छत्तीसगढ़: ग्रामीणों ने वोट तो डाला, पर दहशत में हैं कि नक्सलियों को भनक न लग जाए; नही लगवाई उंगलियों पर स्याही

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दंतेवाड़ा। पिछले चुनावाें की तरह इस बार भी धुर नक्सल गढ़ में मतदान करवाना और करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं रहा। यहां कर्मचारी से लेकर वोटर्स तक अपनी जान हथेली पर लेकर चलते हैं। हालिया हुई नक्सली घटनाओं का असर इस बार वोटिंग में कुछ ज्यादा ही देखने को मिला।
प्रशासन ने पूरे बस्तर में 289 पोलिंग बूथों को सुरक्षा के लिहाज से शिफ्ट करा दिया था। शिफ्ट किए गए बूथों तक पहुंचना ग्रामीणों के लिए काफी जोखिम भरा काम होता है। इंद्रावती नदी पार गांवों के 7 बूथ नदी के दूसरी ओर बसे गांवों में शिफ्ट किए गए थे। दहशत के बीच इन बूथों में ग्रामीण पहुंचे तो जरूर, लेकिन इस बार स्थिति थोड़ी अलग देखने को मिली। वोट देने के बाद ग्रामीणों ने ऊंगलियों पर अमिट स्याही नहीं लगवाई। उन्हें डर था कि नक्सली स्याही देखकर पहचान न लें।
नदी पार गांव के 3 पोलिंग बूथों को शिफ्ट किया गया था। यहां 6 गांवों के वोट पड़ने थे। बारसूर से मुचनार के बीच रास्तेभर सन्नाटा। यहां करीब 70 साल की एक बुजुर्ग महिला महुआ बिनती हुई दिखाई दी। उनसे पूछा गया कि आप वोट देने गईं थी या नहीं, महिला ने कुछ देर से सहमते हुए जवाब दिया- गई थी… लेकिन किसी से मत कहना। उसने अपने अंगूठे को दिखाया और बताया कि अंगूठा लगाकर आ रही हूं। लेकिन अमिट स्याही नहीं लगवाई, क्योंकि जान का खतरा है। नक्सलियों ने वोट देने से मना किया है।
पूरे मार्ग पर सन्नाटा पसरा था। घाट पहुंचने पर नदी पार गांवों के इलाकों से भी कुछेक ग्रामीण आते हुए दिखाई दिए। इसी घाट में 4 पुरुष पहुंचे। वोटिंग के सवाल पर पहले तो कुछ भी कहने से बचते रहे, लेकिन बाद में कहा- वोट देकर आ रहे हैं। वोट देने के बाद निवेदन किया कि साब, अंगुली पर अमिट स्याही मत लगाइए। क्योंकि गांव जाने पर नक्सली मार देंगे।
इन ग्रामीणों ने वोट ज़रूर दिया, लेकिन नक्सली खौफ इनके चेहरे पर स्पष्ट तौर पर दिख रहा था। उन्होंने अपने अंगूठा दिखाते हुए बताया कि स्याही सिर्फ यहीं लगी है, जो जल्द ही मिट जाएगी। मतदान ड्यूटी पर लगे कर्मचारियों ने बताया कि अमिट स्याही लगाने ग्रामीणों ने मना किया, क्योंकि उनकी जान का खतरा है। यही वजह है कि अमिट स्याही नहीं लगाई गई।
लोकसभा चुनाव के दो दिनों पहले दंतेवाड़ा में हुई नक्सली घटना का खौफ अंदरूनी गांवों में देखने को मिला। दहशत के बीच ग्रामीण तो वोट देने पहुंच गए, लेकिन अंदरूनी गांवों के पोलिंग बूथों के बाहर व आसपास किसी पार्टी का कार्यकर्ता नहीं दिखा। इसके पहले के चुनावों में कार्यकर्ता रहते थे। भास्कर टीम बारसूर पहुंची तो भाजपा के एक कार्यकर्ता ने बताया कि नक्सली कब कौन सी घटना कर दें, कुछ नहीं कहा जा सकता। इससे बेहतर है किसी भी पोलिंग बूथ में न जाएं।
विधायक भीमा मंडावी अाैर जवानाें की हत्या के बाद कुआकोंडा क्षेत्र में मतदान को लेकर दहशत का माहाैल रहा। लेकिन जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, लोग मतदान करने पहुंचने लगे। मतदान में खलल डालने के लिए नक्सलियों ने कुआकोंडा ब्लाॅक मुख्यालय से 4 किमी दूर हल्बारास पोलिंग बूथ पर चुनाव बहिष्कार के पर्चे फेंक रखे थे। हालांकि इन पर्चाें से कुछ ही दूर मतदाताअाें की कतार भी लगी थी।
पर्चाें पर फाेर्स के जवानाें की नजर पड़ी ताे उन्हें जब्त किया। इसी बूथ से करीब एक किमी दूर नक्सलियों ने सुतली बम फोड़कर दहशत फैलाने की कोशिश भी की। हल्बारास में कुल 619 वाेटर हैं, जिनमें से 403 ने वाेट डाले। इससे लगे गांव मोखपाल के गोलापारा से नक्सलियों ने ग्रामीणों को मतदान के लिए जाने नहीं दिया। यहां के वाेटराें के लिए जरिपारा में पोलिंग बूथ बनाया गया था।
लोकसभा चुनाव में वोटरों का मिला-जुला उत्साह दिखा। सुकमा के कोंटा इलाके में शहरी से गांव तक के वोटरों में उत्साह दिखा। हालांकि विधानसभा चुनाव जैसी रुचि नहीं दिखी। इसका कारण हाल के दिनों में कई जगह माओवादियों की बैठक, वाेट करने पर हाथ काटने जैसे धमकी का दिया जाना था। दंतेवाड़ा के पालनार से किरंदुल जाने वाली सड़क पर नक्सलियों ने बैनर बांधा था।
मलांगीर एरिया कमेटी की ओर से फेंके गए पर्चों में 17वीं लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने आह्वान किया गया था है। पालनार कन्या पोटाकेबिन के पास बुधवार रात नक्सलियों ने ये बैनर व सड़क के किनारे पांच किलोमीटर के दायरे में सैकड़ों की संख्या में पेड़ों पर पर्चे लगाकर अपनी उपस्थिति दिखाई।
सुकमा के 235 बूथों में 55 को अस्थाई तौर पर आसपास के गांवों में शिफ्ट कर दिया गया था। नक्सलियों ने कोंडरे-गोंदपल्ली रोड पर चुनाव बहिष्कार के नारे लिखे थे। गुरुवार सुबह गोंदपल्ली की महिलाएं नक्सली धमकी से बेखौफ सड़क पर लिखे नक्सली नारों के ऊपर से चलकर मतदान करने कोंडरे पहुंची और वोट डालकर लोकतंत्र के प्रति अपना विश्वास जताया। विधानसभा चुनाव की 55.30 प्रतिशत वोटिंग की तुलना में लोकसभा में मतदान का प्रतिशत करीब 30 फीसदी रहा। कलेक्‍टर चंदन कुमार ने माना कि आदिवासियों का पलायन और नक्सली धमकी भी वोटिंग प्रतिशत कम रहने का कारण है।

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