गया। लाल गलियारा कहे जाने वाले झारखंड की सीमा से सटी हैं बिहार के पहले चरण की ये चार अहम सीटें। औरंगाबाद, गया, नवादा और जमुई में पिछले चुनाव में मोदी का रंग ऐसा चढ़ा कि तीन सीटें भाजपा के खाते में चली गईं। जमुई से नवादा के रास्ते में सूखी संकरी नदी के पेटे में ट्रकों की लंबी कतार दिखी।
चर्चा चली तो रमेश ने नदी की ओर तर्जनी तानी और बोला- देखिए किस कदर बालू निकाला गया है। नदी की पेटी उघार हो गई है। रमेश देश के उन 8.3 करोड़ वोटर्स में शामिल है, जो इस बार पहली बार वोट डालेंगे। खनन पर रोक के बावजूद यहां लगातार बालू निकाली जाती रही। दरअसल, यहां लाल बालू ही राजनीति की चमक रचती है। गया और औरंगाबाद में भी यही स्थिति है।
हैरानी देखिए ये वह इलाका है, जहां न तो पहाड़ी नदियों की कमी है, ना ही उन पर बने बांधों की। इसके बावजूद यहां सूखा सबसे बड़ी समस्या है। गया के फतेहपुर में तिलैया-ढाढर जैसी अहम सिंचाई योजना फंसी हुई है। प्यासे किसानों की यह उम्मीद बिहार और झारखंड सरकारों के बीच अटकी है।
दोनों राज्यों में एनडीए की सरकार होने के बावजूद इसका हल किसी के पास नहीं है। उम्मीद यहां किसान सम्मान योजना को लेकर भी है। खूब आवेदन भरे जा रहे हैं, पर उसी अनुपात में खारिज भी हो रहे हैं।
गया के किसान सुरेश सिंह बताते हैं- रिकॉर्ड अपडेट ही नहीं है तो आवेदन खारिज होंगे ही। इसमें मोदी का क्या दोष। कसूर तो नीतीश का है। रिकॉर्ड अपडेट कराना तो राज्य का काम है। बहरहाल, इस वक्त राष्ट्रप्रेम के आगे सारे मुद्दे गायब दिखते हैं। लोग कहते हैं- पहली बार हमने पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों को मारा है। इंदिरा के बाद पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने ऐसी ताकत दिखाई है।
जमुई के लखन ठाकुर हों या गया की पटवा टोली के लोग…, सभी कहते हैं- इस बार दो ही खेमे हैं। एक तो खुद मोदी, दूसरे वे जो खिलाफ हैं। बता दें पटवा टोली बुनकरों का वह मोहल्ला है, जहां से सर्वाधिक संख्या में बच्चे आईआईटी क्लीयर करते हैं। कह सकते हैं यहां हर घर में एक इंजीनियर है।
समाजशास्त्री आरबी सिंह कहते हैं कि बिहार ऐसा राज्य है, जहां समस्याएं लाख हों, पर चुनाव जातियों के आधार पर ही लड़ा जाता है। यही यहां का राजनीति शास्त्र है। इसे समझाते हुए वे कहते हैं- देखिए चार में दो सीटें जमुई और गया सुरक्षित हैं। औरंगाबाद में तो 16 संसदीय चुनावों में 13 बार प्रतिनिधित्व दो परिवारों के बीच ही सिमटा रहा। यहां राजपूत ही जीतते रहे हैं।
आजादी के बाद हुए 16 चुनावों में 13 बार यह सीट सत्येन्द्र नारायण सिंह और रामनरेश सिंह के परिवारों के पास ही रही। इस बार भी दोनों के बेटों के बीच मुकाबला होगा। निखिल कुमार, सत्येन्द्र नारायण सिंह के पुत्र हैं तो सुशील कुमार सिंह, रामनरेश सिंह के पुत्र। वहीं परिसीमन के बाद सामान्य हुई नवादा सीट पर भूमिहारों की जीत का रिकॉर्ड है।
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जमुई : यहां अधूरी बरनार जलाशय योजना मुद्दा है। सूखे डैम व सिंचाई के पानी को लेकर किसानों में गुस्सा है। शहरी इलाकों में बायपास बड़ा इश्यू है।
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नवादा : यहां वारसलीगंज में बंद पड़ी चीनी मिल मुख्य मुद्दा है। लोगों में खासी नाराजगी है।
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गया : यहां तिलैया-ढाढर सिंचाई योजना का काम शुरू तक नहीं हो पाया है। किसानों में असंतोष है। शहर में जाम बड़ी समस्या है।
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औरंगाबाद : यहां उत्तर कोयल सिंचाई परियोजना का अभी शिलान्यास ही हुआ है। पानी कब मिलेगा, यह सवाल बना हुआ है।
गठबंधन का गणित
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भाजपा+जदयू+लोजपा
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कांग्रेस+राजद+हम+रालोसपा+लो. जनता दल