिक ने याचिका लगाकर दावा किया है कि उसके पास पाकिस्तानी गवाह है. ब्लास्ट में मारे पाकिस्तानी व्यक्ति के बेटे की गवाही करवाने की बात कही गयी।
भारत-पाकिस्तान के बीच साल 1976 को समझौता एक्सप्रेस ट्रेन चलाई गई थी। इस ट्रेन में 18 फरवरी 2007 की रात को बम धमाका हुआ था जिसमें 68 लोगों की मौत हो गई थी और 12 लोग घायल हो गए थे. ट्रेन दिल्ली से लाहौर जा रही थी। धमाके में जान गंवाने वालों में अधिकतर पाकिस्तानी नागरिक थे। मृतकों में 16 बच्चों समेत चार रेलवे कर्मी भी शामिल थे. ट्रेन में विस्फोट हरियाणा के पानीपत जिले में चांदनी बाग थाने के अंतर्गत सिवाह गांव के दीवाना स्टेशन के नजदीक हुआ था।
20 फरवरी 2007 को इस मामले की जांच के लिए हरियाणा पुलिस की ओर से एसआईटी का गठन किया गया था. पुलिस ने संदिग्धों के बारे में जानकारी देने वालों को एक लाख रुपये का नकद इनाम देने की भी घोषणा की थी. प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के आधार पर पुलिस ने दो संदिग्धों के स्केच जारी किए. ऐसा कहा गया कि ये दोनों ट्रेन में दिल्ली से सवार हुए थे और रास्ते में कहीं उतर गए. इसके बाद धमाका हुआ। पुलिस को घटनास्थल से दो ऐसे सूटकेस मिले, जो फट नहीं पाए थे।
इस केस में खुलासा तब हुआ जब इसी तर्ज पर हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजमेर दरगाह और मालेगांव में भी धमाके हुए. इन सभी मामलों के तार आपस में जुड़े हुए बताए गए. जांच में हरियाणा पुलिस और महाराष्ट्र के एटीएस को एक हिंदू कट्टरपंथी संगठन ‘अभिनव भारत’ के शामिल होने के संकेत मिले थे। 15 मार्च, 2007 को हरियाणा पुलिस ने इंदौर से दो संदिग्धों को गिरफ्तार किया था। यह मामले में की गई पहली गिरफ्तारी थी. पुलिस इन तक सूटकेस के कवर के सहारे पहुंच पाई थी. ये कवर इंदौर के एक बाजार से घटना के चंद दिनों पहले ही खरीदा गया था।
एक ही तर्ज पर देश के अलग-अलग हिस्सों में धमाके के बाद लोग सहम गए थे। उसके बाद 26 जुलाई 2010 को मामला एनआईए को सौंपा दिया गया. एनआईए ने 26 जून 2011 को पांच लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी. पहली चार्जशीट में नाबा कुमार उर्फ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी, रामचंद्र कालसंग्रा, संदीप डांगे और लोकेश शर्मा का नाम था। आरोपियों पर आईपीसी की धारा 120 बी साजिश रचने के साथ 302 यानी हत्या, 307 हत्या की कोशिश करना और विस्फोटक पदार्थ, रेलवे को हुए नुकसान को लेकर कई धाराएं लगाई गई हैं.
जांच एजेंसी का कहना है कि ये सभी अक्षरधाम (गुजरात), रघुनाथ मंदिर (जम्मू), संकट मोचन (वाराणसी) मंदिरों में हुए आतंकवादी हमलों से दुखी थे और इसी का बदला बम से लेना चाहते थे. बाद में एनआईए ने पंचकूला की विशेष अदालत के सामने एक अतिरिक्त चार्जशीट दाखिल की थी. 24 फरवरी 2014 से इस मामले में सुनवाई जारी है.
एनआई ने ट्रायल कोर्ट के सामने रखी गई जांच रिपोर्ट में कहा कि अक्षरधाम मंदिर(गुजरात), रघुनाथ मंदिर (जम्मू) और संकट मोचन मंदिर (वाराणसी) जैसे हिंदू मंदिरों पर “इस्लामिक जिहादी आतंकवादी हमलों” से असीमानंद काफी परेशान थे. पूरे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ असीमानंद और सहयोगियों ने “विकसित प्रतिशोध” की बात कही, एनआईए ने अपनी प्रारंभिक चार्जशीट में कहा, आरोपी व्यक्ति देश भर में विभिन्न व्यक्तियों से मुलाकात करते हैं, और बम धमाकों की योजना बनाते हैं।
ये लोग मुस्लिम धर्मावलंबियों के पास या आसपास के स्थानों पर बम विस्फोटों को अंजाम देने के लिए रणनीति बनाते हैं. उसके बाद ये लोग भारत और पाकिस्तानी के बीच चलने वाली ट्रेन समझौता एक्सप्रेस का चयन किया. ट्रेन में धमाका सूटकेस बम के जरिए किया गया, सूटकेस बम कथित तौर पर कमल, लोकेश, राजेंदर और अमित द्वारा लगाए गए थे।
आरोपी राजेन्द्र चौधरी के साथ सुनील जोशी, रामचंद्र कालसांगरा, लोकेश शर्मा, कमल चौहान, अमित और अन्य को जनवरी 2006 में देवास, मध्य प्रदेश के बागली जंगल में प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए कहा गया था, इस दौरान “उच्च विस्फोटक वाला टाइमर बम” तैयार किया गया था और प्रदर्शन भी किया गया. अभियुक्तों ने अप्रैल 2006 में फरीदाबाद में करणी शूटिंग रेंज में फायरिंग अभ्यास में भाग लिया।
ट्रेन को इसलिए चुना गया क्योंकि आरोपी द्वारा जब रेकी की गई तो उसने पाया कि पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कोई सुरक्षा उपलब्ध नहीं थी, आरोपियों ने इंदौर से यात्रा की और विस्फोट से पहले पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के छात्रावास के कमरे में रुके थे।
अगस्त 2014 में केस में आरोपी स्वामी असीमानंद को जमानत मिल गई थी. कोर्ट में जांच एजेंसी एनआईए असीमानंद के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं दे पाई थी। असीमानंद को सीबीआई ने 2010 में उत्तराखंड के हरिद्वार से गिरफ्तार किया था. उन पर वर्ष 2006 से 2008 के बीच भारत में कई जगहों पर हुए बम धमाकों को अंजाम देने से संबंधित होने का आरोप था। असीमानंद के खिलाफ मुकदमा उनके इकबालिया बयान के आधार पर बना था लेकिन बाद में वो ये कहते हुए अपने बयान से मुकर गए थे कि उन्होंने वो बयान टॉर्चर की वजह से दिया था।

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