जब कल्याण सिंह को हटा कर एक दिन के मुख्यमंत्री बने थे जगदम्बिका पाल

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एटा (दीपक वर्मा )| तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह जब अपने प्रत्याशी के पक्ष में रहरा में जनसभा कर रहे थे, तभी लखनऊ से फोन आया कि उनकी सरकार गिर गई है, कांग्रेस के जगदंबिका पाल मुख्यमंत्री बन गए।
परिसीमन से पहले ऐसे थे हालात
परिसीमन से पूर्व अमरोहा जनपद की सुरक्षित गंगेश्वरी विधानसभा सीट सम्भल लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हुआ करती  थी। कल्याण सिंह गंगेश्वरी के रहरा में सभा को संबोधित करने आए थे। रहरा में भाजपा प्रत्याशी डीपी यादव के समर्थन में जनसभा को संबोधित करने के दौरान ही विपक्ष ने नाटकीय घटनाक्रम के तहत उनकी सरकार गिरा दी थी। आनन-फानन में जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया था। वीआइपी सीट सम्भल का यह चुनाव मुलायम सिंह और भाजपा के लिए महत्वपूर्ण था। यादव बिरादरी के बड़े नेता के रूप में देश में स्थापित हो चुके मुलायम सिंह यादव को घेरने के लिए भाजपा ने बाहुबली डीपी यादव को सम्भल से चुनाव मैदान में उतारा था। गंगेश्वरी के तत्कालीन भाजपा विधायक तोताराम बताते हैं कि चुनाव प्रचार थमने के दिन शाम को पांच बजे तक कल्याण सिंह डीपी यादव के समर्थन में रहरा में जनसभा को संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री जनसभा में मौजूद जनसैलाब में जोश भरने को ताबड़तोड़ सियासी तीर छोड़ रहे थे। मतदान में गड़बड़ी पर अफसरों को चेतावनी दे रहे थे तभी लखनऊ से एक फोन आया जिसमें बताया गया कि कल्याण सिंह की सरकार गिर गई है। तोताराम के मुताबिक कांग्रेस नेता जगदंबिका पाल के सूबे के सीएम बनने की खबर लगते ही कल्याण सिंह जनसभा छोड़कर तत्काल लखनऊ रवाना हो गए। बताया कि इसके बाद उन्होंने अगले दिन राष्ट्रपति के सामने विधायकों की परेड करा दी जिससे उनकी सरकार बच गई थी।

 

अतीत के झरोखे से —
मौजूदा चुनावी रंगढंग के सवाल पर अतीत में खो जाते हैं। कहते हैं कि वर्ष 1984 में उन्होंने अमरोहा से कांग्रेस प्रत्याशी रामपाल सिंह के चुनाव में जी-जान से भागीदारी निभाई थी। उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। इसके चलते पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी। कुल मिलाकर सात-आठ गाडिय़ों से चुनावी दौरा होता था। कार्यकर्ता भी निष्ठा के साथ प्रत्याशी से जुड़ते थे। मतदान को लेकर एक ही रणनीति बनती थी कि अपने मतदाताओं को अधिक से अधिक संख्या में मतदान केंद्रों तक पहुंचाया जाए। इसके लिए कार्यकर्ता सुबह से ही जुट जाता है। बोले कि बस एक डर जरूर सताता था कि किसी बूथ पर कैप्चरिंग न हो जाए। उस समय पुलिस और अर्धसैनिक बलों की इतनी उपलब्धता नहीं रहती थी। मौका मिलते ही बाहर से जमा हुए समर्थक बूथ में घुसकर बैलेट पेपर पर ठप्पे जड़ देते थे। अब इससे निजात मिल गई लेकिन भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया। टिकट लेने को लेकर ही खरीद-फरोख्त की चर्चाएं तेज हो जाती हैं। इसके बाद मतदाताओं को लुभाने का खेल चलता है। इसके लिए शराब, सामान और नोट बांटने से परहेज नहीं होता। इस पर भी नकेल कसने के लिए निर्वाचन आयोग को और सख्त होना होगा।
खडग़वंशियों संग गुडग़ुड़ाया था हुक्का
वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में सम्भल लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी डीपी यादव के समर्थन में रहरा में सीएम कल्याण सिंह की जनसभा में भीड़ जुटी थी। कल्याण सिंह ने खडग़वंशी बिरादरी से खूनी रिश्ता बताते हुए बिरादरी के लोगों के साथ बैठकर हुक्का भी गुडग़ुड़ाया था। चुनाव प्रचार के अंतिम दिन सीएम की जनसभा में जुटी भीड़ पर मुलायम समेत समूचे विपक्ष की नजर थी। तत्कालीन भाजपा विधायक तोताराम कहते हैं कि मुलायम के सामने बाहुबली डीपी यादव चुनाव न जीत जाएं इसलिए विपक्ष ने सरकार गिराने का षडय़ंत्र रचा था।

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 एक दिन के सीएम बने थे जगदंबिका पाल
भाजपा सांसद जगदंबिका पाल को वन डे वंडर ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स कहा जाता है। उत्तर प्रदेश की 13वीं विधानसभा की एक घटना ने उनको यह नाम दिया। बात फरवरी 1998 की है। जब दल-बदल की वजह से बहुमत साबित करने के दौरान विधानसभा में मारपीट हुई थी। इस पर तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने केंद्र से राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की, लेकिन केंद्र ने इन्कार कर दिया। इस पर तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह ने बाहर से आए विधायकों को मंत्री बनाकर यूपी का सबसे बड़ा मंत्रिमंडल बना दिया। कल्याण को उस समय झटका लगा जब बसपा से आए विधायकों के सपोर्ट को राज्यपाल ने मान्यता देने से इन्कार कर दिया। रातों-रात कल्याण सरकार को बर्खास्त कर दिया। उन्होंने जगदंबिका पाल को सीएम बना दिया। अगले ही दिन गवर्नर के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने गवर्नर का आदेश बदल दिया। जगदंबिका पाल बहुमत साबित नहीं कर पाए और फिर पाल को कुर्सी छोडऩी पड़ी।

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