चुनाव आते ही बिगड़ जाते हैं बीजेपी के इस मंत्री के बोल राहुल गांधी को बताया ‘हाइब्रिड आदमी’

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अनंत कुमार हेगड़े स्किल डेवलपमेंट और उद्यमिता मामलों के राज्य मंत्री हैं। अच्छे या बुरे उद्यमों में वह जिस अव्वल दर्जे की सक्रियता दिखाते हैं, उसे देखते हुए उनके ‘उद्यमशील’ होने पर कोई शक नहीं है, लेकिन वह किस तरह की ‘स्किल’ देश में विकसित करना चाहते हैं इस पर सवाल जरूर है।
अनंत हेगड़े राजनीति के कोई नए बेलगाम घोड़े नहीं हैं. हां, इनके बहकने की टाइमिंग अकसर सोची-समझी हुई जरूर दिखती है। लोकसभा चुनाव सिर पर है, तो राहुल का डीएनए टेस्ट मांग रहे हैं, कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले राहुल को ही टारगेट करने के लिए हेगड़े ने कहा था कि- “इस आदमी को यह भी नहीं पता कि चरणामृत कैसे लेते हैं। किसी ने बस उन्हें सलाह दे दी, तो रुद्राक्ष की माला पहनकर मंदिर, टोपी पहनकर मस्जिद और क्रॉस पहनकर चर्च जाने लगे. वह नौटंकी करना चाहते हैं. कांग्रेस एक ड्रामा कंपनी है।”
खुद के एक और ‘रिसर्च’ से हेगड़े ने देश को तब अवगत कराया, जब उन्होंने कहा कि- “पीएम मोदी बाघ हैं, जबकि विपक्ष कौआ, बंदर और गदहों का जमावड़ा है.” यानी उन्होंने खुद विपक्ष के डीएनए का ब्योरा पेश कर दिया. चुनावी मौसम में हेगड़े की जुबानी सक्रियता देखने लायक होती है. ऐसे में ये सवाल जरूर रहेगा कि हेगड़े चुनावों के समय चालू हो जाते हैं या कोई उनमें चाबी भरकर चालू कर देता है?
क्योंकि 2014 में कर्नाटक की 28 सीटों में से 17 सीटें जीतने वाली बीजेपी के लिए इस बार राज्य में राह आसान नहीं है. सामने कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन है और मौजूदा राजनीति में किसी भी दो ध्रुवीय मुकाबले में ‘एडवांटेज’ बीजेपी से दूर खिसकने की बात कही जाती है।
बहरहाल, पहले ये जानना जरूरी है कि अनंत कुमार हेगड़े ने इस बार क्या गुल खिलाया है?
केंद्रीय मंत्री कर्नाटक के करवार में एक चुनावी रैली में थे. इसी रैली में हेगड़े ने कहा कि- राहुल गांधी तो इस देश को जानते ही नहीं. उन्हें तो अपने धर्म के बारे में ही कुछ नहीं पता है. उनके पिता मुस्लिम थे। मां ईसाई हैं तो फिर राहुल हिंदू कैसे हो गए? आखिर यह कैसे मुमकिन है? ये खाली दिमाग का आदमी न कुछ जानता है और न ही समझता है। आप दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में ढूंढ लीजिए। ऐसा हाइब्रिड नमूना नहीं मिलेगा. यह मुस्लिम, जो खुद को हिंदू जनेऊधारी बताते हैं, क्या उनके पास हिंदू होने का एक भी सबूत है? मैं कोई मजाक नहीं कर रहा हूं।”
राहुल को लेकर हेगड़े की नफरत का उफान यहीं खत्म नहीं हुआ। हेगड़े ने ये भी कह डाला कि- “जब राजीव गांधी की मौत हुई, तो उनके शरीर के हिस्सों का डीएनए टेस्ट किया जाना था। तब सोनिया गांधी ने राहुल की जगह प्रियंका का सैंपल लेने के लिए कहा. यह बात रिकॉर्ड में है। अब यही हाइब्रिड आदमी सबूत मांग रहा है।”
दरअसल, विवाद पैदा करना और सुर्खियों में रहना ही हेगड़े की यूएसपी है. इसी साल जनवरी में हेगड़े साहब ने खुलेआम हिंदू और मुस्लिम का भेद किया था। धर्मनिरपेक्षता की शपथ लेने वाले इस मंत्री ने तब बाकायदा एक रैली में कहा था कि- “अगर कोई हिंदू लड़की का हाथ छूता है, तो उसके हाथ बचने नहीं चाहिए।”
अपनी बातों के समर्थन में मंत्री जी ने तर्क दिया था कि- “इतिहास ऐसे ही लिखा जाता है। जब आप इतिहास लिखते हैं, तो आपके अंदर एक हिम्मत आती है। जबकि आप इतिहास पढ़ते हैं, तो आपके अंदर डर का भाव आता है। तय आप लोगों को करना है कि आप इतिहास लिखना चाहते हैं या सिर्फ पढ़ना चाहते हैं।”
