कहीं ऐसा न हो कि भाजपा उम्मीदवार अपनी ही पार्टी की वजह से हार जाए कैराना सीट

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा उप-चुनाव में दूध की जली भाजपा अब छाछ भी फूंक-फूंक कर पी रही है। ठीक आखिरी वक्त पर उसने ऐसे उम्मीदवार का टिकट काट दिया जिसकी इस बार जीतने की पूरी संभावनाएं थीं।
17 लाख वोटरों वाले कैराना लोकसभा उप-चुनाव में कोई 45 हजार मतों से हारी मृगांका सिंह फिर से चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी थीं। ऐनवक्त पर उनकी जगह गंगोह के विधायक प्रदीप चौधरी को भाजपा ने टिकट थमा दिया।
मृगांका को सम्पूर्ण विपक्ष द्वारा समर्थित अजित सिंह की रालोद उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने उपचुनाव में हराकर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरी थीं। गोरखपुर और फूलपुर के बाद कैराना लोकसभा उप-चुनाव में भी मिली पराजय ने उत्तर प्रदेश में भाजपा की धरती हिला दी थी। तब प्रचारित किया गया था कि कैराना में 2019 के राष्ट्रीय चुनावों का सेमीफाइनल हो रहा है।
भाजपा के गुर्जर नेता हुकुम सिंह के निधन से खाली हुई कैराना सीट के लिए पिछले साल मई में हुए उप-चुनाव में भाजपा ने उनकी बेटी को यह मानकर टिकट दिया था कि सहानुभूति का फैक्टर मृगांका के पक्ष में काम करेगा पर वैसा नहीं हुआ। रालोद नेता अजित सिंह के बेटे जयंत ने तबस्सुम के लिए जाटों के घर-घर जाकर प्रचार किया और मृगांका हार गईं।
कैराना में अब चर्चा है कि सहानुभूति के जिस फैक्टर ने उप-चुनाव में मृगांका के पक्ष में काम नहीं किया वही अब उनका टिकट काटे जाने के विरोध में काम कर सकता है और भाजपा को एक बार फिर नुकसान उठाना पड़ सकता है।
कैराना-शामली क्षेत्र के उनके समर्थकों में नाराजगी है। प्रदीप चौधरी को टिकट की घोषणा के बाद मृगांका के फार्म हाउस पर उनके समर्थकों की बड़ी पंचायत हुई जिसमें उनसे कहा गया कि
वे निर्दलीय के रूप में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ें पर उन्होंने अपने आपको पार्टी की एक अनुशासित कार्यकर्ता बताते हुए ऐसा करने से इंकार कर दिया।
कैराना में चर्चा है कि मृगांका अब घर बैठ जाएंगी और फिर से अपने को गो-सेवा के काम में लगा देंगीं। टिकट घोषित होने से पहले कैराना में उनके फार्म हाउस पर बातचीत में यह पूछने पर कि अगर उनका टिकट कट गया या वे फिर से हार गईं तो क्या करेंगीं,
उन्होंने कहा था हो सकता है राजनीति छोड़ दें और पूरा समय गो-सेवा और पोते-पोतियों की देखभाल में लगाने लगें। मृगांका ने यह भी बताया था कि उन्होंने अपने क्षेत्र के काफी हिस्से में घर-घर जाकर सम्पर्क कर लिया है।
जिन हिंदू परिवारों ने अखिलेश के राज में कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति के चलते मुस्लिम-बहुल कैराना से पलायन किया था उनमें से अधिकांश लौट आए हैं। कैराना के बाजार का चक्कर लगाने के बाद लगने भी लगता है कि मृगांका जो कह रही हैं वह सही भी है।
मुस्लिम और दलित-बहुल कैराना लोकसभा क्षेत्र में दो लाख से अधिक जाट भी हैं। तबस्सुम हसन चूंकि इस बार रालोद के बजाय सपा की उम्मीदवार हैं, पिछली बार की तरह जाट वोट उन्हें नहीं मिलने वाला है। इसी जाट वोट को भाजपा की तरफ़ जाने से रोकने के लिए, कांग्रेस ने जाट नेता हरेन्द्र मलिक को मैदान में उतार दिया है। मलिक ने शामली में हुई बातचीत में दावा किया कि इस बार भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से है, तबस्सुम से नहीं।
भौगोलिक रूप से सहारनपुर जिले में पड़ने वाली कैराना लोकसभा क्षेत्र की दो विधानसभा सीटों गंगोह और नकुड़ के कुछ मुस्लिम वोट भी इमरान मसूद के प्रभाव के कारण मलिक के पक्ष में जा सकते हैं। तबस्सुम 2009 में बसपा के टिकट पर लोकसभा के लिए चुनी गई थीं पर 2014 की मोदी-लहर में हुकुमसिंह से हार गई थीं।
इस बार रालोद और कांग्रेस तबस्सुम के साथ नहीं हैं। कैराना के 17 लाख के करीब मतदाताओं में पांच लाख मुस्लिम और ढाई लाख दलित हैं। इनके अलावा जाट, कश्यप, गुर्जर, सैनी, ब्राह्मण, वैश्य, राजपूत बड़ी संख्या में हैं और अधिकांश भाजपा समर्थक हैं।
कैराना का उप-चुनाव अगर राष्ट्रीय चुनावों का सेमीफाइनल बताया गया था तो इस बार का नतीजा उत्तर प्रदेश के लिए कई नए राजनीतिक समीकरण बनाने वाला है। भाजपा पिछली बार इसलिए हारी थी कि रालोद के अलावा सपा, बसपा, कांग्रेस सभी ने विपक्षी उम्मीदवार तबस्सुम का समर्थन किया था। इस बार तबस्सुम के साथ केवल सपा और बसपा है और उसमें भी मुस्लिम वोट बंट सकता है।
पर इस बार कैराना में फिर से नया इतिहास यह बन सकता है कि भाजपा उम्मीदवार, भाजपा के कारण ही हार जाए। कैराना एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर सकता है। भाजपा के टिकट को लेकर जो ड्रामा हुआ है उसका असर पश्चिमी यूपी की बाकी सीटों पर भी कुछ तो पड़ेगा ही।
और अंत में यह भी कि कैराना के नतीजों पर पुलवामा का भी असर होने की भाजपा को उम्मीद है। कारण यह है कि क्षेत्र से पुलवामा में दो शहादतें हुई है और हजारों की भीड़ शहीदों को श्रद्धांजलि देने एकत्रित हुई थी। कैराना में यह चर्चा भी सुनने को मिली कि एक शहीद के परिवार ने बाद में सबूतों की मांग कर ली थी जिसे बाद में सांत्वना-चर्चा के लिए मुख्यमंत्री ने लखनऊ बुलवा लिया था।

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