नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में एक असाधारण घटना के तहत चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने खुद पर आरोप लगने के बाद एक विशेष बेंच गठित की। सीजेआई गोगोई पर 35 वर्षीय महिला ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं।
यह महिला 2018 में जस्टिस गोगोई के आवास पर बतौर जूनियर कोर्ट असिस्टेंट पदस्थ थी। महिला का दावा है कि बाद में उसे नौकरी से हटा दिया गया। इस महिला ने अपने एफिडेविट की कॉपी 22 जजों को भेजी।
इसी आधार पर चार वेब पोर्टल्स ने चीफ जस्टिस के बारे में खबर प्रकाशित की। इसके बाद चीफ जस्टिस ने शनिवार होने के बावजूद विशेष सुनवाई की और कहा, ‘‘मैंने आज कोर्ट में बैठने का यह असामान्य और असाधारण कदम उठाया है क्योंकि चीजें हद से ज्यादा बढ़ गई हैं।’’
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के पदाधिकारियों के समक्ष यह उल्लेख किया कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल संजीव सुधाकर कलगांवकर ने कहा कि महिला के आरोप दुर्भावना से भरे और निराधार हैं। इसके बाद सुबह 10:30 बजे चीफ जस्टिस गोगोई की अगुआई में जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने सुनवाई शुरू की।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा, ‘‘अगले हफ्ते मुझे अहम मामलों पर सुनवाई करनी है। यह प्रयास किया जा रहा है कि उनकी सुनवाई मैं ना कर सकूं। न्यायपालिका की आजादी पर बहुत, बहुत गंभीर खतरा है। इस पर यकीन नहीं होता। मुझे नहीं लगता कि इन आरोपों के निचले स्तर तक जाकर मुझे इस पर कुछ कहना चाहिए।’’ चीफ जस्टिस का इशारा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से जुड़ी अवमानना याचिका और मोदी की जीवनी पर आधारित फिल्म से जुड़े मामले की सुनवाई की तरफ था।
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सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस गोगोई भावुक हो गए। उन्होंने कहा, ‘‘इज्जत से बड़ी कोई चीज नहीं है। मैंने जीवन में केवल इज्जत कमाई है। मुझे पर लगे आरोप निराधार हैं। मैंने बतौर जज 20 साल निस्वार्थ सेवा की है। मेरे पास महज 6.80 लाख रुपए का बैंक बैलेंस है। पीएफ में 40 लाख रुपए हैं।’’
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‘‘मेरे चपरासी के पास मुझसे ज्यादा संपत्ति है। कोई मुझे पैसों के मामलों में नहीं फंसा सकता। लोगों को मुझे फंसाने के लिए कुछ और खोजना पड़ता।’’
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‘‘इसके पीछे कोई बड़ी ताकत हो सकती है। वे सीजेआई के पद को निष्क्रिय कर देना चाहते हैं। 20 साल की सेवा के बाद एक सीजेआई को यह फल मिला है।’’
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‘‘…लेकिन मैं इस कुर्सी पर बैठूंगा और अपनी न्यायिक कामकाज का निडर होकर निर्वहन करूंगा। न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता।’’