उत्तराखंड में केवल देशभक्ति बड़ा मुद्दा; गंगा का प्रदूषण, दरकते पहाड़ों की है सिर्फ चर्चा

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देहरादून/हरिद्वार। देवभूमि उत्तराखंड में रोजाना सूरज चढ़ने के साथ ही चुनावी गर्मी बढ़ रही है। करीब 53 हजार किलो मीटर के दायरे में फैला यह राज्य चुनावी रंग से सराबोर हो चुका है। तीन क्षेत्रों- कुमाऊं, गढ़वाल और मैदान… और पांच लोकसभा सीटों में बंटे राज्य का मिजाज दो आम चुनावों में एक तरफा रहा।
2009 में सभी पांचों सीट कांग्रेस तो 2014 में सभी सीट भाजपा ने जीतीं। इस बार की चुनावी तस्वीर अभी एकतरफा नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन शाह कहते हैं कि इस बार स्थानीय मुद्दे नदारद हैं। राष्ट्रवाद, चौकीदार और अन्य राष्ट्रीय मुद्दे यहां हावी दिखते हैं।
सबसे हॉट सीट नैनीताल है, यहां अंतिम समय में कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कांग्रेस से पर्चा भरा। रावत कांग्रेस महासचिव भी हैं। भाजपा ने यहां प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्‌ट को रावत के खिलाफ उतारा है।
नैनीताल में रावत अगर सहयोगियों और टिकट के दावेदार जैसे नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा ह्रदयेश और पूर्व सांसद डॉ. महेंद्र पाल सिंह को साथ कर लेते हैं तो उनकी संभावनाएं बढ़ जाएंगी। 70 वर्षीय रावत के लिए यह चुनाव खुद को साबित करने का अहम मौका है, क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के लिए उन्हें ही दोषी माना जाता है।
मुख्यमंत्री रहते वे दो-दो विधानसभा से लड़े और हार गए थे। ऐसे में वे अगर फिर हार जाते हैं तो अागे की राजनीतिक राह  कठिन हो जाएगी।
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश जुयाल कहते हैं आमतौर पर उत्तराखंड लहर पर सवार रहता है और एकतरफा नतीजे देता है। बीते 16 आम चुनाव में नौ बार ऐसा हुआ कि एक ही पार्टी को पांचों सीटें मिलीं, इस बार ऐसा नहीं दिखता। हालांकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ऐसा नहीं मानते। वे पांचों सीटें जीतने का दावा करते हैं।
कहते हैं कि 55 साल पर 55 माह भारी हैं। देश को मजबूत नेतृत्व सिर्फ मोदी दे सकते हैं। उधर, जुयाल कहते हैं कि त्रिवेंद्र सरकार से लोग संतुष्ट नहीं है। पर मोदी ही यहां सबसे बड़ा मुद्दा हैं।
एक अन्य पूर्व सीएम और वर्तमान भाजपा सांसद रमेश पोखरियाल निशंक हरिद्वार से फिर से मैदान में हैं। यहां अंतिम समय तक कांग्रेस से हरीश रावत के उतरने की चर्चा चलती रही लेकिन टिकट उनके नजदीकी अंबरीश कुमार को मिला। हरिद्वार में गन्ना किसानों का बड़ा मुद्दा है। चीनी मिलों  के बकाये से किसान नाराज हैं।
मुजफ्फरनगर-हरिद्वार और हरिद्वार-देहरादून हाइवे के अधूरे काम को  कांग्रेस मुद्दा बना रही है। अंबरीश कहते हैं कि यह कार्य कांग्रेस ने शुरू किए थे। पिछले पांच सालों से केंद्र और 2017 से सरकार ने कुछ नहीं किया। हरिद्वार में पहली बार मैदानी बनाम पहाड़ी का मुद्दा गरमा रहा है।
अंबरीश कहते हैं कि हमने अपराध किया है क्या? मुख्यमंत्री पहाड़ से, सांसद पहाड़ से ऐसा कब तक चलेगा? उधर निशंक कहते हैं कि मैंने संसद में सर्वाधिक प्रश्न पूछे। इतने तो बीते 15 सांसदों ने नहीं पूछे होंगे। क्षेत्र में 5 हजार करोड़ के विकास कार्य हो रहे हैं।
राज्य में राष्ट्रीय मुद्दों की चर्चा हर ओर है लेकिन स्थानीय मुद्दे जैसे पहाड़ों पर खनन, पेड़ों के कटने और गंगा प्रदूषण का जिक्र ना के बराबर है। हरिद्वार के कनखल स्थित मातृ सदन में गंगा के लिए कार्य करने वाले ब्रह्मचारी दयानंद कहते हैं कि यह दु:ख का विषय है कि दल इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दे रहे।
