‘स्वराज भवन’ जो सवा सौ वर्षों से अपनी चारदीवारी में एक परिवार, पार्टी और देश के संघर्ष की कहानी समेटे खड़ा है
प्रयागराज (इलाहाबाद) में सवा सौ साल से मौजूद आनंद भवन अपनी चारदीवारी में एक परिवार, एक पार्टी और एक देश के संघर्ष की कहानी समेटे खड़ा है। इस कहानी के कई पन्ने अब तक अनजाने हैं। इस छोटे से लेख में आज उन्हीं में से कुछ सफहों को खोलने की कोशिश करते हैं।
एक जर्जर इमारत से ‘आनंद भवन’ होने का सफर
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू सबसे पहले पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के मुइर सेंट्रल कॉलेज पहुंचे थे। साल 1883 में उन्होंने कैंब्रिज से वकालत की. इसके बाद हिंदुस्तान लौटकर 25 साल के मोतीलाल नेहरू की दूसरी शादी 14 साल की स्वरूप रानी से करवा दी गई।
मोतीलाल नेहरू की पहली पत्नी की मौत प्रसव के दौरान हो गई थी। तीन साल की उम्र में उनका बेटा रतनलाल भी चल बसा. भविष्य में मोतीलाल की वकालत चल निकली। रशीद किदवई अपनी किताब ’24 अकबर रोड़’ में बताते हैं कि तीस की उम्र के आसपास ही मोतीलाल 2 हजार रुपए प्रति महीने से ज्यादा कमाने लगे थे।
उस दौरान एक स्कूल टीचर की कमाई दस रुपए तक ही होती थी। नए नवेले अमीर मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद की 9 एल्गिन रोड़ पर एक शानदार घर लिया जिसमें सभी को सिर्फ अंग्रेज़ी बोलने का हुक्म दिया गया। साल 1900 में जब जवाहलाल नेहरू 11 साल के थे, मोतीलाल नेहरू ने अपनी प्रतिष्ठा के हिसाब से एक और नया घर खरीदा।
ये घर इलाहाबाद के 1, चर्च रोड़ पर स्थित था। 19 हजार रुपए की भारी भरकम कीमत चुका कर मोतीलाल नेहरू ने जिस घर को खरीदा वही भविष्य में आनंद भवन के नाम से जाना गया। घर बेहद जर्जर हालत में था लेकिन उसके लंबे चौड़े अहाते में फलों के बगीचे और स्विमिंग पूल ने समां बांधा हुआ था।
मोतीलाल नेहरू ने बड़े मन से पूरे घर की मरम्मत कराई. हर कमरे में बिजली-पानी की सप्लाई का इंतज़ाम हुआ। बाथरूम में फ्लश टॉयलेट लगवाए गए जिसे पहले इलाहाबाद में किसी ने देखा तक नहीं था। अंग्रेज़ी स्टाइल से बेतरह प्रभावित मोतीलाल नेहरू ने उस दौर में यूरोप और चीन की यात्रा कर बेशकीमती फर्नीचर खरीदा. घर का नाम ‘आनंद भवन’ भी उन्होंने ही रखा।
