अंग्रेजी समाचार पत्रों से हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में समाचार पत्रों की गुणवत्ता क्यों कम है?

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इससे बड़ा भ्रम कुछ हो नहीं सकता।
हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के अखबार में गुणवत्ता में कमी नहीं होती है।
मुश्किल होती है कि, हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के अखबार पर क्षेत्रीय जरूरतों/पाठकों का दबाव होता है।
समाज को जानने, समझने के लिहाज से हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के अखबार बेहतर हैं।
एक कहावत है, “ अंग्रेजी में गाली दो, तो वो भी हमें अच्छी लगती है।”
अंग्रेजी समाचार पत्रों से हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में समाचार पत्रो की गुणवत्ता कम है ,
ऐसा मैं नहीं मानती। परन्तु कुछ कारण है जो अंग्रेजी समाचार पत्रों को ज्यादा लाभ और ज्यादा प्रचार करते है।
हिंदी और क्षेत्रीय समाचार पत्रों के पाठक संख्या सीमित है। पर अंग्रेजी को पूरे भारत में पाठक मिलते है।
ज्यादा जमापूंजी हेतु, अंग्रेजी पत्रिकाएं ज्यादा पत्रकार तथा समाचार नियुक्त कर पाते है।
अंग्रेजी समाचार पत्रों को ज्यादा विज्ञापन मिलते है।
आंचलिक समाचार पत्रों में ज्यादा आंचलिक खबर होती है ,
जो उनके लिए अनिवार्य है।
अंग्रेजी में ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खबरे आती है
जिसे लोग पढ़ते है। लेकिन प्रांतीय लोग प्रांतीय खबर पढ़ते है।
ऐसी कई बातें है जिसके लिए अंग्रेजी अखबारों में हमें ज्यादा पाठक वर्ग और गुणवत्ता मिलती है।
फिर भी प्रांतीय समाचार पत्रों में कुछ अपनी गुणवत्ता को बचाये हुए है हैं।
मेरे अपने राज्य ओड़िशा में सबसे बिकता है “समाज” !
लोग यहां समाचार पत्र का मतलब समझते है।
इसमें संपादकीय पृष्ठा में आने वाला हर निबंध सार से भरा होता हैं।
तो बात बहुत ही सरल है : इकोनोमिक डिमांड और सप्लाई की है।
जो जितना बिका, उतना उसका मार्केट बढ़ा, तथा प्रतिद्वंदिता बढ़ी ।
और प्रतिद्वंदिता बढ़ने पर बाजार में टिकने के लिए गुणवत्ता बढ़ानी ही पड़ेगी ।

*लेखक के निजी बिचार हैं*✍️

हरि शंकर पाराशर कटनी: मध्य प्रदेश

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