मस्तिष्क बुखार से 15 दिन में 80 बच्चों की मौत; स्वास्थ्य मंत्री ने कहा- प्रशासन और सरकार इसकी जिम्मेदार नही

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मुजफ्फरपुर। बिहार के मुजफ्फरपुर में मस्तिष्क बुखार (एईएस) से शनिवार को भी 4 बच्चों की जान चली गई। इस बीमारी से राज्य में 15 दिन में 80 बच्चों की मौत हो चुकी है।
राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने एक चैनल से कहा- ”बच्चों की मौत के लिए न प्रशासन जिम्मेदार है और न ही सरकार। बच्चों की नियति ठीक नहीं थी।
मौसम भी इसके लिए जिम्मेदार है। सरकार ने इलाज के लिए पूरे इंतजाम किए थे।” केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन रविवार को मुजफ्फरपुर का दौरा करेंगे।
मुजफ्फरपुर में 67, समस्तीपुर में 5, वैशाली में 5, मोतिहारी मे 1 बच्चे की जान गई है। दो बच्चे किस जिले के हैं इसकी जानकारी प्रशासन से नहीं मिली है।
मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल में पिछले 15 दिनों में एईएस से ग्रसित 67 बच्चों की मौत हो चुकी है। एसकेएमसीएच में भर्ती 6 बच्चों की हालत गंभीर है। यहां अभी 80 बच्चों का इलाज चल रहा है।
केजरीवाल अस्पताल में भी 6 बच्चों की स्थिति नाजुक है। यहां 25 बच्चों का इलाज चल रहा है। दोनों अस्पतालों में अब तक 288 बच्चे भर्ती हुए हैं।
एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ. गोपाल शंकर साहनी ने बताया कि शोध में यह बात सामने आई कि जब गर्मी 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक और नमी 70 से 80 प्रतिशत के बीच होती है तो इस बीमारी का कहर बढ़ जाता है। बीमारी में बच्चे को तेज बुखार के साथ झटके आते हैं। हाथ-पैर में ऐंठन होती है, वह देखते-देखते बेहोश हो जाता है।
स्वास्थ्य विभाग ने इस बीमारी को लेकर गाइडलाइन जारी की है। इसके अनुसार, रात में खाली पेट सोने वाले बच्चों के बीमार होने की आशंका ज्यादा होती है। बच्चे को बिना देरी किए दो घंटे के भीतर अस्पताल ले जाना जरूरी है। इसके लिए एईएस प्रभावित जिलों के पीडीएस दुकानों पर गाड़ियों का प्रबंध किया गया है।
इस बीमारी में मस्तिष्क में सूजन हो जाती है। यह उन जगहों पर पाई जाती है जहां लीची के बगान अधिक हैं। 1-15 साल के बच्चे इसके अधिक शिकार होते हैं।
बीमारी का लक्षण तेज बुखार, शरीर में चमकी, दांत बैठना, शरीर में ऐंठन और सुस्त और बेहोश होना है। खून में शुगर की मात्रा अचानक कम हो जाती है।
स्वास्थ्य विभाग की गाइडलाइन के मुताबिक, लीची के बीज और फल में ऐसा रसायन होता है जो ब्लड शुगर के स्तर को अचानक कम कर देता है।
यह रसायन पूरे पके लीची के फल में कम मात्रा में होता है। ज्यादा लीची खाने और भूखे पेट धूप में खेलने वाले बच्चे शिकार होते हैं।

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