लॉकडाउन: पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में बुनकरों के सामने भुखमरी का संकट, पीएम-सीएम को लिखा पत्र

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वाराणसी कोरोना वायरस पर काबू पाने की कोशिशों के तहत जारी लॉकडाउन बुनकरों के लिए बड़ी मुसीबत लेकर आई है। लॉकडाउन की वजह से बुनकर तबका भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है. देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से लाखों बुनकर मजदूर बेरोजगार हो गए हैं. भारत सरकार द्वारा करीब एक दशक पहले किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, देश में पावरलूम बुनकरों की संख्या 43 लाख थी। हालांकि, उनकी वास्तविक संख्या बहुत अधिक बताई जाती है।
इस पेशे में दो तरह के लोग शामिल हैं। एक वो जिन्होंने अपने घरों में दो-चार पावरलूम मशीनें लगाईं हैं और दूसरे वो जो इन पावरलूम में बतौर मजदूर काम करते हैं। उनके अलावा एक बहुत बड़ी आबादी महिलाओं की है जो कपड़े की तैयारी के अन्य चरणों में हाथ बंटाती है। लॉकडाउन हो जाने से यह सभी लोग बेरोजगार हो गए हैं और उनके सामने रोजी-रोटी की समस्या पैदा हो गई है।
उत्तर प्रदेश बुनकर यूनियन के पूर्व सचिव जावेद अख्तर भारती ने डीडब्ल्यू से बातचीत करते हुए कहा, “लॉकडाउन के कारण आमदनी बंद है। माल नहीं आ पा रहा है. जो बड़े कारोबारी हैं, जिनके पास बहुत सारे पावर लूम हैं, वे किसी तरह से अपना काम चला ले रहे हैं. लेकिन छोटे कारोबारी, जो दो या तीन पावरलूम चलाते हैं, उनके सामने बहुत समस्याएं हैं।” जावेद भारती उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में रहते हैं, जहां 70 फीसदी लोग बुनकर पेशे से जुड़े हुए हैं यहां लगभग 45 हजार पावरलूम हैं।
जावेद जी बताते हैं कि सिर्फ 10-12 बड़े कारोबारी हैं। बाकी लोगों के पास सिर्फ दो-तीन मशीनें हैं। जावेद जी के मुताबिक, ऐसे में सबसे ज्यादा खराब हालत उन छोटे कारोबारियों की है। गरीब बुनकरों के सामने पहले से ही रोजी-रोटी के लाले पड़े थे, लेकिन लॉकडाउन ने तो उनकी कमर ही तोड़ दी है। मुमताज अहमद के घर पर पावरलूम की दो मशीनें लगी हैं और घर की औरतें इन मशीनों पर काम करती हैं। मुमताज कहते हैं कि यह एक ऐसा कारोबार है जो प्रदूषण से मुक्त हैं।
मुमताज कहते हैं, “लॉकडाउन की वजह से सबकुछ बंद हो गया है। ना तो कपड़ा तैयार करने के लिए कच्चा माल मिल रहा है और ना ही तैयार माल बिक रहा है।” मुमताज बुनकरों को लेकर सरकार के रवैये पर भी नाराज हैं. देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में हथकरघा उद्योग के महत्व के बारे में जागरुकता फैलाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने जुलाई, 2015 में 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस घोषित किया था।
अहमद कहते हैं ऐलान के बावजूद बुनकरों की हालत में कोई सुधार नहीं हो सका है। यह हालत सिर्फ वाराणसी तक ही सीमित नहीं है बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी हालत ऐसे ही हैं। महाराष्ट्र के भिवंडी और मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में भी यही हाल है। भिवंडी में पावरलूम पर कम से कम 6,00,000 कर्मचारी काम करते हैं। इनमें असम, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के मजदूर शामिल हैं। वहां मजदूर 12 घंटे काम करने के बाद 300 से लेकर 500 रुपये तक कमा पाता है, लेकिन वहां भी पावरलूम बंद हैं।

पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी में इदरीश अंसारी लिखते हैं कि लॉकडाउन होने की वजह से वाराणसी सहित पूरे पूर्वांचल के बुनकर समाज के लोगों के आगे भूखमरी कि स्थिति पैदा हो गई है। पिछले महीनों से पावरलूम एवं हथकरघा उद्योग दोनों बंद पड़े हैं और रोज़ कमाने और खाने वाले लोगों तक अब खाने को कुछ नहीं रह गया है। बुनकर समाज में तीन तरह के लोग हैं। एक मज़दूर, दूसरे मालिक (पावरलूम या हथकरघा चलाने वाले और तीसरे व्यापारी हैं।’

इदरीश अंसारी लिखते हैं कि हम उत्तर प्रदेश सरकार एवं केन्द्र सरकार से मांग करते हैं कि जिस तरह से किसान के लिए सहूलियत देने का ऐलान किया गया है उसी तरह से कुछ शर्तों के साथ और लॉकडाउन को देखते ही बुनकरों के लिए भी ताना-बाना की दुकान खोलने की अनुमति दें ताकि लोग ताना-बाना खरीद सकें और अपने करोबार को चालू कर सकें। अगर ऐसा होता है तो बुनकर समाज के आगे जो संकट हैं उसमें कुछ हद तक कमी आएगी।

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