मातृ सदन में ही स्वामी सानंद (जीडी अग्रवाल) ने 111 दिन आमरण अनशन के बाद प्राण त्यागे थे। अब यहां लगातार 155 दिन से स्वामी आत्मबोधानंद जी गंगा नदी की स्वच्छता के लिए आमरण अनशन पर हैं। पौड़ी गढ़वाल में पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) बीसी खंडूरी के बेटे मनीष कांग्रेस से मैदान में हैं। मुकाबला भाजपा उम्मीदवार और खंडूरी के ही शिष्य तीरथ सिंह रावत से है।
इस सीट पर बीसी खंडूरी का असर है, चुनाव प्रचार के दौरान उनका रुख काफी कुछ तय करेगा। सीट पर करीब 80 हजार से अधिक पूर्व सैनिक, वीर नारियां और कार्यरत सैनिक हैं। अगर खंडूरी ने बेटे का साथ दिया तो उसकी राह आसान हो जाएगी। नहीं तो संभावना धूमिल हो जाएगी।
इसकी एक वजह यह भी है कि यहां भाजपा और संघ का संगठन काफी मजबूत है। यह राज्य का सबसे बड़ा और पूर्ण रूप से पहाड़ी क्षेत्र है। टिहरी गढ़वाल सीट पर राजपरिवार की माला राज्यलक्ष्मी लगातार तीसरी बार मैदान में हैं। उनको कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह चुनौती दे रहे हैं। लगातार 4 बार से विधायक प्रीतम का यह पहला लोकसभा चुनाव है। विषम भूगोल वाली इस सीट पर प्रत्याशियों द्वारा कम समय में पूरे क्षेत्र में घूमना भी एक चुनौती है।
राजपरिवार के प्रति लोगों का लगाव राज्यलक्ष्मी के पक्ष में जाता है तो प्रीतम को पिता गुलाब सिंह की राजनीतिक विरासत का भी भरोसा है। जनजातीय इलाके चकराता, कालसी (विकास नगर) पर प्रीतम की पकड़ है। राज्य लक्ष्मी की पकड़ टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून में है।
अल्मोड़ा में केंद्रीय मंत्री अजय टम्टा का मुकाबला 2009 में सांसद रहे और अभी कांग्रेस से राज्य सभा सदस्य प्रदीप टम्टा से है। केंद्र में मंत्री रहते अजय ने क्षेत्र में विकास करवाया हैं, साथ ही एयर स्ट्राइक के कारण करीब 80 हजार से अधिक सैनिक वोटों का भरोसा भी उन्हें हैं। अजय फिलहाल बेहतर स्थिति में दिखाई दे रहे हैं।
रिजल्ट का ट्रेंड- दो चुनाव से एकतरफा नतीजे, 16 चुनाव में ऐसा 9 बार हुआ है
  • 2014 : भाजपा ने यहां सारी सीटें जीतीं।
  • 2009 : कांग्रेस ने सारी सीटें जीतीं। इस बार ऐसा होना मुश्किल माना जा रहा है।
यहां सपा और बसपा का गठबंधन भी चुनाव में है। दो मैदानी सीटें हरिद्वार और नैनीताल-ऊधमसिंह नगर पर सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार मुस्लिम-दलित वोटों के सहारे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में हैं।  पौड़ी सीट पर सपा और बाकी सभी सीटों पर बसपा चुनाव लड़ रही है। बसपा हरिद्वार और नैनीताल सीट पर ही थोड़ा असर रखती है।
यहां 12% वोट सैनिक परिवारों के हैं, इसलिए एयर स्ट्राइक और पाकिस्तान विरोध भी मुद्दा। राज्य की पौड़ी, टिहरी और अल्मोड़ा सीटों पर इनकी निर्णायक भूमिका। केंद्र सरकार में बड़ी भूमिका में उत्तराखंड के अधिकारी, पलायन, विकास और भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा है। स्थानीय मुद्दे जैसे पहाड़ों पर बांध निर्माण, अवैध खनन, जंगल की कटाई और गंगा जैसे मुद्दों का सिर्फ जिक्र।
उत्तराखंड में 75% से अधिक सवर्ण वोट हैं। यहां की हरिद्वार संसदीय सीट पर करीब 30% मुस्लिम वोट हैं। यहां मुख्यत: ब्राह्मण और राजपूत के बीच चुनाव होता है। वहीं अल्मोड़ा सीट सुरक्षित है।

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