ड्राइवर्स और गार्ड्स की स्‍मगलर्स से मिलीभगत से ट्रेन लेट होने की जांच करने पर छीन ली गई थी नौकरी, 12 साल बाद वापस मिला सम्मान

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नई दिल्‍ली। 12 साल पहले, सियालदाह में मजिस्‍ट्रेट रहे मिंटू मलिक लेक गार्डंस रेलवे स्‍टेशन पर लोकल ट्रेन का इंतजार कर रहे थे।
रेलवे का एडिशनल चार्ज था। उस दिन ट्रेन लेट थी। बतौर रेलवे मजिस्‍ट्रेट, मलिक ने सोचा कि
इस परेशानी को रेलवे से हटाया जाए. जब उन्‍होंने एक्‍शन लेना शुरू किया तो मलिक के खिलाफ ही प्रदर्शन शुरू हो गए. उन्‍हें बर्खास्‍त कर दिया गया।

ट्रेन लेट होने की जांच

कलकत्‍ता हाई कोर्ट ने पिछले सप्‍ताह मलिक को बहाल करने का आदेश दिया और कहा कि उनकी बर्खास्‍तगी गलत थी।
अदालत ने मलिक की नीयत को सराहा मगर यह भी कहा कि वह अपने न्‍यायक्षेत्र से बाहर चले गए थे।
4 जुलाई को अपने आदेश में अदालत ने कहा है, “इस न्‍यायिक अधिकारी ने मूर्खतापूर्ण ढंग से सोचा कि वह अकेले ही स्‍मगलर माफिया से लोहा ले लेगा।”
5 मई, 2007 को उस दिन ट्रेन के इंतजार में मलिक ने कई यात्रियों से बात की। पता चला कि ड्राइवर्स और गार्ड्स की मिलीभगत से स्‍मगलर्स
अवैध रूप से ट्रेनें रोक प्रतिबंधित मैटेरियल उतारते थे। इसके बाद मलिक कई ट्रेनों में मोटरमैन के केबिन में बैठे-बैठे सफर किया, उन्‍हें पता था कि यह गलत है।
उन्‍होंने मौख‍िक रूप से मोटरमैन और ट्रेन गार्ड को अपनी कोर्ट में पेश होने को कहा कि और ट्रेन में देरी की रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया।
कुछ ही घंटों में, रेलवे कर्मचारियों ने हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिया और सियालदाह में ट्रेन सेवाएं शाम तक ठप रहीं। मलिक को फौरन सस्‍पेंड कर जांच बिठा दी गई।
कलकत्‍ता हाई कोर्ट की सिंगल जज वाली बेंच ने प्रशासनिक रूप से मलिक के खिलाफ फैसला दिया। उन्‍हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। राज्‍यपाल ने अपील ठुकराई तो मलिक हाई कोर्ट चले गए।
2017 में एक जज वाली बेंच ने मलिक की याचिका ठुकरा दी जिसके बाद उन्‍होंने दो जजो की बेंच मांगी और खुद जिरह की।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश के खिलाफ फैसला दिया। अदालत ने खुद पर भी एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
मलिक को इन 12 सालों के दौरान मिलने वाली सैलरी का 75 प्रतिशत देने का निर्देश सरकार को दिया गया है मलिक फिर से कैडर में वापसी और ट्रेन पकड़ने को तैयार हैं।

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