मथुरा की अनूठी लठमार होली के रंगों में सराबोर हुई कृष्ण की नगरी
मथुरा की अनूठी लठमार होली में नंदगाव के हुरियारों पर प्रेमभरी लाठिया बरसाने के लिए बरसाना की हुरियारिनों ने कमर कस ली है। हुरियारिनें बरसाना के ब्राह्मण समाज की बहुएं होती हैं, जो किशोरीजी की सहचरी के रूप में नंदलाला और उनके ग्वाल-वालों के साथ होली खेलकर इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन करती हैं।
आश्चर्य यह कि वर्षभर अपने घरों में सामान्य रूप में रहने वाली इन हुरियारिनों में होली के समय असाधारण व आलौकिक तेज आ जाता है। ये हुरियारिनें अपने हाथों में तेल से नहाई चमचमाती लाठियां लेकर हुरियारों पर बरस पड़ती हैं।
हुरियारे भी अपनी ढालो पर लाठी के वार बड़े ही प्यार से सहन करते हुए नाचते हैं. लोकगीत गाते हुए होली की तैयारियां शुरू की जाती हैं. होली खेलते समय सिर्फ राधा रानी व श्रीकृष्ण को अंतर मन में याद करते हैं।
लाठी चलाने के लिए महीनों पहले से ही दूध, घी, बदाम, काजू केसर आदि का सेवन करना शरू कर देती हैं. होली वाले दिन विशेष पोशाक पहन और सोहल श्रृंगार कर कान्हा के सखा रूपी हुरियारों पर अपनी प्रेम पगी लाठियां बरसाती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, छह सौ साल पहले ब्रज उद्धारक व रासलीलानुकरण के अविष्कारक श्री नारायण भट्ट ने लठामार होली का आयोजन कराया था।
मुगलकाल में हिंदू महिलाओं की लाज की रक्षा एक यक्ष प्रश्न था, जिसके बारे में सोचकर नारायण भट्ट ने हिंदू नारियों को अबला से सबला बनाने की दिशा में कदम उठाया। इस लीला के माध्यम से महिलाओं को आत्मरक्षा के लिए तैयार किया था।