कांग्रेस बालाकोट के साथ अन्य मुद्दों पर घेरकर भाजपा सरकार पर बढ़ा सकती है दबाव

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पिछले हफ्ते इंडिया टुडे ग्रुप की ओर से कराए गए एक सर्वे में सामने आया कि बेरोजगारी अब भी भारतीय वोटर के लिए सबसे प्रमुख मुद्दा है। जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा इस सर्वे में दूसरे स्थान पर रहा। हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार इसे अपना ट्रंप कार्ड मानती है और
वह इसके सहारे ही दूसरी पारी की उम्मीद लगाए हुए है। इसलिए विपक्ष को इस बात को लेकर उद्वेलित नहीं होना चाहिए कि बालाकोट में पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक के बाद भाजपा को नाटकीय बढ़त हासिल होने जा रही है।
सच्चाई तो यह है कि भाजपा खुद भी नहीं जानती कि सिर्फ पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक से उसे कितना फायदा होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश से संबंध रखने वाले एक वरिष्ठ मंत्री ने कुछ पत्रकारों से निजी बातचीत में माना भी कि लोगों की जिंदगी से संबंध रखने वाले मुद्दे भी चुनाव अभियान मेें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
भाजपा को राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर साफ बढ़त दिखती है, लेकिन एक सत्ताधारी दल को मतदाता कई कसौटियों पर नापता है। यह पांच या छह विषयों में डिस्टिंक्शन के साथ पास होने जैसा है, न कि केवल एक में। इसलिए अकेले राष्ट्रीय सुरक्षा में पास होना काफी नहीं है। इसलिए सत्ताधारी दल को बेरोजगारी, घटती आर्थिक दर तथा ग्रामीण व किसान संकट पर वोटरों के कठिन सवालों का जवाब देना होगा।
यह सच है कि भाजपा अपने सबसे मजबूत पक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा पर ही फोकस करेगी। वह इस बात को स्थापित करने की कोशिश करेगी कि केवल नरेंद्र मोदी जैसा एक मजबूत नेता देश को सुरक्षित रख सकता है और पाकिस्तान व आतंकवाद पर कठोर प्रहार कर सकता है। विपक्षी दलों को चाहिए कि वे इसे वापस बेरोजगारी, किसानों की नाराजगी, नोटबंदी व जीएसटी के खराब क्रियान्वयन पर ले जाएं।
विपक्ष को तो आतंकवाद के मुद्दे पर यह सवाल भी उठाना चाहिए कि सीआरपीएफ के काफिले पर हमले के इंटेलीजेंस इनपुट के बावजूद आवश्यक कदम क्यों नहीं उठाए गए? इसके अलावा आज तक इस बात का जवाब नहीं मिला है कि एक साथ 2700 सीआरपीएफ जवानों का काफिला क्यों रवाना किया गया?
जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने तो इस हमले के बाद सार्वजनिक तौर पर कहा था कि नई दिल्ली से मिली जानकारी पर कार्रवाई करने में कोई लापरवाही तो हुई है। चुनाव अभियान में ये मुद्दे तो उठेंगे ही।
इसके अलावा यह साफ है कि बालाकोट एयर स्ट्राइक पर भाजपा के प्रचार का सर्वाधिक असर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, उत्तराखंड, हरियाणा और छत्तीसगढ़ जैसे हिन्दी भाषी राज्यों में ही हाेगा। 2014 के चुनाव में ये राज्य ही भाजपा के गढ़ रहे, उसने यहां की 90 फीसदी सीटों पर विजय हासिल की।
मुुझे नहीं लगता कि क्षेत्रीय पाटियों के मजबूत आधार वाले दक्षिण भारत में एयर स्ट्राइक कोई बड़ा मुद्दा होगा। संभवतया उड़ीसा, पश्चिम बंगाल व पूर्वोत्तर में भी ऐसा ही होगा।
इसलिए भाजपा के सामने हिंदी भाषी राज्यों में राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे का इस्तेमाल करके अपनी जीती सीटों को कायम रखने की चुनौती है। इन राज्यों में यह आसान नहीं होगा, क्योंकि बेरोजगारी व किसानों की नाराजगी यहां पर बड़े मुद्दे हैं। यूपी में सपा-बसपा गठबंधन व कांग्रेस द्वारा कम सीटों पर लड़ना भी भाजपा के लिए नई चुनौती पेश करेगा। कोई माने या न माने जाति का मुद्दा भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
मायावती के पास हमेशा ही 19 से 20 फीसदी वोट रहे हैं। इसके अलावा गठबंधन में वह अपने वोट ट्रांसफर कराने के लिए भी जानी जाती हैं। ये वो चुनौतियां हैं जो 2014 में 80 में से 71 सीट जीतने वाली भाजपा के सामने यूपी में आएंगी। पुलवामा से पहले एक सर्वे में कहा गया था कि सपा-बसपा यूपी में भाजपा को 18 सीटों तक ला सकते हैं। बालाकोट के बाद हालात तो बदले हैं पर कितने? सबसे बड़ा सवाल यही है कि यूपी में भाजपा अपनी कितनी सीटों को कायम रख पाएगी।
इतिहास भी कहता है कि अकेले राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। कारगिल विजय के बावजूद वाजपेयी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि एयर स्ट्राइक पर पर्याप्त बढ़त के बावजूद भाजपा बहुमत से पीछे दिखती है।
इसलिए 2019 का चुनाव अभी पूरी तरह खुला हुआ है। अब यह इस बात पर निर्भर है कि तमाम राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत से इस चुनावी खेल को कैसे खेलते हैं।

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