प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अक्सर विपक्ष और आलोचक धड़े ने आरोप लगाया कि पीएम पांच सालों के कार्यकाल में सिर्फ विदेशी दौरे करने में व्यस्त रहे। वहीं, बीजेपी और उसके समर्थक पक्ष का इस बाबत कहना है कि पीएम मोदी के अंतर्राष्ट्रीय दौरों से न केवल एशिया में बल्कि दुनिया में भारत का कद उठा है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर असल में पीएम के विदेशी दौरों से देश को क्या हासिल हुआ?
‘ब्लूमबर्ग’ की एक रिपोर्ट में विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर बताया गया कि मई 2014 में सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी ने लगभग 92 विदेशी दौरे किए, जो कि कुल 57 देशों में थे। नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की तुलना में लगभग तीन गुणा विदेशी दौरे किए।
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पीएम मोदी ने इन दौरों के जरिए वैश्विक स्तर पर भारत की छवि निवेश के बड़े हब और उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में पेश करने की कोशिश की। उन्होंने बीते साल चीन के वुहान में एक बैठक का इस्तेमाल नई दिल्ली-बीजिंग के बीच डोकलाम विवाद पर तनाव को कम करने को लेकर भी किया।
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हालांकि, कुछ दौरों से वास्तविक नतीजे नहीं नजर आए। मसलन 2015 में अचानक पाकिस्तान पहुंच जाना। दावा रहता है कि विदेश मामलों में उनकी कूटनीति बढ़िया रही, जबकि कुछ विश्लेषकों का मानना है कि वह वैश्विक स्तर पर भारत की रैंकिंग में कोई खासा सुधार या बदलाव नहीं ला सके।
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नरेंद्र मोदी इजराइल जाने वाले पहले भारतीय पीएम बने। साथ ही उन्होंने टेल अवीव. से आधुनिक रक्षा और पानी से जुड़ी तकनीक के मामले में भी सहयोग की उम्मीद की। जापान के साथ मिलकर भारत पीएम के गृह राज्य गुजरात में बुलेट ट्रेन लाने की दिशा में काम कर रहा है।
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हालांकि, धीमी गति से इस बाबत हुए भूमि अधिग्रहण की वजह से उन्हें आलोचना का शिकार भी होना पड़ा। वहीं, 2016 में उन्होंने फ्रांस से 36 राफेल विमानों की डील पर हस्ताक्षर किए। हालांकि, इस डील में सरकार पर नियमों के उल्लंघन का आरोप लगा, जिसे उसने खारिज किया।
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मोदी सराकर में भारत ने अमेरिका से पहली बार कच्चा तेल और लिक्विफाइड नैचुरल गैस खरीदी। दुनिया में तेल के सबसे बड़े निर्यातक सऊदी अमैरको (सऊदी की तेल कंपनी) को भारत की सबसे बड़ी तेल की रिफाइनरी में निवेश के लिए राजी कर लिया।
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मोटे तौर पर पीएम मोदी ने खाड़ी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश की और ईरान को भी साधा। हालांकि, विपक्ष ने पीएम की उस कूटनीति की आलोचना की, जिसमें तेहरान पर बढ़ते अमेरिकी दबाव के बीच वह ईरान से सस्ती दरों पर कच्चा तेल नहीं ले पाए।
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‘मोदी काल’ में पिछले पांच सालों के मुकाबले लगभग 50 फीसदी अधिक का फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (एफडीआई) आया। दरअसल, एफडीआई के तहत मैन्युफैक्चरिंग के जरिए नौकरियां पैदा होने की बात कही गई थी, पर उसी समय में एफडीआई ने सर्विस और कैपिटल-इंटेसिव इंडस्ट्रीज की ओर ध्यान दिया।
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पीएम ने इन दौरों में कई बार जापान के शिंजो आबे और रूस के व्लादीमिर पुतिन से भेंट की। ये उन देशों के राष्ट्राध्यक्ष हैं, जिनसे भारत को औद्योगिक निवेश और रक्षा तकनीक में सबसे अधिक सहयोग मिला।