इप्टा कोंच इकाई द्वारा अखिल भारतीय इप्टा के 76वें स्थापना दिवस को जन संस्कृति दिवस के रुप में मनाया गया

0
लखनऊ। भारतीय संस्कृति को बचाये व बनाये रखने का काम इप्टा जैसे सांस्कृतिक आन्दोलन ही कर रहे हैं। इप्टा की कार्यशालाओं एवं कार्यक्रमों के माध्यम से नई पीढी सांस्कृतिक मूल्यों के साथ- साथ सामाजिक एवं मानवीय मूल्य भी सीखाती है।’’

इप्टा कोंच इकाई

उपरोक्त विचार भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) कोंच इकाई द्वारा अखिल भारतीय इप्टा के 76वें स्थापना दिवस को जन संस्कृति दिवस के रुप में मनाते हुए इप्टा कोंच द्वारा श्री अमरचन्द्र महेश्वरी इण्टर काॅलेज,
कोंच में आयोजित 19वीं ग्रीष्मकालीन बाल एवं युवा रंगकर्मी नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि विद्यालय के पूर्व प्रबन्धक सरनाम सिंह यादव ऐडवोकेट ने व्यक्त किये।
उन्होनें रंगकर्मियों की प्रशंसा करते हुए उनका आव्हान किया कि वे सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखने एवं अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति के प्रदर्शन के लिए इप्टा के साथ कलात्मक नजरिये के साथ आगे आये।

जनसंस्कृति दिवस की अध्यक्षता करते हुए इप्टा कोंच के संरक्षक अनिल कुमार वैद ऐडवोकेट ने कहा कि इप्टा आधुनिक भारत का पहला सांस्कृतिक आन्दोलन है। यह आन्दोलन आज भी चल रहा है और
कई रूपों में, कई संगठनों की शक्ल में देश के विभिन्न हिस्सों में इसे देखा जा सकता है। इप्टा ने घोषणा की ‘‘कला की असली नायक जनता है।’’ इप्टा यानि भारतीय जन नाट्य संघ, नाम सुझाया, महान वैज्ञानिक डाॅ0 होमी जहाँगीर भाभा ने।
उन्होेंनें कहा कि बंगाल का भीषण अकाल हो या फिर आजादी की लड़ाई या किसानों-मजदूरों का संघर्ष, इप्टा ने हमेशा आगे बढ़कर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह किया। इप्टा सिर्फ कलाकारों का मंच नहीं बना, बल्कि
इसमें वे सभी लोग शामिल हुए, जो जनसंस्कृति के पक्षधर थे और जन आंदोलन से जुड़े थे। इस आंदोलन में केवल लेखक, कवि, चित्रकार, रंगकर्मी ही नहीं, राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक, क्रान्तिकारी,
सामाजिक कार्यकर्ता, मजदूर- किसान नेता, छात्र आंदोलन से जुड़े प्रतिनिधि, सभी इसके हिस्सा बने। इप्टा के कलाकारों ने अंग्रेजों का दमन सहा, आजाद भारत में अपनी सरकार की लाठियां खाई, जेल गये,
प्रतिबंध का सामना किया, कई साथियों को जान से भी हाथ धोना पडा, लेकिन जन संस्कृति की लौ जलाये रखी।
इप्टा स्थापना दिवस को सम्बोधित करते हुए इप्टा कोंच के संस्थापक अध्यक्ष व प्रान्तीय सचिव डाॅ. मुहम्मद नईम ने कहा कि इप्टा ने अपने जन्म से ही साफ कर दिया था कि कला सिर्फ कला के लिए नहीं बल्कि
जीवन के लिए हो। आधुनिक भारतीय रंगमंच का इतिहास इप्टा का इतिहास है। इप्टा के नाटकों ने रंगमंच में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया।
इप्टा के मंच से ही पंडित रविशंकर, सलिल चैधरी, प्रेम धवन, अमर शेख, भूपेन हजारिका, हेमाँगू विश्वास, सीताराम सिंह आदि ने अलग-अलग भाषाओं में कई गीतों को जो सुर दिया वो आज भी मील के पत्थर हैं।
इन मशहूर गीतों में शामिल है – सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा, जंग है आजादी, भूखा है बंगाल, हम धरती के लाल, ओ गंगा बहती हो क्यूं, दमादम मस्त कलंदर आदि।
प्रान्तीय सचिव डाॅ. मुहम्मद नईम बौबी ने अखिल भारतीय इप्टा की स्थापना के 76 वर्षों के गौरवशाली इतिहास पर विस्तार से प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ पत्रकार पी. डी. रिछारिया ने इप्टा कोंच की स्थापना के समय से इप्टा से जुडाव के अपने अनुभवों को रखते हुए रंगकर्मियों की प्रयासों की प्रशंसा की तथा उनका आव्हान किया कि
वे अपनी प्रस्तुतियों को आम जनता तक ले जायें। अमरचन्द्र महेश्वरी इण्टर काॅलेज कोंच के प्रधानाचार्य ओमप्रकाश वर्मा व सेवानिवृत्त शिक्षक सुखलाल नायक ने रंगकर्मियों को भावी भारत का कर्णधार बताते हुए
उनसे समाज को बेहतर दिशा देने सम्बन्धी अपने अनुभवों को सांझा किया। वहीं नगर पालिका परिषद कोंच के सभासद जाहिद खान ने कहा कि जब भी देश में साम्प्रदायिक ताकतों ने सिर उठाया है,
इप्टा ने अपने गीतों, नज्मों और नाटकों के माध्यम से समाज में प्यार, मुहब्बत और अमन की खुश्बू का पैगाम दिया है। उन्होनें राजनीतिज्ञों द्वारा स्थापित की गई समाज को तोडने वाली परम्पराओं का पुरजोर विरोध करने का रंगकर्मियों का आव्हान किया,
वहीं लोक कला विशेषज्ञ रमेश तिवारी ने कहा कि जब तक भारतीय समाज में लोकाचार, लोक परम्परायें, लोक संस्कृति जिन्दा रहेगी, तब तक समाज में हिन्दुस्तानियत जिन्दा रहेगी।
आज के समाज में प्रत्येक देशवासी को सांझाी विरासत को अक्षुण्ण बनाये रखेन के प्रयास करने होगें। एम. पी. काॅलेज कोंच छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष व नपापरिषद कोंच के सभासद अनिल पटैरया ने कहा कि
जातिवाद, क्षेत्रवाद और धर्मवाद का मुकाबला केवल जन संस्कृतिवाद से ही संभव है। हमें चाहिए कि समाज में लोक की चेतना को विकसित करें, ताकि
हम आपस में बंट न सकें। उन्होने संकीर्ण विचारधाराओं के स्थान पर समावेशी विचारधार को प्रोत्साहित करने पर बल दिया।

