सांसद प्रतापचंद्र सारंगी, कुटिया से निकलकर पहुंचे रायसीना हिल्स

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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में बंपर वोटों से जीत हासिल कर एनडीए ने दोबारा सरकार बना ली है। राष्ट्रपति भवन में पीएम मोदी समेत 58 सांसदों ने मंत्री पद की शपथ ली।
बीजेपी के बड़े नामों को छोड़ दें तो किसी भी नेता के लिए तालियों की गड़गड़ाहट नहीं सुनाई दी। पीएम मोदी ने जब शपथ ली तब तालियों से उनका स्वागत किया गया।
इसके अलावा अमित शाह और स्मृति ईरानी का तालियों के साथ स्वागत हुआ। इनके अलावा एक शख्स और था जिसके नाम की घोषणा होते ही सारा परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
ओडिशा में मिसाइल टेस्टिंग के लिए प्रसिद्ध बालासोर लोकसभा क्षेत्र से इस बार भाजपा प्रत्याशी प्रतापचंद्र सारंगी सांसद चुने गए हैं। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी करोड़पति उम्मीदवार बीजद के रबिंद्र कुमार जेना को हराया।

दावा है कि चुनाव में उन्होंने कुछ भी खर्च नहीं किया। मंगलवार को वो संसद भवन पहुंचे थे तो उनसे मिलने को हर कोई उत्सुक था।
64 वर्षीय सारंगी आज भी साइकिल ही चलाते हैं. लोग उन्हें ओडिशा का मोदी कहते हैं. वे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं, उनकी पहचान सामाजिक सरोकार के कार्यों से है. वह अविवाहित हैं, एक छोटे से घर में रहते हैं और सन्यासियों की तरह जीवन व्यतीत करते हैं. बालासोर से सांसद चुने जाने के बाद सोशल मीडिया पर उनका नाम और उनसे जुड़े फोटो भी प्रमुखता से ट्रेंड करते रहे हैं।
नदी में तपस्या करते हुए, गुफा में ध्यान लगाए हुए, झोपड़ी में रहते हुए और साइकिल से चुनाव प्रचार करते हुए सारंगी की सारी फोटो वायरल हो रही हैं. इन तस्वीरों पर एकबारगी विश्वास नहीं हो रहा था लेकिन जब इनकी पड़ताल की गई तो शक की गुंजाइश नहीं रही।
सारंगी नीलगिरि विधानसभा सीट से दो बार 2004 और 2009 में एमएलए रह चुके हैं. चुनाव जीतने के बाद भी उनकी जिंदगी में बहुत बदलाव नहीं आए. वो सादगी से जीते रहे जिसे देखकर लोग उनसे प्रभावित हुए।
सांसद प्रताप चंद्र सारंगी का जन्म ओडिशा के गरीब परिवार में हुआ. सारंगी की वेश-भूषा देख आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि वो कोई सियासतदान हो सकते हैं. सारंगी साधुवेश (श्वेतवस्त्रधारी) में जीवन बिताते हैं और धार्मिक और कर्मकांडी प्रवृत्ति के हैं. वह साधु बनना चाहते थे।
सारंगी के करीबी लोग बताते हैं कि नीलगिरि फकीर मोहन कॉलेज में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वो साधु बनने के लिए रामकृष्ण मठ चले गए. मठ के लोगों को जब पता चला कि उनकी मां विधवा है तो उनको मां की सेवा करने के लिए लौटा दिया गया।
इसके बाद उन्होंने विवाह नहीं किया. पूरा जीवन मां व समाज की सेवा में लगा दिया. सारंगी बच्चों को पढ़ाते भी हैं. समाज सेवा की प्रेरणा को वह मां का आशीर्वाद मानते हैं. उनके परिवार में और कोई नहीं है. वह छोटे से घर में रहते हैं और साइकिल पर ही चलते हैं।

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