दिल्ली में भाजपा कितना भी जोर लगा ले, मुख्यमंत्री तो बनेगे केजरीवाल ही

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(नरेश प्रधान)
लखनऊ। भारत में लोकसभा चुनाव हो या किसी भी प्रदेश का विधानसभा चुनाव हो, भाजपा की कथनी और करनी में जमीन आसमान का अन्तर रहता है। यह बात दिल्ली प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में उस वक्त देखने को मिली।

केजरीवाल

जब दिल्ली की 70 प्रतिशत गरीब जनता अपनी रोज मर्रा की समस्याओं से जूझकर बड़ी मुश्किल से अपने लिए केवल दो वक्त खाने की रोटी का जुगाड़ कर पा रही है। उसे अपने बच्चों को पढ़ाना तो दूर अपने बीमार पड़ने पर इलाज कराना भी मुश्किल हो रहा है।
आजादी के बाद देश की राजधानी दिल्ली में 2015 में पहली बार अरबिन्द केजरीवाल के नेतृत्त में आम पार्टी की सरकार ने जनता की सुध लेकर उनकी समस्याओं को गम्भीरता से समझते हुए उसे दूर करने का जो प्रयास किया है वह काबिले तारीफ ही नहीं बल्कि प्रशंसनीय है ऐसे व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति को दिल्ली का आजीवन मुख्यमंत्री बनना चाहिए।
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 2020 के प्रस्तुत बजट भाषा में स्कूली शिक्षा का अलग से उल्लेख न कर देश में करोड़ो अशिक्षित बच्चे के साथ अन्याय किया है जो आज भी स्कूलों का मुँह नहीं देख पा रहे है। उसे किसी भी दृष्टि से न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है?
बजट न केवल शिक्षा के मौलिक अधिकार, कानून 2009 के जमीनी क्रियान्वयन व विस्तार के प्रति सरकार की गैर जवाबदेही और ढुलमुल रवैये के परिचायक है बल्कि प्रस्तुत बजट स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए सरकार द्वारा लगातार किये जा रहे जमीनी हकीकत और
गरीब बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में भागीदारी के प्रति उदासीन नजरिये की पोल भी खोलता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 8 करोड़ 6 लाख बच्चे और मानव संसाधन मंत्रालय के मुताबिक
केवल 60 लाख बच्चे आज भी स्कूलों का मुँह नहीं देख पा रहे है। देश में 11 लाख प्राइमरी शिक्षकों की कमी है। राष्ट्रीय स्तर पर 3 लाख सरकारी स्कूल बन्द हो चुके है।
‘‘भारतीय लोकतंत्र’’ विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जहाँ जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि जनता के हित के लिए संविधान के प्रति अपनी निष्ठा रखते हुए ईमानदारी से कार्य कर एक आदर्श समाज की रचना करें, लेकिन सत्ता में बने रहने के लिए देश के विभिन्न राजनैतिक पाट्र्रियां एवं उनके बड़बोले नेता धर्म के नाम पर समाज में जो विष घोल रहे है।
उससे एक न एक दिन उनका व उनकी पार्टी का आस्तिृत्व ही समाप्त हो जायेगा।
इसीलिए दिल्ली के चुनाव को लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने साफ-साफ शब्दों में कहा है कि राजनीति में धर्म का कतई इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, लेकिन अफसोस की बात है कि दिल्ली के चुनाव में मुद्दों की वजह धर्म की बात धड्ल्ले से की जा रही है। दिल्ली की जनता को क्या चाहिए?
