संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय ने स्पष्ट किया है
कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से इतिहासकार रोमिला थापर समेत ‘प्रोफेसर एमेरिटस’ का दर्जा प्राप्त
किसी भी व्यक्ति की सेवा समाप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।
मंत्रालय का यह स्पष्टीकरण ऐसे समय सामने आया है जब विश्वविद्यालय के ऐसे पद धारक शिक्षाविदों से बायोडाटा मांगने के फैसले को लेकर विवाद शुरू हो गया।
विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार ने जुलाई में थापर को पत्र लिखकर बायोडाटा देने को कहा था
ताकि वे इस बात का मूल्यांकन कर सकें कि थापर को ‘प्रोफेसर एमेरिटस’ के तौर पर जारी रखना चाहिए या नहीं।
थापर के अलावा वैज्ञानिक आर राजारमण, जेएनयू के पूर्व कुलपति आशीष दत्ता सहित
12 एमेरिटस प्रोफेसरों को ऐसा पत्र प्राप्त हुआ जिन्होंने 75 वर्ष की उम्र पार कर ली।
विश्वविद्यालय में अभी ऐसे पदधारक 25 शिक्षाविद हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सचिव आर सुब्रमण्यम ने अपने ट्वीट में कहा, हमने जेएनयू में
प्रोफेसर एमेरिटस दर्जे से संबंधित विवाद के बारे में विश्वविद्यालय के कुलपति के साथ चर्चा की है।
सम्मानित शिक्षाविदों समेत किसी को भी प्रोफेसर एमेरिटस के दर्जे से वंचित करने की कोई पहल नहीं की गई है।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय केवल अध्यादेश के प्रावधानों का पालन कर रहा है।
बहरहाल, जवाहरलाल नेहरू शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) ने रविवार को अपने एक बयान में कहा था कि
यह ‘जानबूझकर किया गया प्रयास है और उन लोगों को अपमानित करना है
जो वर्तमान प्रशासन के आलोचक हैं।’
उसने इस कदम की औपचारिक वापसी और थापर के लिए व्यक्तिगत माफी जारी करने की मांग की।
इस पर विश्वविद्यालय ने कहा कि वह जेएनयू में ‘प्रोफेसर एमेरिटस’ के पद पर नियुक्ति के लिए अपने अध्यादेश का पालन कर रहे हैं।
विश्वविद्यालय ने कहा कि अध्यादेश के मुताबिक,