प्रधानमंत्री जी के मन की बात, 20लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज

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जब कुछ देने का वक्त आया तो वहां भी छोटा मन कर लिया
बीस लाख करोड़ सोचने में कोई छोटी-मोटी रकम नही होती है। लेकिन जिस तरह से कोविड़ के चलते भारत की अर्थव्यवस्था तबाह हुई है, जनजीवन तहस नहस हुआ है उसको पटरी पर लाने के लिए यह रकम कम ही साबित हो सकती है। उद्योग, व्यापार से लगाकर मानव जन-जीवन का हर पहलू सब कुछ पटरी से उतर चुका है। इसमें कोई दोराय नही है कि इतने बड़े आर्थिक पैकेज की दरकार इस देश के अवाम को थी।
लेकिन आपको बता दे कि प्रधानमंत्री जी के इस आत्मनिर्भर पैकेज का सच कुछ और ही है। ख्याल रखे कि बीस हजार करोड़ का यह पैकेज एक बार में की गई राशि की घोषणा का नही है, इस पैकेज में पुराने दो पैकेज की राशि भी शामिल है।
मतलब आप सोचेगें कि इतने बड़े आंकड़े की घोषणा करके मोदी ने अवाम को बेवकुफ बना दिया, लेकिन सच यह है कि यह उनकी सियासी अदा है। इस अदा को वह अपने राजनीतिक जीवन में जब- तब अमल में लाते रहते है। हम उनके अतीत के कारनामों की तरफ झांके तो पाएंगें कि आधा फसाना, आधी हकीकत का ये खेल वे खेलते रहते है। इसे और सरल भाषा में कहूं तो वे सच की बजाय झूठ बोलते रहे है।
अब मैं आपको उनकी उस बाजीगरी की तरफ ले चलता हूं जो ये बताती है कि आखिर बीस हजार करोड़ में से इस देश के अवाम के हिस्से में आएगा क्या। सच तो यही है कि भले ही पीएम नरेन्द्र मोदी ने तालाबंदी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को संकट से उभारने के लिए बीस लाख करोड़ रूपये के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है मगर वास्तव में सरकारी खजाने से फिलहाल बहुत कम रकम निकलने वाली है।
इसका बड़ा हिस्सा करीब 8. 4 लाख करोड़ रूपये का ऐलान भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से फरवरी, मार्च और अप्रैल के महिने में कई तरह से तंत्र में नगदी बढ़ाने के लिए किया जा चुका है। इसके अलावा मार्च के आखिरी सप्ताह में वित्तमंत्री निर्मला सीता रमण की ओर से घोषित 1. 7 लाख करोड़ रूपये के पैकेज को भी जोड़ लिया जाए तो फिर 10. 26 लाख करोड़ रूपये की रकम ही बचती है। इस पैकेज की बारिकीयों को जानने वाले अर्थशास्त्रियों व केन्द्रीय वित्त विभाग के अफसरों की माने तो इस साल पैकेज में से 4. 2 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा की रकम जारी करना संभव नही लगता है।
बताते चले कि चार दिन पहले ही सरकार की ओर से चालू वित्त वर्ष में बाजार से कर्ज की सीमा को बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रूपये किया गया है जो पहले 7. 8 लाख करोड़ था। इस तरह से जानकारों का मानना है कि सरकार कर्ज में ली गई 4. 2 लाख करोड़ रूपये की अतिरिक्त रकम को ही इस पैकेज के तहत खर्च करने वाली है। सच भी यही है कि इतनी रकम ही सरकार के पास नगदी के तौर पर उपलब्ध है।
इस तरह से देखे तो 4. 2 लाख करोड़ रूपये की यह रकम जीड़ीपी के 2.1 के बराबर होगी जबकि बीस लाख करोड़ के पैकेज की घोषण के समय यह बढ़ चढक़र बताया गया था कि जीड़ीपी के 10 फीसदी रकम अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए जारी की गई है।
अब आपको सरल और सीधे शब्दों में कहें तो गरीबों, पलायन करने वाले मजदूरों व किसानों के लिए सरकार 4. 2 लाख करोड़ रूपये के पैकेज का ही ऐलान कर पाएगी। हालाकि पैकेज की इस राशि को भी सही और ईमानदार तरीके से खर्च किया जाए तो इसके भी अच्छे-खासे परिणाम आने की संभवनाएं है। खासतौर से तब, जब भारतीय अर्थव्यवस्था बीते 48 दिनों से पूरी तरह से ठप है।
एक कटू सत्य तो ये भी है कि मोदी सरकार इस समय इससे ज्यादा का पैकेज झेलने की स्थिति में नही है। वर्तमान में जो आर्थिक हालात है उसके चलते केन्द्र सरकार बहुत बड़े आर्थिक पैकेज को अफोर्ड ही नही कर सकती है। हालाकि ये 4. 2 लाख करोड़ रूपये की राशि भी उतनी ही राहत भरी है जो किसी मरीज को आईसीयू से बाहर निकालते समय सहयोगी साबित होती है। दरअसल, सरकार के पास इतना बजट नही है कि वह खर्च को अप्रत्याशित तौर पर बढ़ा सके।
आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि 27 मार्च को जारी किए गए 1. 7 लाख करोड़ रूपये के पैकेज में से भी महज 61, 380 करोड़ की रकम ही ऐसी थी, जिसे गरीबों तक पहुंचाया गया है। इसमें भी 17. 380 करोड़ रूपये पीएम किसान योजना के तहत ट्रांसफर किए गए, जिसका प्रावधान पहले से ही 2020-21 के बजट में तय किया गया था।
