300 वर्षों से गुलाल गोटे की कला को जीवित रखकर यह मुस्लिम परिवार दे रहा है भाईचारे का संदेश

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जयपुर। पिछले दिनों हिन्दुस्तान यूनीलिवर के प्रोडक्ट सर्फ एक्सेल के होली वाले विज्ञापन का देशभर में लोगों ने सोशल मीडिया पर काफी विरोध किया, कुछ लोगों का कहना था कि
इस वीडियो से लव जिहाद के बढ़ावा मिल रहा है, लेकिन इस विज्ञापन का मकसद केवल होली पर भाईचारे का संदेश देना था तो जो लोग इस विज्ञापन का विरोध कर रहे थे उनको यह खबर जरूर पढ़नी चाहिए।
राजस्थान के जयपुर में एक मुस्लिम परिवार गंगा-जमुनी संस्कृति की प्रतीक गुलाल गोटे की यह कला करीब 300 साल से जीवित रखे हुए है। इतना ही नहीं इस परिवार के लोग राजवाड़ों के समय से होली पर गुलाल गोटे बनाते आए हैं. अब तो जयपुर का गुलाल गोटा देश की सीमाएं लांघकर विदेशों में भी पहुंचने लगा है।
होली पर अगर जयपुर के गुलाल गोटे का साथ मिल जाए तो होली का मजा दुगना हो जाता है। जयपुर में मनिहारों के रास्ते में कई मुस्लिम परिवार इन दिनों रात-दिन गुलाल गोटे बनाने में जुटे हैं। दरअसल गुलाल गोटा चूड़ियां बनाने वाली लाख का बना रंग भरा गोला होता है।
जो कागज की तरह हल्का होता है जिसे फेंकने पर टकराते ही रंग-बिखर जाता है। इसे बनाने की तैयारियां होली से महीनों पहले ही शुरू हो जाती हैं। मनिहारों के परिवार मिलकर गुलाल गोटे बनाते हैं।
गुलाल गोटे बनाने का तरीका सदियों पुराना है। परिवार का एक सदस्य लाख तैयार करता है, तो दूसरा गरम लाख को पीतल के पाइप के एक सिरे पर लगाकर फूंक मारते हुए लाख को फुलाता है। गोला बनने पर ठंडा करने के लिए पानी में डाल दिया जाता है फिर
रंग भरकर पैक कर दिया जाता है। गुलाल गोटे बनाने का तरीका नहीं बदला, लेकिन वक्त के साथ इसकी पैकेजिंग बदल गई. अब कॉर्पोरेट्स कंपनियों और देश-विदेश के पर्यटकों के लिए इसकी आकर्षक पैकिंग की जाती है।
गुलाल गोटे केवल जयपुर की पहचान हैं ये दुनिया में कहीं भी दूसरी जगह नहीं मिलता है। शहर के लोग होली पर अपने बाहर रहने वाले दोस्तों, रिश्तेदारों को होली पर गुलाल गोटे उपहार में भेजने के लिए होली से कई दिन पहले ही गुलाल गोटे की खरीदारी शुरू कर देते हैं।
होली के बाकी दिनों में मनिहारे चूड़ियां बनाते हैं. गुलाल गोटे बनाना इनका मूल पेशा नहीं है. एक गुलाल गोटे की लागत करीब 10 रुपये आती है और लगभग इतनी ही कीमत में बेची जाती है।
गुलाल गोटा बनाने वाले कहते हैं कि मुनाफे से ज्यादा तवज्जो हम कला और परम्परा को देते हैं। मुनाफा बीच में नहीं आया, शायद इसीलिए गुलाल गोटा रंग बिखेर रहा है। पिछले दिनों  समाज का जो तबका सर्फ एक्सेल के विज्ञापन का विरोध कर रहा था उसे इस खबर से सबक लेना चाहिए।

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