ताजमहल पर विवादित बयान देने वालों की लंबी फेहरिस्त रही है, लेकिन जो दावा अनंत कुमार हेगड़े ने कर डाला, वैसा करने की गुस्ताखी दूसरा कोई नहीं कर पाया। इतिहास के हजारों पन्नों को झुठलाते हुए हेगड़े ने थ्योरी दी कि- “ताजमहल को मुसलमानों ने बनाया ही नहीं था. शाहजहां ने अपनी जीवनी में लिखा है कि ताजमहल को उसने राजा जय सिंह से खरीदा था।”
धर्म की खाई खोदकर उसमें नफरत के बीज बोने वाले हेगड़े हिंदुओं को आगाह करने की मुद्रा में ये भी कह चुके हैं कि- “अगर हिंदू इसी तरह से सोते रहे, तो एक दिन राम को‘जहांपनाह’ और मां सीता को ‘बीवी’ कहकर पुकारा जाएगा।”
केरल के सबरीमाला मंदिर में दो महिलाओं के दर्शन करने पर हेगड़े ने इसे दिनदहाड़े हिंदुओं का रेप करार किया था. ये वही नेता हैं, जिन्होंने टीपू सुल्तान के लिए कहा था कि- “मैंने कर्नाटक सरकार को ऐसे बर्बर, हत्यारे, कट्टरपंथी और
मास रेपिस्ट के गुणगान के लिए आयोजित होने वाले जयंती कार्यक्रम में मुझे नहीं बुलाने के लिए कहा है।” दरअसल, हेगड़े ने ये बात इसलिए कही थी क्योंकि तत्कालीन सिद्धारमैया सरकार ने प्रोटोकॉल के तहत उन्हें भी इस कार्यक्रम में बुलाया था।
2018 के अक्टूबर महीने की बात है। अनंत कुमार हेगड़े ने अपने लक्ष्यों को लेकर बड़ी साफगोई दिखाई थी। कहा था कि- “हम यहां समाज सेवा करने नहीं आए हैं. हम राजनीति के अलावा कुछ और नहीं करने जा रहे.” बाकी राजनेता अपनी राजनीति को सेवा का जरिया बताते नहीं थकते। राजनेताओं से उम्मीद भी ऐसी ही की जाती है। लेकिन शायद हेगड़े दुनिया के लोकतंत्र में इकलौते ऐसे नेता हैं, जो खुद कहते हैं कि वह राजनीति में समाज सेवा करने नहीं आए हैं।
अनंत हेगड़े केंद्रीय मंत्री हैं। संविधान की शपथ भी ली है. लेकिन वह तो संविधान के मूल भाव को ही नहीं मानते. तभी तो इन्होंने पिछले ही साल यहां तक कह डाला था कि- “लोग धर्मनिरपेक्ष शब्द से बस इसलिए सहमत हैं, क्योंकि संविधान में ये शब्द लिख दिया गया है। सच तो ये है कि संविधान को बहुत पहले बदल देना चाहिए था।
हम इसे बदलने भी जा रहे हैं. जो लोग खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, वे बिना माता-पिता से जन्मे इंसान की तरह हैं. जो खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं। मैं नहीं जानता कि उन्हें फिर क्या कहा जाए.” तब एक केंद्रीय मंत्री के ऐसे बयान पर खूब हाय-तौबा मची थी, लेकिन जैसा कि होता है, बात आई-गई भी हो गई।
धर्मों के बीच खाई पैदा कर राजनीति करना हेगड़े साहब की फितरत रही है. मौजूदा सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात करती है। लेकिन सरकार के इस मंत्री ने बार-बार दिखाया है कि न उसे ‘सबका साथ’ से मतलब है और न ही ‘सबके विकास’ से। फिर भी अनंत कुमार हेगड़े मंत्रिमंडल में महफ़ूज हैं. कर्नाटक में बीजेपी की नई पीढ़ी के सबसे प्रखर नेता ही नहीं माने जाते, येदियुरप्पा को रिप्लेस करने के लिए तैयार भी बताए जाते हैं।
प्रखरता की पूंजी लंबी चलती है। बेलगाम होकर आप कभी किसी के लिए इस्तेमाल होते हैं तो कभी अपनी इस विधा का इस्तेमाल खुद के लिए करते हैं। लेकिन ऐसा करते-करते आप कब गैरजरूरी हो जाते हैं ये आपको भी पता नहीं पड़ता. मगर सच ये भी है कि अगर आपमें गहराई न हो और आपका घोषित वाक्य ही यह हो कि- मैं समाज सेवा करने राजनीति में नहीं आया हूं, तो फिर आप बेलगाम ही हो सकते हैं, प्रखर नहीं।
बेलगाम होने की वजह से क्षमता से ज्यादा पा जाने पर खुद को लेकर आत्मुग्धता आती है। जबकि क्षमता से ज्यादा देने वाले के प्रति आप अभिभूत भी रहते हैं। देने वाले के लिए फिर आप किसी भी हद तक जाकर स्वामी भक्ति दिखाते हैं। भले ही ऐसा करते हुए आप खुद को ही मजाक का पात्र बनाते चले जाएं. नफरत की जुबान चलाने से फुर्सत मिले, तो हेगड़े साहब इन पैमानों पर आत्म परीक्षण कर सकते हैं।

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