कार्यक्रम का प्रारम्भ रंगकर्मियों द्वारा इप्टा गीत ‘‘बजा नगाडा शान्ति का, शान्ति का, शान्ति का’’ से हुआ। रंगकर्मियों साहना खान, रानी कुशवाहा, कोमल, तययबा, राज शर्मा, ट्रिंकल राठौर ने जनगीत प्रस्तुत किये।
रंगकर्मियों द्वारा हास्य नाटिका वेलकम टू कोंच एवं ढडकोला का भी मंचन किया। कार्यक्रम का संचालन रंगकर्मी ट्रिंकल राठौर तथा आभार विशाल याज्ञिक ने व्यक्त किया।
इस अवसर पर अमन अग्रवाल अंकुर राठौर,राज शर्मा , विजेता कुशवाहा, योगवेन्द्र कुशवाहा, अमन खान, दानिश, आदर्श, तसनीम, हर्ष नन्दिनी, कुलसुम,
अभिलाषा पटेल, पूजा पटेल, मो. कैफ, यूनुस मंसूरी, शाहिब बैग, आनन्दी कुशवाहा, पीयूष राठौर,आदि रंगकर्मी उपस्थित थे।
ज्ञात हो कि इप्टा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष व मशहूर शायर कैफी आजमी व पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेन्द्र रघुवंशी जन्मशती वर्ष में इप्टा कोंच द्वारा आयोजित
19वीं नाट्य प्रशिक्षण कार्यशाला इप्टा के संरक्षक टी. डी. वैद, सदस्य रामरुप स्वर्णकार पंकज, भवानीशंकर लोहिया बन्धु, मुस्तफा खां दीवाना को समर्पित की गई है।

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More