अब पैसे की कमी से जूझ रही है एयर इंडिया, दिल्ली के पॉश इलाके से 700 कर्मचारियों को घर छोड़ने को कहा

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लोकसभा चुनाव के दौरान एयर इंडिया को बेचे जाने की अटकलों के बीच सरकार चाहती है कि एयर इंडिया के करीब 700 कर्मचारी दक्षिणी दिल्ली के वसंत विहार के फ्लैट को खाली कर दें। कर्मचारियों के रहने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था पर विचार किया जा रहा है। वसंत विहार की हाउसिंग कॉलोनी में कुल 810 फ्लैट हैं। इनमें अभी 676 फ्लैट्स में कर्मचारी रह रहे हैं।
पैसे की कमी से जूझ रही एयरलाइन अपने बोझ को कम करने के लिए चाहती है कि कर्मचारी उसके रिहायशी परिसर को खाली कर दें। इसके बाद इस परिसर को बेचकर देनदारियों को कम किया जा सके। कर्मचारियों के प्रति नरमी दिखाते हुए कंपनी ने उनके लिए किराये पर उपयुक्त घर दिलाने का प्रस्ताव रखा है।
इसके लिए कर्मचारियों को पात्रता के आधार पर 5000 से लेकर 25000 रुपये तक रेंट लीज के अमाउंट में सब्सिडी दी जाएगी। इसके अतिरिक्त ब्रोकरेज शुल्क व घर के सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने का किराया भी दिया जाएगा।
हालांकि, एयर इंडिया का मानना है कि कर्मचारियों के लिए घर खोजना मुश्किल होगा। कंपनी के कई कर्मचारी ऐसे हैं जिनका दिल्ली में रहने का कोई अपना ठिकाना नहीं है या फिर कुछ अन्य स्थानों से ट्रांसफर होकर आए हैं।
इसके साथ ही कई कर्मचारी ऐसे हैं जिनके बच्चे पास के स्कूलों में पढ़ते हैं। ऐसे में उनके लिए घर बदलना काफी मुश्किल काम होगा। एक आधिकारिक सूत्र ने कहा, ‘मार्केट सर्वे और बेहतर घर खोजने के लिए एक कमेटी गठित करने का प्रस्ताव है। यह निर्णय लिया गया है कि कंपनी कर्मचारियों की तरफ से मकान मालिक के साथ लीज संबंधी समझौता करेगी। इसके लिए एचआरए और लाइसेंस फीस का भुगतान नहीं किया जाएगा।’
एयर इंडिया की परिसंपत्तियों को बेचना एयरलाइन के भारी कर्ज के कम करने की सरकार की योजना का हिस्सा है। इसके अनुसार विभिन्न शहरों में प्लॉट, फ्लैट्स और बिल्डिंग्स की बिक्री के लिए निविदा आमंत्रित की जाएंगी। सरकार को उम्मीद है कि एयर इंडिया की परिसंपत्तियों को बेचकर 9000 करोड़ रुपये जुटाए जा सकेंगे। कर्ज कम होने के बाद विनिवेश प्रक्रिया के मद्देनजर कंपनी का बेहतर तरीके से मूल्यांकन किया जा सकेगा। एयर इंडिया पर वर्तमान में कुल 55 हजार करोड़ रुपये का दीर्घ अवधि का कर्ज है।
सरकार ने पिछले साल एयर इंडिया का 75 फीसदी हिस्सा बेचने का प्रयास किया था। इसके साथ ही सरकार इसके संचालन का जिम्मा भी निजी हाथों में सौंपने को तैयार थी। हालांकि, निर्धारित तारीख तक किसी भी निजी क्षेत्र के हिस्सेदार ने सरकार के इस प्रस्ताव में रुचि नहीं दिखाई। इसके बाद लोकसभा चुनाव, तेल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए मंत्रालयी समिति ने इस प्रस्ताव को आगे के लिए टाल दिया।

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