इसके साथ ही इस राशि के खर्च को लेकर अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि इसी राशि में से केन्द्र सरकार बैंकों को कर्ज के लिए बड़ी राशि भी दे सकती है। इस संबंध में सरकारी सूत्रों का मानना है कि गरीब तबके के लोगों के लिए चलने वाली योजनाओं के तहत कैश ट्रांसफर के बाद बचने वाली रकम को इस तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है कि उससे ज्यादा…ज्यादा रिटर्न मिल सके। सरकार बैंकों को यह रकम इसलिए भी दे सकती है कि वे कंपनियों को ज्यादा से ज्यादा कर्ज दे सके और कारोबार की शुरूआत हो सके।
अब आप जाने कि बीस लाख करोड़ रूपयेका यह पैकेज आत्म निर्भर अभियान को कैसे गति देगा। बहरहाल इस पैकेज की इतनी बड़ी राशि के बाद भी आम गरीब, मजदूर और किसान के हिस्से कुछ हासिल हो या न हो लेकिन हुजूरेआला ने आत्म निर्भर भारत के लिए पांच मूल मंत्र भी बताए है। उनके इन पांच मूल मंत्रों में मजबूत इकॉनामी, इंफ्रास्ट्रक्चर, तकनीक आधारित व्यवस्था, विविधता पूर्ण आबादी और बढ़ी हुई मांग भारत की आत्म निर्भरता के आधार स्तंभ होगें। इसके साथ ही उनने लोकल चीजों की खरीददारी की अपील करते हुए कहा है कि हमें लोकल के प्रति वोकल होना पड़ेगा।
मतलब वे यहां भी अपनी वाकपटूता व चिकनी-चुपड़ी बातों से सच को छूपा गए। असल में सच तो यही है कि मोदी के अर्थव्यवस्था को सुदृढ करने का बीस लाख करोड़ रूपये के इस पैकेज की घोषणा भी आम गरीब, प्रवासी मजदूर और किसान के लिए एक जूमला ही साबित हो कर रह गया है। जिस तरह से हम देख रहे है उसके हिसाब से तो इन गरीब मजलूमों के हिस्से पैकेज का ऊंठ के मुंह में जीरे के समान ही आएगा। बीस लाख करोड़ रुपये के पैकेज का महत्व तो तब होता जब सरकार इन गरीबों के हाथों में अधिक से अधिक राशि देती।
यह बात किसी से छूपी नही है कि भारत में अब तक दुनिया की सबसे कठोर तालाबंदी रही है और ऐसी विषम परिस्थतियों में भी गरीब की मदद करने के लिए सरकार ने नाममात्र की ही आर्थिक सहायता दी है। इस पैकेज के साथ आमजन को मोदी सरकार की उस नीति और नियत की तरफ नजरें इनायत करना चाहिए कि वह देश के गरीबों के प्रति कितनी वफादार है। मुख्य रूप से यह देखने की जरूरत है कि समाज के सबसे ज्यादा जरूरतमंद तबके को कितनी नकदी (राशि) की दरकार थी और कितनी दी गई।
खैर, जब देश भर से आम गरीब के हिस्से में ऊंठ के मुंह में जीरे के समान इस बीस लाख करोड़ के पैकेज में से आने की बाते होने लगी और मोदी की नीति व नीयत की आलोचना होने लगी व उनके इस रवैये पर सवाल होने लगे तो आनन-फानन में पीएम केयर्स फंड से 3100 करोड़ रूपये प्रवासी मजदूरों पर खर्च करने की बात कही गइ है। हालाकि यह राशि पूरी तरह से प्रवासी मजदूरों पर खर्च नही होगी। प्रधानमंत्री कार्यालय के मुताबिक इन 3100 करोड़ में से 2100 करोड़ रुपए से वेंटिलेटर खरीदे जाएंगे जबकि उसमें से 1000 करोड़ रुपए प्रवासी मजदूरों पर खर्च किए जाएंगे। इसके अलावा लगभग 100 करोड़ रुपए वैक्सीन बनाने के लिए दिए जाएंगे।
हमारे देश में कोरोना के चलते जो हालात निर्मित हुए है वह एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट बन कर सामने आए है। देश के कुल कार्यबल का लगभग 25 फीसदी बेरोजगार और संभवत: 25 फीसदी को ये विश्वास नहीं है कि वे वापस नौकरी कर भी पाएंगे या नही। इस समय सरकार को सिर्फ इस बात पर ध्यान देना चाहिए था कि अर्थव्यवस्था को वापस सामान्य स्थिति में लौटने तक भारत का 50 फीसदी कार्य बल कैसे अपना घर चलाएगा, उसके लिए कुछ ईमानदार पहल करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नही हो सका।
भारत में मजदूरों की कुल संख्या 50 करोड़ के करीब है। इन बुरे हालातों में सबसे पहले मजदूरों के दो वक्त की रोटी के प्रबंध पर काम होना चाहिए था। और जो प्रवासी मजदूर अपने घरों से दूर भूखे मरने को मजबूर थे उनको अपने मुकाम तक पहुंचाना चाहिए था, लेकिन ये उन मजदूरों का दूर्भाग्य ही कहें कि केन्द्र में ऐसी हत्यारी सरकार ऐसा नही कर सकी। सब हैरान-परेशान प्रवासी मजदूरों को अपने हाल पर सडकों व रेल की पटरियों पर मरने को छोड दिया। जब कुछ देने का वक्त आया तो वहां भी छोटा मन कर लिया।

राष्ट्रीय जजमेंट : हरिशंकर पाराशर की रिपोर्ट ✍️

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