राजनीतिक पार्टियां 30 मई तक जानकारी दें, इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए किससे कितनी रकम चंदे में मिली: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे 30 मई तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिली रकम की जानकारी दें। अदालत ने आदेश दिया कि यह जानकारी सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को दी जाएगी।
शीर्ष अदालत ने सरकार की इलोक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), कॉमन कॉज और सीपीएम की याचिकाओं पर 15 अप्रैल को गहराई से सुनवाई की जाएगी।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने कहा- राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिली रकम, उसे देने वाले, बैंक अकाउंट संबंधी जानकारियां, तारीख आदि का ब्योरा देना होगा। वित्त मंत्रालय ने राजनीतिक दलों को इन बॉन्ड के जरिए दी जाने वाली रकम की तारीख 15 मई तय की थी। इस तारीख तक कितना धन इन बॉन्ड के जरिए पार्टियों को दिया गया, इसका ब्योरा देना होगा। यह सीलबंद जानकारी चुनाव आयोग की निगरानी में ही रहेगी।
“बॉन्ड जारी करने की अवधि घटाई जाए’
चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने वित्त मंत्रालय को निर्देश दिए कि इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने के दिनों में सुधार किया जाए। मौजूदा 55 दिनों की जगह 2019 में इलेक्टोरल बॉन्ड दिए जाने की अवधि घटाकर 50 दिन की जाए।
  • कोई भी रजिस्टर्ड राजनीतिक दल जिसने पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में 1% वोट हासिल किए हों, वह इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए डोनेशन ले सकता है।
  • इलेक्टोरल बॉन्ड 10 दिन के लिए जारी किए जाते हैं। लोकसभा चुनाव के साल में 30 दिन का अतिरिक्त समय दिया जाता है।
  • इन बॉन्ड की वैलिडिटी जारी करने के बाद 15 दिन तक होती है। इस दौरान इन्हें कैश करवाना पड़ता है।
  • ये बॉन्ड 1 हजार, 10 हजार, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ रुपए की वैल्यू के होते हैं। इन पर डोनर या जिस पार्टी को डोनेट किया जा रहा है उसकी जानकारी नहीं होती।
पारदर्शिता और कालेधन को चुनावी प्रक्रिया से बाहर करने के लिए सरकार ने चंदे के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की। राजनीतिक दलों को संस्था, कंपनी या व्यक्तियों के माध्यम से दिया जाता है। एनजीओ द्वारा दाखिल याचिकाओं में इस योजना की वैधता पर सवाल उठाया है। अदालत से अपील की गई है कि या तो इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाने पर रोक लगाई जाए या फिर दान देने वाले का नाम सार्वजनिक किया जाए। केंद्र सरकार चाहती है कि दानदाता का नाम सार्वजनिक ना किया जाए, उधर चुनाव आयोग का कहना है कि पारदर्शिता के लिए इन नामों को सार्वजनिक किया जाए।

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