चाइनीज़ लाइटों के आगे बुझ रही है भारतीय दीपों की लौ

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आज के आधुनिक युग में चाइनीज लाइटों ने मिट्टी के दीयों की रोशनी धीमी कर दी है। चाइनिज सस्ते सामान ने पूरी दुनिया में लगभग अपनी जगह बना ली है व कारोबारियों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
दीवाली का अर्थ है दीप वाली रात। लोग इस पवित्र त्योहार पर सरसों के तेल के दीए जलाते हैं, ¨कतु सरसों का तेल महंगा होने के कारण लोग अब ज्यादातर चीन का बना हुआ सामान जैसे
मोम के दीए, लड़ियां आदि खरीदने को मजबूर हैं। मिट्टी के दीए बनाने वाले प्रजापतियों का कार्य बिलकुल ठप होकर रह गया है। चीन से आने वाले सामान ने छोटे व बड़े व्यापारियों को अपने प्रभाव अधीन ले लिया है।
दीवाली पर मिट्टी के दीए जलाना बेहद पुरानी परंपरा है ¨कतु चाइना से आने वाले मोम के दीए, लड़ियों ने मिट्टी के दीए लगभग खत्म कर दिए हैं। लहरा के प्रजापत मनोहर लाल ने उदास मन से अपनी कहानी बताते कहा कि
पहले हर गांव में 10-15 घर प्रजापति समाज के होते थे व हर करवा चौथ के कुज्जे, झकरियां, मिट्टी के दीए, मसाला व दीवाली के लिए सुंदर घरूंडियां आदि बनाकर गांवों व शहरों में जाकर बेचते थे।
इससे होने वाली आय से ही वह पूरा वर्ष अपना पेट भरते थे ¨कतु चीन से आने वाली सस्ती लड़ी व मोम से बने हुए दीयों ने लोगों का मिट्टी के दीयों से बिल्कुल ही मोह भंग करके रख दिया है।
प्रजापत ने बताया कि खासकर वह दीवाली के त्योहार से दो-तीन माह पहले ही मिट्टी के दीए बनाने लग जाते थे। उन्होंने कहा कि वह मजबूरी वश अपना खानदानी काम छोड़ नहीं सकते किंतु
आज के समय में इस कार्य से परिवार का गुजारा चलाना बेहद मुश्किल हो गया है। अब शहर में एक दो घर ही दीये बनाते हैं बाकी प्रजापत के परिवार ट्रेक्टरों द्वारा ईट के भट्ठे पर कार्य करने लग पड़े हैं।
सरकार ने चॉक पर लोन देना बंद कर दिया है व नौजवान पीढ़ी ने अपने पिता पुर्खी कार्य से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है।
उन्होंने कहा कि सरकार को उनके कारोबार के लिए सब्सिडी या सहायता न देकर उनके साथ धक्का किया जा रहा है।
उन्होंने सरकार से मांग करते कहा कि चीन के दीये, लड़ियां सरकार बंद करे ताकि उनकी रोजी-रोटी का हल हो सके।

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