2019 चुनाव स्पष्ट है, ‘मोदी या अराजकता’: अरुण जेटली

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नई दिल्ली। 2019 लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही देश में आचार सहिंता लागू है। राजनीतिक दल और राजनेता अब पूरी तरह से चुनावी समर में उतर चुके हैं। विपक्ष जहां हर कीमत पर मोदी से दिल्ली का सिंघासन छीनने की जुगत में है, तो
दूसरी ओर बीजेपी विपक्ष की इसी बेचैनी को अपना हथियार बनाना चाह रही है। जेटली ने अपने लेख में देश के जिस एक सबसे बड़े मुद्दे पर फोकस किया है, वो है विपक्ष में ‘नेतृत्व विहीनता’।
वित्त मंत्री ने याद दिलाया कि “विपक्ष ने नरेद्र मोदी के लिए गुजरात से ही शत्रुतापूर्ण अभियान चला रखा था, लेकिन मोदी ने गुजरात में अपना विकास का एजेंडा जारी रखा और लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीते। उन्होंने जनता से सीधा संवाद कर गुजरात में नए नेतृत्व का निर्माण किया।
पूरी दुनिया में गुजराती बोलने वाली आबादी को प्रेरित किया। 2014 में जब देश ने नेतृत्व का पतन, अविवेक, एक नीतिगत पक्षाघात और अखंडता को एक बड़ी त्रासदी के रूप में देखा, तो लोगों ने नरेंद्र मोदी पर भरोसा जताकर एक भारी जनादेश दिया”।
पांच साल में मोदी सरकार के कामकाज का आंकलन करते हुए वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि “ पीएम मोदी ने दुनिया के सामने साबित कर दिया है, कि भारत को ईमानदारी के साथ प्रशासित किया जा सकता है। भारत अपने आपको सुरक्षित करने के लिए और विकास को सुनिश्चित करने के लिए कठोर निर्णय लेने में सक्षम है। आज विश्व पटल पर भारत उच्च स्थान पर काबिज है।
भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. देश आज आतंकवाद को पूरी तरह से नष्ट करने के लिए प्रतिबद्ध है। 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता और फिर 2019 के हवाई हमले इसी ओर इशारा करते हैं”। जेटली ने कहा कि 2019 आम चुनाव में जो मुद्दे अपना असर दिखाने वाले हैं उनमें ‘नेतृत्व का मुद्दा’ अहम होगा, लेकिन
एनडीए में नेतृत्व कोई मुद्दा नहीं है। पहले से ही तय है कि नरेंद्र मोदी एनडीए का नेतृत्व कर रहे हैं, एनडीए की जीत होने पर नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री होंगे। उनका नेतृत्व राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत है, उनकी रेटिंग देश में बहुत अधिक है. उनका ट्रैक रिकॉर्ड खुद बोलता है”।
2019 की चुनावी सरगर्मियों के बीच विपक्ष के अंदर गठबंधन और महागठबंधन की कबायत पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सीधा हमला बोला, उन्होंने कहा कि महागठबंधन एक परस्पर विरोधी गुटों का आत्म-विनाशकारी ‘गठबंधन’ है। यूपीए में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक अपर्याप्त नेता हैं।
उन्हें देश ने आजमाया, परखा और फिर असफल घोषित किया है। मुद्दों की समझ में उनकी कमी भयावह है। वह इस अराजक पैक ( गठबंधन) के नेता बनने की इच्छा रखते हैं। जबकि ममता दीदी इस गठजोड़ के ‘सूत्रधार’ के रूप में खुद को आगे बढ़ा रहीं हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में कांग्रेस या वाम दलों के साथ उनकी एक सीट पर भी सहमति नहीं है।
दूसरी ओर बीएसपी की कद्दावर नेता मायावती हैं जिनका 2014 के आम चुनाव में सफाया हो गया था, लेकिन बदलते दौर में उन्होंने अपनी रणनीति बदली है। वो मजबूत बीएसपी तो चाहती हैं, लेकिन उन्हें कांग्रेस कमजोर चाहिए। वो अपने पत्ते छिपाकर रखती हैं, और लोकसभा चुनाव के बाद वो उन्हें खोलेंगी।
समाजवादी पार्टी के साथ उन्होंने रणनीतिक गठबंधन बनाया है लेकिन अतीत में उनके सहयोगियों के साथ हुए ऐतिहासिक संघर्ष के दाग अभी धुले नहीं हैं”। गठबंधन के नेताओं पर हमला बोलते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि
“इसमें अत्यधिक महत्वाकांक्षी, आत्म-केंद्रित और उस्ताद नेताओं का एक सेट है। कांग्रेस और वाम दलों को छोड़ दें, तो ज्यादातर नेताओं ने अतीत में बीजेपी के साथ राजनीतिक गठजोड़ किया है. उनकी विचारधारा और उनके घटकों के प्रति प्रतिबद्धता व्यापक रूप से भिन्न है”।
वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुताबिक ‘यह प्रतियोगिता एक ऐसे नेता के बीच है, जिसके हाथ में देश विकसित और सुरक्षित है. उस पर भरोसा किया जाता है। उसके खिलाफ विपक्ष में कोई अनुमानित नेता नहीं है।
विपक्ष में जो नेता हैं वो एक-दूसरे को पछाड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं। अगर हम पिछले अनुभवों को देखें तो विपक्ष के नेता केवल एक अस्थायी सरकार का वादा कर सकते हैं. 2019 चुनाव स्पष्ट है, ‘मोदी या अराजकता’

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