जब मॉ बहन की गाली, मॉ बहनें ही देने लगे तो …..

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मिट्टी का कण-कण भारत की सभ्यता और संस्कृति की महक सारे जहॉ में बिखेरता हैं। जी हॉ, यह वह भारत है जहॉ सदाचार एवं सद्भाव का परचम हमेशा लहराता रहता हैं। ये वही भारत है जहॉ जरूरत पड़ने पर नारी क्रान्तिकारी रूप धारण कर रानी लक्ष्मीबाई बन जाती हैं।
ये वही भारत है जहॉ नारी प्रेम की पराकाष्ठा को तोड़ मीराबाई बन जाती हैं ये वही भारत है जिसने प्रतिभा पटिल, कल्पना चावला, सानिया मिर्जा, पी.वी. सिंधु जैसे कई उदाहरण देकर मौजूदा परिवेश की नारी को अबला नहीं सबला बताने का प्रयास किया है।
इतिहास से लेकर आजतक नारी को केन्द्रबिन्दु में रख यदि पड़ताल की जाए तो हकीकत समाज द्वारा रची गई नारी को कमजोर दिखाने की मानसिकता के एकदम विपरीत दिखाई देगी और परिणाम निकल कर आएगा समाज की दशा एवं दिशा बदलने में महिलाओं ने अहम अविश्वसनीय योगदान दिया है लेकिन वर्तमान वातावरण को देख दुःख इस बात पर छलक आता है कि यदि जब मॉ बहिन की गाली मॉ बहिन ही देने लगे तो….
बिल्कुल, सुनकर जरूर अटपटा लगता है कि जब मॉ बहिन की गाली मॉ बहिन ही देने लगे तो समाज की तकदीर और तस्वीर क्या होगी ? बात हास्यपद जरूर हो सकती मगर गम्भीर है, हो सकता है कि यह लेख मेरे लिए आत्मघाती भी हो लेकिन खैर…
जिस देश की तहजीब ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ के सूत्र का अनुसरण करता हो, जहॉ नारियों को देवी का स्वरूप माना गया हो उस देश की नारी अपने पूर्वजों के संस्कारों को कालकोठरी में फेंककर पश्चिमी संस्कृति का पानकर सिर्फ और फैशन और दिखावे के लिए,
खुद को र्स्माट बताने के लिए मॉ बहिन की गाली देने लगे तो आप कल्पना कर सकते है कि हमारा 21 वीं सदी का समाज विकास के किस पथ पर अग्रसर है क्योंकि एक अच्छे समाज का निर्माण पत्थर और चट्टानों से नहीं बल्कि उस देश के नागरिकों से होता है और जितना योगदान समाज निर्माण में पुरूष का होता है उतना ही योगदान एक महिला का भी होता है।
अगली पीढ़ी का प्रथम गुरू मॉ ही होती है। नारी शक्ति ने समय समय पर अपने कई रूप् दिखाकर समाज को दानव और कुप्रथाओं से छुटकारा दिलाया है। विचारणीय है कि मॉ बहिन की गाली को देने वालों का विरोध करने के वजह मॉ बहिनों द्वारा उसे फैशन में प्रचलित करना हमारी मानसिकता को किस स्तर पर ले जा रहा है। यकीन नहीं तो ऐसे नजारे कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में बड़ी आसानी से देखने को मिल जायेंगे।

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वक्त है अब भी सम्भल जाने को, क्योंकि अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता है मॉ बहिन के द्वारा मॉ बहिन को ही गाली देने का प्रचलन अभी नवांकुर है जिस पर आसानी से शिकंजा कसा जा सकता है नहीं तो एक दिन ऐसा आएगा कि सदाचार का पर्याय गालियां बन जाएगी।
PARASMANI AGRAWAL (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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