14 साल पूर्व अयोध्या में हुए आतंकी हमले पर कोर्ट आज सुनाएगा फैसला

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प्रयागराज। पांच जुलाई 2005 की सुबह करीब सवा नौ बजे आतंकियों ने रामजन्म भूमि परिसर में धमाका किया था।
करीब डेढ़ घंटे तक चली मुठभेड़ में पांच आतंकवादी मार गिराए गए थे जिनकी
शिनाख्त नहीं हो सकी थी। हमले में रमेश कुमार पांडेय व शांति देवी को जान गंवानी पड़ी थी जबकि
घायल कृष्ण स्वरूप ने बाद में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।

इसके अलावा दारोगा नंदकिशोर, हेड कांस्टेबल सुल्तान सिंह,

धर्मवीर सिंह पीएसी सिपाही, हिमांशु यादव, प्रेम चंद्र गर्ग व सहायक कमांडेंट संतो देवी जख्मी हो गये थे।
पुलिस की तफ्तीश में असलहों की सप्लाई करने और आतंकियों के मददगार के रूप में
आसिफ इकबाल, मो. नसीम, मो. अजीज, शकील अहमद और डॉ. इरफान का नाम सामने आया।

सभी को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। वर्ष 2006 में प्रयागराज की विशेष कोर्ट के आदेश पर

उन्हें फैजाबाद से इलाहाबाद की नैनी स्थित सेंट्रल जेल भेज दिया गया।
इनका मकसद अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस का बदला लेना था। जिसमे फैसला आज आना है।

थाना राम जन्मभूमि परिसर में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार हमलावर दो संप्रदायों के बीच

शत्रुता बढ़ाकर देश की एकता व अखंडता को नुकसान पहुंचाना चाहते थे।
आतंकियों ने हैंड ग्रेनेड, एके 47, राकेट लांचर से लैस होकर हमला बोला था।
हमलावरों ने सबसे पहले वह जीप ब्लास्ट कर उड़ा दी जिससे वह आए थे।
पांच जुलाई 2005 की घटना रामनगरी के इतिहास का काला दिन थी।
बम धमाकों और गोलियों की आवाज से रामनगरी हिल उठी थी।
जिस समय मेक शिफ्ट स्ट्रक्चर में विराजमान रामलला पर आतंकियों ने हमला किया,
मंदिरों में रामनाम और घंटा-घड़ियाल की ध्वनि गूंज रही थी, लोग पूजा-पाठ में व्यस्त थे।
आतंकी हमले के प्रत्यक्षदर्शी आज भी उस घटना को याद करके सिहर उठते हैं।
वह खौफनाक मंजर आज भी उनके जहन में जिंदा है।

घटनास्थल से महज 100 मीटर की दूरी पर मंदिर में बैठकर

नित्य की तरह पूजापाठ में लीन रामायणी कन्हैयादास धमाकों की आवाज सुनकर सिहर उठे थे।
बाहर निकलकर देखा तो बैरिकेडिंग पूरी तरह से टूट चुकी थी तथा एक जीप धमाके में उड़ने के बाद जल रही थी।
वे आगे बढ़ने ही वाले थे कि गोलियों की तड़तड़ाहट ने उनके कदम पीछे खींच दिए।

घटनास्थल से थोड़ी दूर स्थित कोटेश्वर महादेव मंदिर में नित्य की तरह दर्शन करने आए दुर्गेश पांडेय अचानक धमाकों की आवाज से सहम गये।

उन्होंने आतंकियों को हथियारों से लैस होकर परिसर के अंदर घुसते देखा।
आतंकी पीठ पर बैग लादे थे और लगातार फायरिंग करते हुए आगे बढ़ रहे थे।
पहलवान घनश्यामदास ने बताया कि सुरक्षा बलों व आतंकियों के बीच
करीब डेढ़ घंटे तक फायरिंग चली, हम धमाकों की आवाज सुनकर घर से बाहर निकले तो
सुरक्षा कर्मियों ने अंदर जाने को कहा, लेकिन जो भी मंजर दिखा उसे याद कर आज भी कंपकंपी आ जाती है।
पांच जुलाई 2005 को हुए आतंकी हमले में धमाके शिकार हुए गाइड का काम करने वाले रमेश पांडेय का परिवार आज भी सदमे से उबर नहीं पाया है।
जिस समय रमेश पांडेय की मौत हुई उनकी बेटी की उम्र महज दो वर्ष थी।
तब से सुधा पांडेय अपनी बेटी के साथ रमेश के बड़े भाई सुरेश पांडेय के परिवार के साथ रहती हैं।
उनकी बेटी अंशिका ने इस वर्ष इंटरमीडिएट परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की है।

सुधा कहती हैं कि किसी तरह पेट काटकर बेटी को इंटर तक पढ़ा दिया है लेकिन अब आगे कैसे पढ़ाऊं, समझ में नहीं आ रहा है।

वहीं अंशिका सरकारी नौकरी करना चाहती है, मगर पढ़ाई में आर्थिक समस्या आड़े आ रही है। सुधा कहती हैं कि
आज तक शासन-प्रशासन के किसी जिम्मेदार ने उनकी सुधि तक नहीं ली। हमले में शामिल सभी दोषियों को मौत ही मिलनी चाहिए।

आतंकी घटना के समय दवा लेने निकली शांति देवी धमाके का शिकार हो गईं। एक माह तक लखनऊ में इलाज के बाद उनकी मौत हो गईं।

शांति अपने पीछे सात बच्चे छोड़ गईं। घटना के बाद से परिवार सदमे में है। परिवार में अब तक एक बेटी, दामाद, पुत्र समेत पांच लोगों की मौत हो चुकी है।

पति रामचंदर यादव 61 वर्ष के हैं और किसी तरह चाय की दुकान चलाकर परिवार का गुजारा करते हैं। अभी एक बेटी की शादी का जिम्मा उनके कंधे पर है। कहते हैं कि

हमारे कंधे अब बोझ उठाने की हिम्मत नहीं रखते लेकिन, करूं भी तो क्या,
किसी तरह एक बेटी की शादी हो जाए तो मैं भी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊं, जीने की इच्छा भी अब नहीं है।
मदद के नाम पर आज तक किसी ने हाथ नहीं बढ़ाया। दोषी आतंकियों को कड़ी सजा मिले तभी हमें सुकून आएगा।
रामजन्मभूमि दर्शन मार्ग पर मुकुट बनाकर जीवन यापन करने वाले कृष्ण स्वरूप के परिवार पर पांच जुलाई का दिन काला साया बनकर आया।
कृष्ण स्वरूप घर से बाहर निकले ही थे कि आतंकियों ने पैर में गोली मार दी। करीब आठ सालों तक इनका इलाज चला आखिरकार 2013 में कृष्ण स्वरूप की मौत हो गई।
पत्नी श्यामादेवी की भी हालत अब खराब ही रहती है। बेटे रवि स्वरूप ने बताया कि पिता जी के आठ साल तक चले लंबे इलाज में हम कर्जदार हो गये।
दुकान भी हमसे छिन गई, अब बेरोजगारी की स्थिति है। आतंकियों को फांसी से कम कुछ नहीं होना चाहिए।

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