पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने से आईएएस-पीसीएस मायूस, आईपीएस की खिली बांछें

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पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने में सरकार ने मौजूदा माहौल व समय देखकर कदम उठाया
और दशकों से लंबित व सबसे संवेदनशील निर्णय एक झटके में कर दिया।
अब सभी की नजर इस प्रयोग के नतीजों पर है, जिसको लेकर तरह-तरह की आशंकाएं लोगों के मन में उभर आई हैं।
प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने का प्रयास वर्षों से चला आ रहा था,
लेकिन, प्रभावशाली आईएएस संवर्ग की शासन-व्यवस्था में मजबूत पकड़
और जनता से जुड़ी तमाम दलीलों के आगे यह प्रयोग मूर्तरूप नहीं ले पाया।
योगी आदित्यनाथ सरकार ने सीएए की घटनाओं के बाद इतनी तेजी से इस प्रणाली को लागू करने की ओर कदम उठाया कि किसी को इसके पक्ष-विपक्ष में बोलने का मौका ही नहीं मिल पाया।
बताया जा रहा है कि लखनऊ सहित कई जिलों में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान बढ़ती हिंसा से निपटने में पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच सामंजस्य में कमी को पुलिस विभाग ने सटीक अवसर मानकर सलीके से कैश किया।
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वरना, पूर्व पुलिस महानिदेशक सुलखान सिंह के समय में ही यह प्रयोग लागू हो जाता।
पुलिस के मौजूदा आला अधिकारी सरकार को समझाने में सफल रहे कि भीड़तंत्र की लगातार बढ़ती चुनौतियों से निपटने के लिए बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली अपरिहार्य हो गई है।
पर्दे के पीछे कई पूर्व पुलिस प्रमुखों ने भी इस मामले में सरकार का मत स्थिर करने में अहम भूमिका निभाई।
हालात ये हुए कि नई व्यवस्था लागू करने की एक सप्ताह से चल रही कवायद के बीच न तो आईएएस एसोसिएशन के पदाधिकारी संवर्ग का पक्ष सरकार के सामने रखने को आगे आए
और न ही पीसीएस एसोसिएशन के पदाधिकारी।
संवर्ग व जनहित से सीधे जुड़े मामले में निर्णय के बाद भी पदाधिकारी मौन साधे रहे।
प्रतिक्रिया के लिए संपर्क करने पर चुप्पी साध गए।
हालांकि, दोनों ही संवर्गों के आम अफसरों में इस फैसले से बेहद बेचैनी है।
‘ब्यूरोक्रेसी में हमेशा दो नंबर पर माने जाने वाली आईपीएस लॉबी की बांछे खिल गई’
इस निर्णय से जनता को कितना फायदा होगा यह तो बाद में पता चलेगा
लेकिन इसका तात्कालिक नतीजा ये हुआ कि ब्यूरोक्रेसी में हमेशा दो नंबर पर माने जाने वाली आईपीएस लॉबी की बांछे खिल गई हैं।
दूसरी ओर आला ब्यूरोक्रेट आईएएस व पीसएस अफसर चुप्पी साधे हैं।
इस पर पूर्व मुख्य सचिव अतुल गुप्ता का कहना है कि आम लोगों के पास पुलिस उत्पीड़न के बाद अपना पक्ष रखने के लिए जिला प्रशासन एक मजबूत विकल्प था।
अब उन्हें पुलिस कांस्टेबिल से पुलिस कमिश्नर तक एक ही सिस्टम से दो-चार होना पड़ेगा।
कानून-व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए मौजूदा व्यवस्था में निचले स्तर पर सुधार की जरूरत थी, लेकिन किया गया ऊपरी स्तर पर।
पर, अब जो भी निर्णय हुआ है, उसके बेहतर क्रियान्वयन की उम्मीद की जानी चाहिए।
बेहतर नतीजे आए तभी प्रयास सार्थक होगा।

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