उसके कल्याण के लिए भविष्य में क्या किया जाए। जिससे वे सम्मान के साथ स्वाभिमान से जी सकें इसकी चिन्ता किसी भी राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी की नहीं है। उन्हें तो हिन्दू-मुस्लिम में दरार पैदा कर अपनी सत्ता और
सलनत बचानी है, हिन्दू एक होगा तभी उनकी सत्ता और सलनत बचेंगी। इसलिए भाजपा स्कूली शिक्षा पर जोर न देकर बच्चों को धर्म की घुट्टी पिला रही है।
परन्तु इन सब दिखाओं से दूर रहकर अन्ना के आन्दोलन से उपजी आप पार्टी ने दिल्ली में 2015 में मुख्यमंत्री अरबिन्द केजरीवाल के नेतृत्त में जो काम किया है जनता उससे प्रभावित ही नहीं बल्कि इतनी खुश है कि उसे अब अपने परिवार के बच्चों के भविष्य के अलावा कुछ नहीं दिख रहा है जो आने वाले भारत का कल है क्योंकि
परिवार प्रत्येक इंसान के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है परिवार की पाठशाला से ही व्यक्ति संस्कारों की शिक्षा ग्रहण करता है परिवार का अपनत्व हमें अकेला महसूस नहीं होने देता है विषम परिस्थितियों में परिवार हमारे लिए रक्षा कवच बन जाता है।
अतः इस दुनिया में वह इंसान बहुत खुश किस्मत है जिसके पास सुख में हास-परिहास करने के लिए और दुःख एवं विपत्ति में साथ में बैठकर गम बांटने के लिए परिवार है। आज तक हर गरीब मां-बाप चिन्तित रहता था कि वह अपने बच्चों को कैसे पढ़ाये बड़ा होकर वह क्या बनेगा। भगवान जाने हमारे बच्चों का क्या होगा।
अब दिल्ली प्रदेश में हर मां-बाप के मुख से एक ही शब्द निकलता है कि केजरीवाल जी हमारे परिवार के मुखिया हैं उन्होंने सरकारी स्कूलों की दशा सुधार दी है। जहां हमारे बच्चों को प्राइवेट कान्वेन्ट स्कूलों से अच्छी शिक्षा मुफ्त में मिल रही है।
परिवार में बीमार पड़ने पर हमारा इलाज फ्री में हो रहा है। 200 यूनिट बिजली हर गरीब परिवार को फ्री मिल रही है पानी भी फ्री है अब हमें क्या चाहिए। आपकी सरकार बनने से हम लोगों का जीवन ही बदल गया है।
हमारा वोट तो केजरीवाल जी की आप पार्टी को जायेगा। मोदी जी के आने के बाद काम धन्धे सब बन्द हो गये हमारी पति की नौकरी छुट गयी खाने के लाले पड़ गये उन्होने हमारे लिए क्या किया कोई नई फैक्ट्री, कारखाने, स्कूल तो खुलवाये नहीं जो खुले हुए है उन्हें बेच रहे है।
धर्म के नाम पर हमें क्या मिलेगा जो कुछ मिलेगा वह ब्राह्म को ही मिलेगा हमें तो कोई भीख भी नहीं देगा।
जनता भूखों मर रही है। जब जनता ही नहीं रहेगी तो राज किस पर करेगे इनकी धर्म की दुकान चलती रहे सब ऊपर वाला देख रहा है।
उसकी लाठी में आवाज नहीं होती एक दिन ये स्वयं खत्म हो जायेगे भाजपा में घमण्ड आ गया है। यह पब्लिक है सब जानती है। जब रावण का घमण्ड नहीं रहा तब इन भाजपाईयों का घमण्ड क्या रहेगा। दिल्ली में मोदी जी कितना भी जोर लगा ले,
हिन्दू-मुस्लिम करा दे, गोली चलवा दे, जीतेगा तो केजरीवाल ही हम लोगों की हार्दिक इच्छा है कि वे पुनः आजीवन दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।
भाजपा केवल, नौटंकीबाज एवं नचईयों की पार्टी है, जो समय-समय पर जनता का मनोरंजन करती रहती है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है एवं हि0 दै0 टेलीग्राफ इंडिया के संपादक हैं यह लेखक के निजी विचार हैं

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